विकलांग हुए तो क्या हुआ ख्वाजा तो मेरे साथ है
अजमेर में 22 मई को ख्वाजा का उर्स है। जिसमें लोग बढ़-चढ़ कर भाग लेते हैं। उर्स में अभी एक महीना बाकी है मगर वहां जायरीन के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो चुका है।
वाराणसी। अजमेर में 22 मई को ख्वाजा का उर्स है। जिसमें लोग बढ़-चढ़ कर भाग लेते हैं। उर्स में अभी एक महीना बाकी है मगर वहां जायरीन के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो चुका है।
खुदा ने जिन लोगों को हाथ-पंाव या सेहत दी है उनके लिए कोई समस्या नहीं मगर कमाल उन लोगों का है जो अपंग होने के बावजूद सिर्फ हौसले के बूते वहां अर्जी लगाने को निकल पड़े हैं, वहां का रुख कर रहे हैं। मो. फारुख बाबू जान सैयद उन्हीं में से एक हैं। यह दोनों हाथों से अपंग हैं, कलकत्ता के रहने वाले हैं। एक फैक्ट्री में काम करते हुये उनके दोनों हाथ कुहनियों के करीब से कट गये और वह अपंग हो गये। ख्वाजा के उर्स में शामिल होने की तड़प ऐसी कि कामकाज छोड़ कर अजमेर को रवाना हो गए। वह भी अपनी सहूलियत लिए खासतौर बनवाई गई नायाब मोटर साइकिल से। 18 अप्रैल को गोराचांदपुर कोलकाता से अपना सफर शुरु करने वाले फारूख बाबू बनारस पहुंचे। फलाहार पर ही जीवन यापन करने वाले फारूख बाबू का कहना है कि भले ही दोनों हाथ न हों पर ख्वाजा की मौजूदगी हर पल उन्हें अपने पास महसूस होती है। लिहाजा कभी कोई लाचारगी आड़े नहीं आयी।
उन्हीं की तरह बिहार के मौलाना चक के मनरू मियां ने भी इस बार फैसला किया कि वो अजमेर के उर्स में तांगा से जायेंगे। मनरू मिंया का सजीला तांगा भी बनारस हो कर अपनी मंजिल की ओर रवाना हो चुका है। इन दोनों जायरीन ने बताया कि बनारस पहुंचते वक्त वो मंदिरों और खानकाहों में पड़ाव लेते रहे। उन्हे कोई परेशानी नहीं हुई।
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