दुनिया करे सलाम
खुद पर भरोसा हो तो राह जरूर निकलती है और मंजिल दूर नहीं लगती। रूढिय़ां राह नहीं रोकतीं और एक दिन विरोधी भी हो लेते हैं साथ। नए दौर की लड़कियां इसी फलसफे पर यकीन करती हैं और बढ़ती जाती हैं आगे... और आगे। इनके जोश और जज्बे पर इनके
खुद पर भरोसा हो तो राह जरूर निकलती है और मंजिल दूर नहीं लगती। रूढिय़ां राह नहीं रोकतीं और एक दिन विरोधी भी हो लेते हैं साथ। नए दौर की लड़कियां इसी फलसफे पर यकीन करती हैं और बढ़ती जाती हैं आगे... और आगे। इनके जोश और जज्बे पर इनके परिवार और परिचितों को नाज है और इस नाजो-ख्याल के दम पर वे दुनिया में बजा रही हैं अपनी कामयाबी का डंका...
सपने देखने में यकीन रखती हैं। खूबसूरत, सजीले, कोमल सपने ही नहीं, ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरते हुए, पहाड़ से, असंभव से जान पडऩे वाले बड़े विशालकाय सपने भी। उन्हें इस बात का डर नहीं कि यदि कामयाबी न मिली तो लोग क्या कहेंगे? बस इतना जानती हैं कि असंभव या नामुमकिन जैसे शब्द वहीं ज्यादा देर तक टिक पाते हैं जहां खुद की क्षमता पर कोई संशय रह जाए। कंफर्ट-जोन से बाहर निकलो, लीक से हटकर सोचो, हौसला रखो, इतना सक्षम बन जाओ कि दुनिया की नजर तुम पर टिक जाए...। हर किसी को प्रेरित करते हैं इनके ये बोल। आइए मिलते हैं ऐसी ही कुछ लड़कियों से, जिन्होंने अलग-अलग क्षेत्रों में बनाई है अपनी पहचान।
शुरुआत कभी भी
स्निग्धा मनचंदा, एंटरपे्रन्योर, गोवा
चाय की शौकीन हूं मैं। मैंने मैनेजमेंट कोर्स किया और आठ साल मीडिया कम्युनिकेशन में भी काम किया। मेरा पैशन टी ही था, इसलिए श्रीलंका से इसमें कोर्स किया और अपना ऑनलाइन स्टोर शुरू किया। मेरे स्टोर दुनिया के तकरीबन बारह देशों में हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, सिंगापुर आदि देशों में टी ट्रंक ब्रांड को लोग खूब पसंद करते हैं। भारत के कई शहरों के रेस्तरां, फाइव स्टार होटल में भी मेरी चाय सर्व होती है। पिछले दिनों मैं वल्र्ड टी एक्सपो में एक स्पीकर के तौर पर गई थी। मेरा ख्याल है कि किसी चीज में रुचि हो तो आजकल एक्सप्लोर करना आसान है, क्योंकि इंटरनेट है।
मेरी बात: कल कभी नहीं आता, अच्छी शुरुआत का बेहतर मुहूर्त आज और अभी होता है।
लिखेंगे नई कहानी
चंदन तिवारी, सिंगर, भोजपुर
तीन साल की थी तब से गा रही हूं। मां को गाते सुनती थी तो अच्छा लगता था। मेरी मां लोकगीत गायिका हैं। झारखंड में पापा के साथ रहते हुए पढ़ाई हुई। टीवी शो किए। रेडियो में प्रोग्राम किया। भोजपुरी सिनेमा में भी गाने का अवसर मिला। इतना कुछ पा लेने के बाद अहसास हुआ कि इन चीजों से मुझे क्या हासिल हुआ? क्या इससे हमारी संस्कृति, हमारी भाषा की पहचान पर कोई फर्क पड़ा? ये कुछ सवाल थे, जो मुझे परेशान करते रहते। अंदर से बेचैनी रहती कि ऐसा क्या किया जाए कि अपनी संस्कृति-भाषा के लिए कुछ कर सकें। आखिरकार पुरबिया तान नामक वेबसाइट बनाने की प्रेरणा मिली। हम तीन लोगों ने मिलकर यह वेबसाइट बनाई और इसके तहत स्वस्थ गाने लोगों तक पहुंचाने का जिम्मा उठाया। भोजपुर की संस्कृति और उसकी खुशबू को देश-दुनिया में फैलाने का अवसर अब जाकर मिला है मुझे। भोजपुरी भाषा में जो गाने आते हैं, उससे इसकी छवि धूमिल हुई थी। अपने कैंपेन के माध्यम से मैं इस कसक को खत्म करना चाहती हूं। इसके लिए खूब मेहनत कर रही हूं। देशभर में मेरे शो हो रहे हैं और खूब तारीफें मिल रही हैं। बाहर के देशों से भी आमंत्रण मिले हैं।
मेरी बात: चुनौतियां तो आती-जाती रहती हैं। सफर में रहना है तो इसकी आदत होनी चाहिए।
कुछ सार्थक किया जाए
एलिसा पटेल क्रिस, अभिनेत्री व हॉलीवुड निर्देशक, बड़ोदरा
जब मैं बड़ोदरा से मुंबई गई थी। कॅरियर की दिशा में वह मेरा पहला कदम था। नई जगह, नए लोगों से एडजस्ट कर रही थी और सीख रही थी जिंदगी का पहला सबक कि आगे बढऩे के लिए चुनौतियां जरूरी हैं। मेरा लक्ष्य साफ था कि एंटरटेनमेंट में अपनी अलग पहचान बनानी है, सो मुश्किलें हावी न हो सकीं। भारत में कई टीवी शोज करने के बाद मैंने फिल्में भी कीं और एक वक्त ऐसा आया कि मुझे हॉलीवुड में जाने का अवसर मिला। यह मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा सपना था। मेरे माता-पिता जज रहे हैं। उन्होंने सार्वजनिक जीवन में जिन ऊंचाइयों को छुआ है, वही मेरे लिए सबसे बड़ी प्रेरणा है। मैं हमेशा चाहती थी कि कुछ ऐसा किया जाए, जो देश और समाज के लिए सार्थक हो। इसलिए मैंने हॉलीवुड में इश्यू बेस्ड फिल्मों का निर्माण किया। बॉर्डर क्रॉस अगले ही साल आने वाली है। यह मानव व्यापार मुद्दे से जुड़ी फिल्म है। दूसरी फिल्मों पर भी काम जारी है।
मेरी बात: सही वक्त पर लक्ष्य तय कर लिए जाएं तो आपके पास काफी कुछ करने का वक्त होगा। अपने फैसले को लेकर गंभीर रहें, धैर्य कभी न खोएं।
बनना है इंटरनेशल खिलाड़ी
स्नेहा शर्मा, पॉयलट, रेसर, मुंबई
जब पहली बार कार्टिंग रेस के बारे में घर में सबको बताया तो उन्होंने मेरी सेफ्टी को सोचकर इस खेल से दूर रहने की सलाह दी, पर अपने पैशन के आगे मैं किसी की नहीं सुन सकती। पढ़ाई में भी कोई कोताही नहीं बरती। रेसिंग ट्रैक पर ही पॉयलट एंट्रेंस की तैयारी की और पहले प्रयास में चुनी गई। लोग कहते हैं मेरी सोशल लाइफ खत्म हो रही है, पर मैंने इसका तरीका भी ढूंढ़ लिया है, फ्रेंड्स और रिलेटिव्स को ट्रैक के करीब ही बुला लेती हूं। यह खेल काफी महंगा है। इसलिए मैंने मोटर रेस में ही छोटी-मोटी नौकरियां भी की हैं। इंडिगो एयरलाइंस में हूं, वहां से मुझे काफी सपोर्ट मिला है। अब मेरे प्रायोजक भी हैं, इसके बावजूद मैं अपनी सैलरी भी खेल के लिए लगाती हूं। जब मैंने रेसिंग में भाग लेना शुरू किया था, इक्का-दुक्का लड़कियां थीं। यह सुनकर खराब लगता था जब कोई कहता कि लड़की से रेस में हारना पड़ रहा है! अच्छा लगता है कि अब लड़कियां भी इस खेल में रुचि दिखा रही हैं। मैंने कई नेशनल कार्टिंग चैंपियनशिप्स जीती हैं। इंटरनेशनल रेस के ऑफर मिले हैं, पर जॉब की रिस्पॉन्सिबिलिटी अभी यह करने से रोकती है। हालांकि इंटरनेशल रेसर बनना है मुझे।
मेरी बात: छोटे से शुरुआत करें, अपने पैशन को तलाशें और उसे पूरा करने में जुट जाएं।
मुश्किलें हैं तो हौसला है
भक्ति शर्मा, तैराक, उदयपुर
दुनिया के पांच महासागरों को पार करने का रिकॉर्ड कायम किया है। यह संभव न होता, अगर अपनी मां से कभी हार मत मानो की अहमियत न जानी होती। मेरी मां नेशनल स्तर की तैराक रही हैं। मां से ही मैंने तैराकी सीखना शुरू किया और कई रिकाड्र्स के साथ गिनीज बुक में भी मेरा नाम है। दुनिया की सबसे कम उम्र की और पहली एशियाई महिला होने का गौरव प्राप्त है। तैराकी मेरा मिशन है। मैं तैराकी में रुचि रखने वाली लड़कियों को प्रशिक्षण भी देती हूं। राष्ट्रपति से जब तेनजिंग नोर्वे नेशनल एडवेंचर अवॉर्ड मिला तो मेरा हौसला और बढ़ा। दरअसल, मुश्किलें ही हमें आगे बढऩे के लिए प्रेरित करती हैं। आप खुद सोचिए जमा देने वाली सर्दी में लगातार कई किलोमीटर तैरते रहना और वल्र्ड रिकॉर्ड कायम करना आसान है क्या, पर कहते हैं न मुश्किलें जितनी बड़ी होती हैं हौसला भी बढ़ता जाता है।
मेरी बात: यदि आपने कुछ ठाना है तो पीछे मत देखिए, उसे पूरा करने में पूरी ताकत झोंक दीजिए।
ठान लिया तो डरना कैसा
पल्लवी सिंह, हिंदी टीचर, दिल्ली
दो सौ से ज्यादा छात्रों को पढ़ा चुकी हूं। मेरे ज्यादातर स्टूडेंट्स विदेशी हैं। इनमें बॉलीवुड अभिनेत्री जैकलिन फर्नांडिस, कनाडा की जानी-मानी सिंगर नताली डी लूसियो आदि हैं। मैंने इंजीनियरिंग की है और साइकोलॉजी की डिग्री भी ली है। दिल्ली में फॉरेन एक्सचेंज स्टूडेंट्स को हिंदी पढ़ाना शुरू किया तो मुझे इस काम से लगाव हो गया। धीरे-धीरे फुलटाइम इसी काम से जुड़ गई हूं। सोशल साइट और अपनी वेबसाइट से मेरे स्टूडेंट्स मुझसे जुड़ते हैं और उनकी डिमांड के मुताबिक, उनकी बताई जगह पर पहुंचकर मैं उन्हें हिंदी पढ़ाने पहुंच जाती हूं। स्काइप, वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए सिखाती हूं। हिंदी सिखाने का मॉड्यूल मैं खुद बनाती हूं। इसके जरिए अमूमन स्टूडेंट्स तीन माह में हिंदी सीख लेते हैं। लोग पूछते हैं कि जब यही करना था तो क्यों इंजीनियरिंग की या हायर एजुकेशन लिया, लेकिन सबके सवालों के जवाब आप अपने काम से दीजिए, इसी में यकीन करती हूं। मैं भी आलीशान जॉब चुन सकती थी, बढिय़ा सैलरी हो सकती थी, लेकिन ऐसा आनंद कहां मिलता, जो मैंने खुद के बूते हासिल किया है!
मेरी बात: खेलोगे नहीं तो जीतोगे कैसे। यह याद रखें और खुद को अपने काम में दक्ष बनाएं।
सीमा झा