नहीं था प्लान बी: विकी कौशल
अपनी पहली ही फिल्म ‘मसान’ से भरपूर शोहरत पाने वाले विकी कौशल अब संजय दत्त पर आधारित बायोपिक कर रहे हैं। इसके अलावा कई बड़े बैनर्स की फिल्में उनकी झोली में हैं...
आपने लीक से हटकर बनी फिल्मों से शुरुआत की। अब इमेज बदलने की तैयारी है?
इमेज बनाना ऑडियंस के हाथ में होता है। अगर मैं कैलकुलेटिव हो जाऊंगा तो कलाकार नहीं रहूंगा। बतौर कलाकार मुझमें हमेशा नया करने की भूख रहती है। ‘मसान’ के बाद निगेटिव किरदार निभाने की इच्छा थी। ‘रमन राघव2’ में यह मौका मिल गया। जल्द ही निर्माता रोनी स्कू्रवाला की फिल्म ‘लव पर स्क्वायर फीट’ में पहली बार कॉमेडी करता दिखूंगा।
बचपन में किसी कलाकार सरीखा बनने का सपना नहीं संजोया?
मैंने अभिनेता बनने का नहीं सोचा था। मेरी प्रेरणा पापा(श्याम कौशल) रहे हैं। पंजाब के छोटे से गांव से निकलकर उन्होंने बहुत संघर्ष किया। पापा प्रोफेसर बनने के ख्वाहिशमंद थे। वह ख्वाब पूरा नहीं हो सका। वहां से मुंबई आए। सेल्समैन की नौकरी की। उनकी एक स्टंटमैन से मुलाकात हुई। पहले स्टंटमैन फिर एक्शन डायरेक्टर बने। आज वे इंडस्ट्री का स्थापित नाम हैं। यह सब वो प्लानिंग के साथ तो कर नहीं सकते थे। उन्होंने हमेशा यही सीख दी, अपने काम को हमेशा ईमानदारी से करना। परिणाम की चिंता मत करना। मैंने हमेशा उसका पालन किया। मैंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई शिद्दत से की। मुझे नौकरी का अप्वॉइंटमेंट लेटर भी मिल गया था। मैंने जब एक्टर बनना तय किया तब उस जॉब लेटर को फाड़ दिया था ताकि मेरे पास कोई प्लान बी न रहे।
‘रमन राघव-2’ में इंस्पेक्टर की भूमिका निभाने के लिए आप दुनिया से कट गए थे। किरदारों को आत्मसात करने की प्रेरणा कहां से मिली?
मुझे बहुत अच्छे गुरु मिले हैं। मैंने नमित किशोर के एक्टिंग स्कूल से अभिनय के गुर सीखे थे। नसीरुद्दीन शाह, मानव कौल से भी सीखा। काम के एथिक्स मुझे ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ के दौरान समझ आए। उसमें मैं अनुराग कश्यप का असिस्टेंट था। वहां दिग्गज एक्टरों के साथ बातचीत का अवसर मिला। उनसे थिएटर की अहमियत पता चली। नवाज भाई ने बताया था कि ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ में पहले दिन की शूटिंग के दौरान अनुराग सर ने उनसे कहा था कि तुम फैजल बनने की कोशिश कर रहे हो। यकीन नहीं कर रहे हो कि फैजल हो। वह रातभर सड़कों पर टहलते रहे थे। उनका मकसद खुद को यह एहसास कराना था कि वही फैजल खान हैं। उस इलाके के डॉन हैं। यह सीख उनसे बातचीत में मिली थी। ‘मसान’ की शूटिंग से पहले मैं बनारस में यह सोचकर घूमता रहा कि मैं ही दीपक हूं। ‘रमन राघव-2’ में मैंने किरदार की इमोशन जर्नी को समझा। वह क्यों विद्रोही है, उसके नाखुश होने की क्या वजह है, उसकी मानसिक स्थिति को समझना जरूरी था। मैं चार दिन घर में कैद रहा। अकेले रहने पर आप चिड़चिड़े हो जाते हैं, तब उस मन:स्थिति को बेहतर तरीके से पर्दे
पर उतार पाते हैं।
संजय दत्त की बायोपिक से कैसे जुड़ना हुआ?
फिल्म के कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबड़ा हैं। उन्होंने ऑडिशन के लिए बुलाया। एक हफ्ते के भीतर राजकुमार हिरानी सर ने नैरेशन के लिए बुलाया। उन्होंने कहा कि तुम यह किरदार निभा रहे हो। मेरी खुशी की सीमा नहीं रही। यकीन नहीं हुआ कई दिन तक। मैं हिरानी सर का बचपन से फैन हूं। मैं 12वीं में था जब ‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’ आई थी। हम कॉलेज बंक करके फिल्म देखने गए थे। उसे देखकर मैं विस्मित रह गया था। मेरे लिए उनके साथ काम करना सपने सरीखा था। वे बेहद विनम्र हैं। इतनी सफलता के बावजूद जमीन से जुड़े हैं।
बायोपिक में आप संजय दत्त की जिंदगी के पन्ने पलटेंगे। उनकी जिंदगी के किस पहलू से आप बखूबी वाकिफ हैं?
संजय दत्त की फिल्में देखकर हम बड़े हुए हैं। मेरे लिए उनकी जिंदगी का एक हिस्सा निभाना बहुत बड़ी बात है। उस वजह से मैंने उनकी जिंदगी को नए दृष्टिकोण से देखा है।
आपके भाई अक्षय कुमार के साथ ‘गोल्ड’ कर रहे हैं। आपकी खेलों में कितनी रुचि रही है?
खेल हम सभी को पसंद हैं। वहां से कई प्रेरणादायक कहानियां निकलती हैं। कई खिलाड़ी कड़े संघर्ष के बाद मुकाम बना पाते हैं। उन्हें स्क्रीन पर देखना भाता है। सनी को अक्षय कुमार के साथ काम का मौका मिला है। फिलहाल उसकी हॉकी की ट्रेनिंग चल रही है।
आपके पिता आपके एक्शन डायरेक्टर बनें, इसकी कितनी तमन्ना है?
हम दोनों भाइयों की उनके साथ एक्शन करने की तमन्ना है। ‘जुबान’ में मुझे उनके साथ थोड़ा सा एक्शन करने का मौका मिला था। पापा भी मजाक करते हैं कि तुमने चार फिल्में कर ली हैं। अभी तक एक्शन करने का मौका नहीं मिला है!
आपने पहला ऑटोग्राफ किसका लिया था?
नाना पाटेकर साहब का। मैं उन्हें नाना अंकल कहता हूं। वे मेरे पापा के बड़े भाई के माफिक हैं। मेरी मां उन्हें राखी बांधती हैं। पापा ने उनकी काफी फिल्में की हैं। पापा की नाना अंकल के साथ पहली फिल्म ‘प्रहार’ थी। मुझे याद है कि वे हमारे एक बेडरूम हॉल वाले घर में आए थे। वहां मेरे सारे दोस्त मराठी थे। मुझे पता था कि नाना हीरो हैं पर मेरे लिए अंकल थे। वो डिनर पर हमारे यहां आए थे। घर के बाहर नाना को देखने के लिए भीड़ इकट्ठा हो गई थी। सब ‘नाना’ ‘नाना’ चिल्ला रहे थे। मेरे दोस्त उनका ऑटोग्राफ ले रहे थे। मुझे लगा कि मुझे भी लेना चाहिए!
-स्मिता श्रीवास्तव
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