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आखिर मुंबई में क्यों मिली शर्मनाक हार?

पिछले साल इंग्लैंड में 4-0 से सूपड़ा साफ होने के बाद भारतीय टीम ने इस बार हुंकार भरते हुए इशारों-इशारों में यह जरूर जताया था कि वह उस शर्मनाक हार का बदला जरूर लेंगे। फैंस को भी उम्मीदें थीं क्योंकि सीरीज अपनी जमीन पर हो रही थी, पहले टेस्ट में नौ विकेट की जीत ने इन उम्मीदों को और बढ़ावा दिया लेकिन मुंबई में अंग्रेजों ने ना सिर्फ सीरीज में सूपड़ा साफ करने की भारतीय हसरतों को तोड़ा बल्कि हर भारतीय खिलाड़ी का मनोबल भी झंझोड़ कर रख दिया। हर जुबान पर सवाल यही है कि मन माफिक पिच पर हम आखिर 10 विकेट से क्यों हारे।

By Edited By: Published: Mon, 26 Nov 2012 02:27 PM (IST)Updated: Mon, 26 Nov 2012 02:27 PM (IST)
आखिर मुंबई में क्यों मिली शर्मनाक हार?

[शिवम् अवस्थी, नई दिल्ली]। पिछले साल इंग्लैंड में 4-0 से सूपड़ा साफ होने के बाद भारतीय टीम ने इस बार हुंकार भरते हुए इशारों-इशारों में यह जरूर जताया था कि वह उस शर्मनाक हार का बदला जरूर लेंगे। फैंस को भी उम्मीदें थीं क्योंकि सीरीज अपनी जमीन पर हो रही थी, पहले टेस्ट में नौ विकेट की जीत ने इन उम्मीदों को और बढ़ावा दिया लेकिन मुंबई में अंग्रेजों ने ना सिर्फ सीरीज में सूपड़ा साफ करने की भारतीय हसरतों को तोड़ा बल्कि हर भारतीय खिलाड़ी का मनोबल भी झंझोड़ कर रख दिया। हर जुबान पर सवाल यही है कि मन माफिक पिच पर हम आखिर 10 विकेट से क्यों हारे।

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अहमदाबाद टेस्ट [पहला टेस्ट] में भारत को जब नौ विकेट से जीत मिली तो टीम इंडिया के कप्तान ने क्यूरेटर से लेकर बीसीसीआई तक सबको संदेश पहुंचा दिया था कि उन्हें टर्निग ट्रैक चाहिए और अहमदाबाद में ऐसा ट्रैक ना होने से वह बेहद निराश हुए। मुंबई ने माही की बात का ख्याल रखते हुए एक शानदार टर्निग ट्रैक बनाया जिसके बाद उत्साह से लबरेज कप्तान ने एक अतिरिक्त स्पिनर भी खिलाया लेकिन वह इंग्लैंड को शायद कमतर आंक गए और जो काम भारतीय स्पिनर्स को करना था वह इंग्लिश खिलाड़ी पनेसर और स्वान कर गए। इसलिए जो सबसे पहले और सबसे बड़ा कारण हार का रहा वह था माही का कुछ ज्यादा ही आत्मविश्वास से भरपूर होना और विरोधी टीम के स्पिनरों को कम आंकना।

दूसरे कारण की बात करें तो जाहिर तौर पर यह ठीकरा भारतीय फिरकी गेंदबाजों पर ही फोड़ा जा सकता है जैसा खुद कप्तान धौनी ने मैच के बाद किया भी। हरभजन का अनुभव व अश्विन और ओझा का दाएं और बांए हाथ का काम्बिनेशन होने के बावजूद सिर्फ ओझा ही विकेट बटोरते दिखे। भज्जी और ओझा को जो विकेट मिले वह अधिकतर पुछल्ले बल्लेबाजों के ही रहे। मैच से पहले शेन वार्न ने कहा था कि पिच की बातें करके धौनी माइंड गेम खेल रहे हैं, शायद उनकी बात सही भी थी क्योंकि इस माइंड गेम के चक्कर में वह अपने ही गेंदबाजों को असमंजस में छोड़ गए और इसका पूरा फायदा इंग्लैंड के फिरकी गेंदबाजों ने उठाया।

हार के पीछे तीसरा अहम कारण था हमारे फिरकी गेंदबाजों का लगातार इंग्लिश बल्लेबाजों को ऐसी गेंदें देना जिस पर वह बैकफुट पर जाकर आराम से शाट खेल सकें जबकि इंग्लैंड के गेंदबाजों ने खासतौर पर मोंटी पनेसर ने ऐसी गेंदों का उपयोग किया जिन पर भारतीय बल्लेबाजों को मजबूरन फ्रंट फुट पर खेलना पड़ा जिस चक्कर में कई बार बल्लेबाज चूके, कुछ दिग्गज बोल्ड हुए तो कुछ कैच और स्टंपिंग का शिकार हुए।

हार का चौथा कारण रहा भारतीय टीम के उन बल्लेबाजों का फ्लाप होना जिनसे जरूरत के समय सबसे ज्यादा उम्मीदें थीं। इनमें सबसे ऊपर नाम आता है सचिन तेंदुलकर का जिन्होंने अहमदाबाद में ना सही लेकिन अपने घरेलू मैदान मुंबई पर भी शर्मनाक प्रदर्शन किया जबकि वह मुंबई में ही सीरीज से ठीक पहले रणजी मैच में शतक लगाकर आए हैं। सचिन की नाकामयाबी से टीम का हौसला भी टूटा और मिडिल आर्डर सीरीज में लगातार चौथी बार दबाव में आ गई। इसके अलावा पहले मैच के शतकवीर वीरेंद्र सहवाग और लगातार दूसरा शतक जड़ने वाले चेतेश्वर पुजारा भी दूसरी पारी में फ्लाप साबित हुए। युवराज सिंह का बल्ला भी मुंबई में बिल्कुल ठंडा रहा और कप्तान धौनी को अच्छी बल्लेबाजी करते देख तो जमाना हो गया। वहीं, गौतम गंभीर अब तक फ्लाप साबित हो रहे थे लेकिन दूसरी पारी में जब वह फार्म में लौटते दिखे तो किसी ने उनका साथ नहीं दिया और ताश के पत्तों की तरह सभी धुरंधर दूसरे छोर पर आउट होते चले गए। वहीं अगर इंग्लिश बल्लेबाजों को देखा जाए तो विपरीत परिस्थितियों में खेलने के बावजूद उनके कप्तान और अनुभवी बल्लेबाज केविन पीटरसन ने इस अंदाज में बल्लेबाजी की मानो वह एक दोयम दर्जे की टीम के खिलाफ खेल रहे हों। आखिर आप अनुभवी बल्लेबाजों को अगर आराम से पीछे हटकर खेलने की छूट दोगे तो नतीजा भी यही होगा।

पांचवां और सबसे अहम कारण जो इतना उजागर तो नहीं हुआ लेकिन फिर भी वह गंभीर कारण ही है। यह है कप्तान की सोच- महेंद्र सिंह धौनी का हर क्षेत्र में असफल होना और एलिएस्टर कुक का जमकर खेलना भी लगातार टीम को लीड भी करना। कुक और धौनी के कप्तानी अनुभव में जमीन-आसमान का अंतर है लेकिन दोनों के प्रदर्शन का अंतर ही टीम इंडिया को ले डूबा। एक तरफ थे कप्तान माही जिन्होंने हाल के समय में अपने बयानों से ज्यादा सुर्खियां बटोरी हैं ना कि प्रदर्शन से जबकि एलिएस्टर कुक लगातार भारत में खुलकर मेजबान गेंदबाजों की धुनाई करते रहे। कुक की स्ट्रैटजी में भी पैनापन दिखा और उनकी बल्लेबाजी में भी जबकि धौनी की ना तो बल्लेबाजी में कुछ खास दिखा और ना कप्तानी में। जाहिर तौर पर अगर टीम इंडिया को अगले दो टेस्ट में वापसी करनी है तो कप्तान को खुद आगे से लीड करना होगा ताकि टीम को हौसला मिले और विरोधी टीम में विरोधी कप्तान की स्ट्रैटजी का खौफ पैदा हो जिससे दबाव बनाने में आसानी हो।

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