मन एक जमीन है..
मन को तैयार करने में हमारे जीवन के संस्कार शामिल हैं। उसमें सदियों से चली आ रही सभ्यता-संस्कृति, माता-पिता के जींस और हमारा समाज शामिल है..
यदि हम यह कहें कि मेरा मन मेरा नहीं, तो फिर यह किसका है? आम व्यवहार में हम यही अनुभव करते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति का मन अलग-अलग होता है। मन हमारा नहीं होता का अर्थ यह कतई नहीं है कि वह पूरी तरह से दूसरे का होता है। चूंकि मन हमारा है, हमारे द्वारा संचालित है, वह हमारी ही इच्छा और विचारों को जन्म देता है, इसलिए वह हमारा है। लेकिन यहां प्रश्न यह है कि क्या यह सचमुच हमारा है? आइए, इसे थोड़ी गंभीरता से समझने की कोशिश करें, अन्यथा हमारा मन के साथ व्यर्थ ही झगड़ा होता रहेगा।
मान लीजिए खेत की एक जमीन है। इस जमीन के मालिक आप हैं। इस जमीन में आप जो चाहें, बो सकते हैं-धान, गेहूं, कपास, चना, सरसों आदि कुछ भी। यह पूरी तरह आपके ऊपर निर्भर करता है। लेकिन सोचकर देखिए कि ये जितनी भी बातें हैं, क्या सचमुच इन सभी पर आपका अपना ही नियंत्रण है? कहीं ऐसा तो नहीं कि नियंत्रण किसी और का है। आपको केवल इस बात का आभास हो रहा है कि नियंत्रण आपका है। जमीन आपकी नहीं है। आप उसके केवल मालिक हैं। जमीन किसी की नहीं है। चूंकि वह मिट्टी से बनी है, इसलिए प्राकृतिक सत्य यह है कि जमीन मिट्टी की है, आपकी नहीं।
अब आते हैं दूसरे प्रश्न पर कि आप उसमें अपनी इच्छानुसार कुछ भी बो सकते हैं। ऐसा भी नहीं है। यदि मिट्टी काली है, तो आप उसमें चना या कपास बोने को बाध्य हैं। आपको केवल इतनी ही छूट है कि चाहे आप कपास बोएं या चना या फिर दोनों ही आधा-आधा, लेकिन आप यह स्वतंत्रता लेने की हिम्मत कतई नहीं कर सकते कि आप उसमें सरसों या बाजरा बो दें। इसका अर्थ यह हुआ कि जैसी मिट्टी होगी, उसमें उसी तरह की फसल उगेगी। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो इससे जहां मिट्टी का दुरुपयोग होगा, वहीं फसल की भी हानि होगी।
यही प्रकृति का नियम है। अब हम इस उदाहरण को अपने मन पर लागू करके देखें। मन एक जमीन है। यह अपने आप में न तो बीज है, न फसल है और न ही किसान। यह मात्र एक पृष्ठभूमि है, जिसमें आपको बीज बोने हैं या लकीरें उकेरनी हैं। यदि मन एक जमीन है, तो इसके मालिक तो आप हो सकते हैं, लेकिन मिट्टी आपकी नहीं है। मिट्टी तो प्रकृति ने बनाई है। तो मन की इस जमीन की मिट्टी को किसने बनाया है? यदि यह मिट्टी आपने नहीं बनाई तो फिर आप खुद बताइए कि ऐसी जमीन आपकी कैसे हो सकती है? चूंकि वह आपके अंदर है, केवल इसलिए वह आपकी है। आपने उसे पैदा नहीं किया है, उसे प्राप्त किया है। पैदा करने वाला सच्चा मालिक होता है, प्राप्त करने वाला नहीं। प्राप्त करने वाला तो केवल उसका संरक्षक है।
मन की इस जमीन को किसने तैयार किया है? इसमें हमारे जीवन के संस्कार शामिल हैं। इसमें सदियों से चली आ रही हमारी सभ्यता-संस्कृति शामिल है। हमारे माता-पिता के जींस शामिल हैं। हमारे आसपास का समाज शामिल है। हमारा संपूर्ण बाह्य भौतिक वातावरण, हमारा इतिहास इसमें शामिल है। ये सारे तत्व मिलकर मन की इस जमीन के लगभग नब्बे प्रतिशत हिस्से की रचना कर देते हैं। मुश्किल से दस प्रतिशत हिस्सा ही ऐसा रह जाता है, जिसे हम अपना कह सकते हैं। इस दस प्रतिशत हिस्से को भी केवल वे ही लोग समझ पाते हैं, जो सोचते हैं और सजग रहते हैं।
[डॉ. विजय अग्रवाल]
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