महिलायें ना करें स्पेशल ट्रीटमेंट की डिमांड
बैगिट नाम से बैग का बिजनेस करने वाली नीना लेखी कहती हैं कि कई ऐसे मौके आए, जब मैं हताश हो गई, लेकिन अंदर से हार स्वीकार नहीं की और मन में निश्चय किया कि मुझे आगे बढ़ना है। अंजाम चाहे जो हो.....
मेरी सोच है कि जिंदगी को उसी रूप में स्वीकार करें, जैसी वह आपको मिली है। मैं खुद को कर्मयोगिनी मानती हूं। मेरी सोच है कि महिला होने के फायदे न मानते हुए स्वयं को एक इंसान के रूप में मानिए और समाज में अपना कर्म करते रहिए। एक तरफ तो हम यह कहते हैं कि समाज क्यों स्त्री और पुरुष में फर्क करता है? क्यों अमूमन पुरुषों को अधिक तनख्वाह दी जाती है तो दूसरी तरफ बहुत सी महिलाएं यह चाहती हैं कि उन्हें स्पेशल ट्रीटमेंट मिले। इस बारे में सोच है नो... नेवर... आप स्वयं को एक व्यक्ति मानिए। मेरा पूरा विश्वास कुछ इसी तरह का हो गया। अपने मस्त-मौला स्वभाव के कारण मैंने खुद के कॅरियर के प्रति बहुत बड़े सपने ही नहीं देखे। साइक्लिंग, स्विमिंग आदि में ही मगन रही।
हालांकि जब स्विमिंग करने जाती थी तो लगता था कि स्विमिंग के लिए जब लड़कियां जाती हैं तो उनकी जरूरत के हिसाब से अलग बैग हो। इसी प्रकार जब जिम जाना हो उस समय के लिए अलग बैग हो, लेकिन उस दौर में जरूरत के हिसाब से इस तरह की बैग नहीं बनती थीं। बैग मेकिंग के लिहाज से वह मेरा पहला कदम था। यह कहावत तो आपने भी सुनी ही होगी कि जरूरत ही हर खोज की जननी होती है। इसलिए मैंने कैनवास की बैग्स बनाईं। मैं अपने कुछ सपने बुनने लगी थी।
इस चक्कर में कॉलेज में मुझे एक परीक्षा में अपीयर होने का मौका नहीं मिला और मेरा एक वर्ष बेकार चला गया। इतना ही नहीं आगे चलकर मुझे एक और संकट का सामना करना पड़ा। मैंने सोफिया पॉलिटेक्निक में एडमिशन लिया। मेरी परफॉरमेंस अच्छी होने के बावजूद मुझे इंडियन टेक्सटाइल में फेल कर दिया गया। लगातार जीवन में दूसरा झटका लगा। इससे मेरी महत्वाकांक्षाएं धूमिल हो गईं।
फिर मैंने स्क्रीन प्रिंटिंग और इंटीरियर डेकोरेशन की पार्ट टाइम क्लासेज अटेंड कीं। पढ़ाई करने के साथ-साथ मैंने सेल्सगर्ल की नौकरी भी की। मैं शुक्रगुजार हूं अपने परिवार की, सबने मुझे बहुत सपोर्ट किया। मैंने सपने में भी कभी नहीं सोचा था कि मैं अपने जीवन के किसी मोड़ पर सौ करोड़ के टर्न ओवर वाला बिजनेस कर पाऊंगी। वर्तमान में साठ से अधिक शहरों में हमारे बैग्स बिक रहे हैं।
-संगिनी फीचर
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