सरदार के ही किरदार निभाने हैं: दिलजीत
‘उड़ता पंजाब’ के बाद अब ‘फिल्लौरी’ से दर्शकों का दिल जीतने की तैयारी में है दिलजीत दोसांझ। अपनीजड़ों को याद करते हुए वह साझा कर रहे हैं अभिनय और संगीत से जुड़ी ख्वाहिशें..
पंजाब के दिलजीत दोसांझ ने हिंदी फिल्मों में जोरदार दस्तक दी है। ‘उड़ता पंजाब’ से मिली पहचान और सराहना के बाद वह ‘फिल्लौरी’ में आ रहे हैं। पंजाबी म्यूजिक और फिल्मों में दिलजीत ने काफी नाम कमाया है। सभी उनकी विनम्रता को नोटिस कर रहे हैं।काम के सिलसिले में पंजाब, दिल्ली, मुंबई और देश के अन्य शहरों में उनका आना-जाना लगा रहता है। अभी उनके मां-पिता लुधियाना में रहते हैं। फुर्सत मिलते ही दिलजीत लुधियाना भागते हैं। पिछले दिनों अनुष्का शर्मा के ऑफिस में उनसे मुलाकात हुई।
पहली जिज्ञासा उनकी विनम्रता को लेकर ही थी। दिलजीत सहज भाव से बताते हैं, ‘दिखावा अधिक दिन तक नहीं चल सकता। मैं गांव से हूं। मैंने बहुत नीचे से शुरुआत की है। दसवीं के बाद मैं ग्यारहवीं की पढ़ाई इसलिए नहीं कर सका कि मेरे पिता जी सपोर्ट करने की स्थिति में नहीं थे। पूरा परिवार उनके वेतन पर निर्भर करता था। मैं नहीं कहूंगा कि मैं विनम्र हूं, लेकिन मैं इंसान की कद्र और कीमत जानता हूं। हमारी सफलता-असफलता प्रभाव डालती है। संतों पर उनका असर नहीं होता। मैं संत नहीं हूं। कभी कुछ दिमाग में चढ़ता भी है तो मैं उसे बुखार की तरह उतार देता हूं। पंजाब में कोई विनम्र कलाकार है, तो वह गुरदास मान हैं। मैं उन जैसा तो नहीं हो सकता, लेकिन अपनी जमीन से जुड़े रहने की कोशिश सदा करता हूं।’
दिलजीत की जिंदगी में उनके मामा देवेंद्र सिंह की अहम भूमिका है। वह उन्हें याद करते हैं, ‘मामा ही मुझे शहर लेकर आए। एक बहन और दो भाइयों का मेरा परिवार लुधियाना में ही रहता है।’ दिलजीत का सरनेम दोसांझ उन्हें अपने गांव से मिला है। उस इलाके में अनेक परिवारों में यही सरनेम चलता है। दिलजीत को बचपन से संगीत का शौक था। संगीत के प्रति अपने रुझान के बारे में कहते हैं, ‘सबसे पहले मैंने तबला बजाना सीखा। फिर करतार सिंह से वोकल की ट्रेनिंग ली। इस लाइन में आने पर लोकगायकी में ज्यादा मन लगा। गुरु ग्रंथ साहब से राग और सबद सीखे। मैंने लोकगीतों की अधिक तालीम नहीं ली है। मुझे याद है कि मेरे गुरु ने मुझसे पूछा था कि मुझे सिर्फ तारीफें चाहिए या पैसा भी चाहिए? मैंने कहा था कि पैसे भी चाहिए...तब उन्होंने सुझाव दिया था कि तुम्हें परफॉर्मर सिंगर बनना होगा।’ दिलजीत दोसांझ एक्टर होने के साथ ही सिंगर और परफॉर्मर हैं।
सवाल है कि भारत में कोई सिंगर परफॉर्मर विदेशी गायकों की तरह पॉपुलर क्यों नहीं हो पाता? उन्हें माइकल जैक्सन और शकीरा जैसी लोकप्रियता क्यों नहीं मिलती? दिलजीत के पास इस संदर्भ में अपने तर्क हैं। वह कहते हैं, ‘मुझे लगता है कि वेस्टर्न म्यूजिक की बातें ज्यादा होती हैं, इसलिए वे हमें ज्यादा लोकप्रिय लगते हैं। वे अंग्रेजी में गाते हैं। पूरी दुनिया में उनके श्रोता हैं। पंजाब की बात करें तो गुरदास मान हैं। देश में दलेर मेंहदी साहब ने बहुत नाम कमाया। अगर हिंदी या पंजाबी पूरी दुनिया में सुनी जाती तो वे उनसे भी बड़े रॉक स्टार होते। हम नए लोग भी मौके की तलाश में हैं। आप गंगनम को लें...उनकी तो किसी ने भाषा भी नहीं समझी और वे पूरी दुनिया में देखे गए।’
फिलहाल दिलजीत दोसांझ की फिल्म ‘फिल्लौरी’ आ रही है। इस फिल्म के लिए दिलजीत के ‘हां’ कहने की वजह इसकी कहानी रही। वह बताते हैं, ‘क्लाइमेक्स तक आते-आते मैं रो पड़ा। अगर दर्शक भी वैसा फील करें तो बड़ी बात होगी। अनुष्का शर्मा की ‘एनएच 10’ मैंने देख रखी है। उसका भी सब्जेक्ट अच्छा था। मेरा किरदार बिगड़ा हुआ आर्टिस्ट है। बाद में सुधर जाता है। निर्देशक अंशय लाल ने बहुत अच्छी फिल्म बनाई है। इसमें भी मैंने सरदार की ही भूमिका निभाई है। मेरे लिए उसके बिगड़े अंदाज को पकड़ना मुश्किल था। मैंने निजी जिंदगी में कभी ऐसा बात-व्यवहार नहीं किया है।’ दिलजीत फिल्मों में सरदार की ही भूमिका निभाना चाहते हैं। क्या उन्हें ऐसी भूमिकाएं मिल पाएंगी? दिलजीत पूरे आत्मविश्वास से कहते हैं, ‘जरूर मिलेंगी। मुझे नहीं मालूम है कि आगे क्या होगा? फिर भी ऐसा लगता है कि अच्छा होगा। कुदरत बलवान और शैतान है। वह सब कर देती है। अच्छा और बुरा दोनों।’
-अजय ब्रह्मात्मज
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