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प्रतिभा बिना तरक्की संभव नहीं

प्रमुख फिल्मी खानदान से होते हुए भी अभिनय की दुनिया में न आकर उन्होंने ऐसी राह चुनी, जहां से लाखों लोगों को अपनी राह बनाना आसान हो जाए। विदेश में रहकर पढ़ाई करने के बावजूद वह अपने संस्कारों से गहरे जुड़ी हैं। हम बात कर रहे हैं व्हिसलिंग वुड्स इंटरनेशनल

By Babita kashyapEdited By: Published: Mon, 16 Nov 2015 01:34 PM (IST)Updated: Mon, 16 Nov 2015 01:37 PM (IST)
प्रतिभा बिना तरक्की संभव नहीं

प्रमुख फिल्मी खानदान से होते हुए भी अभिनय की दुनिया में न आकर उन्होंने ऐसी राह चुनी, जहां से लाखों लोगों को अपनी राह बनाना आसान हो जाए। विदेश में रहकर पढ़ाई करने के बावजूद वह अपने संस्कारों से गहरे जुड़ी हैं। हम बात कर रहे हैं व्हिसलिंग वुड्स इंटरनेशनल की प्रमुख मेघना घई की...

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मेघना घई शोमैन के नाम से प्रसिद्ध फिल्ममेकर सुभाष घई की बेटी हैं। वह आसानी से अपने पिता के पदचिन्हों पर चल सकती थीं, मगर उन्होंने अलग राह चुनी। उन्होंने लंदन के प्रतिष्ठित किंग्स कॉलेज से बिजनेस मैनेजमेंट में स्नातक और कम्युनिकेशन, एडवरटाइजिंग और मार्केटिंग में एडवांस डिप्लोमा किया है। कॅरियर के शुरुआती दौर में वह अपने पिता की फिल्म 'परदेस', 'ताल' और 'यादें' की मार्केटिंग से जुड़ीं। उन्होंने एक्टिंग से दूरी बनाए रखी। जब सुभाष घई ने अपने ड्रीम प्रोजेक्ट व्हिसलिंग वुड्स इंटरनेशनल को खोलने की योजना बनाई, तभी इसकी बागडोर अपनी बेटी के हाथों में सौंपने का फैसला कर लिया था। मेघना ने पिता के सपनों को साकार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने इंस्टीट्यूट को कामयाबी की बुलंदियों पर पहुंचाया। आज इंस्टीट्यूट की गिनती दुनिया के बेहतरीन फिल्मी स्कूलों में होती है। मेघना दो बच्चों की मां भी हैं। उनके पति राहुल पुरी मेघना का हाथ बंटाने के लिए लंदन से भारत शिफ्ट हुए। अपनी सफलता का श्रेय मेघना अपने पिता और पति को देती हैं।

दूर करनी थीं भ्रांतियां

मेघना कहती हैं, बच्चों का कॅरियर बनाना और उन्हें शिक्षित करना बेहतरीन काम है। मेरे पिता ने सोच रखा था जब भी उनके पास पैसा आएगा वे फिल्म और मीडिया से जुड़ा इंस्टीट्यूट खोलेंगे। पुणे से मुंबई आने पर उन्हें खुद काफी संघर्ष करना पड़ा था। वह चाहते थे कि यह दिक्कतें औरों को न झेलनी पडें़, उन्हें सही मार्गदर्शन मिले। इस विचारधारा से इस इंस्टीट्यूट की नींव रखी गई। हमारा मकसद बच्चों को फिल्म क्षेत्र की जानकारियां देना है। इस क्षेत्र को लेकर भ्रांतियां हैं कि शुरुआत में बहुत संघर्ष है। बच्चे हों या अभिभावक सभी शंकित रहते थे। हमें यह पता था कि हम इनसे जो फीस चार्ज करेंगे उससे कहीं ज्यादा इन्हें लौटाना है। इस विचारधारा पर हम ईमानदारी से काम कर रहे।

पिता ने किया संघर्ष

मेरे पिता की जिंदगी उतार-चढ़ाव भरी रही है। उन्हें संघर्ष झेलने की आदत सी हो गई है। जब मैं दो साल की थी तब कर्ज रिलीज हुई थी। इसके बाद से हमेशा उन्हें सफल देखा है। हालांकि जब मैंने उनका इंस्टीट्यूट जॉएन किया तब मैंने उनका संघर्ष देखा। तब पाया उनके काम में कितनी मेहनत और रिजेक्शन है। बतौर निर्देशक सभी के इगो को संभालना पड़ता है। यह अपनी तरह का अलग संघर्ष है। इंस्टीट्यूट खोलने के बाद कुछ दिक्कतें आईं। शुरू के दो साल हमारे लिए बेहद कठिन थे। यही वह समय था जब मैं उनकी हमकदम थी। उस समयांतराल में मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा।

मिली पूरी आजादी

एक्टिंग से दूरी को लेकर मेघना कहती हैं, करीब तेरह साल की उम्र से पापा के आफिस जाती थी। हर विभाग में जाकर बैठ जाती थी। मैंने रिसेप्शन पर कॉल भी अटेंड की है। 'परदेसÓ में स्क्रिप्ट से लेकर मार्केटिंग के कार्यों से जुड़ी रही। प्रोडक्शन में भी काम किया। मैंने फिल्ममेकिंग का पूरा प्रॉसेस देखा है। मैंने पाया कि मेरी रुचि मार्केटिंग या प्रशासनिक चीजों में है। मेरे पैरेंट्स ने फिल्म लाइन में आने को लेकर कभी दबाव नहीं डाला। मेरे मम्मी-पापा ने मुझे कॅरियर चुनने की पूरी आजादी दी। उन्होंने मुझे लक्ष्य ऊंचा रखने के लिए प्रेरित किया। मैं उनकी अकेली संतान हूं। पापा काम में व्यस्त रहते। अकेली संतान होने के बावजूद मम्मी ने मुझे विदेश भेजा। उन्होंने मुझे हमेशा फोकस रहने को कहा। यह उनके संस्कार हैं कि विदेश में रहने के बावजूद मैं आज भी अल्कोहल आदि नहीं लेती। यह सच है कि घई सरनेम की वजह से मुझे फिल्में आसानी से मिल सकती थीं, लेकिन मैंने यह भी देखा है कि सरनेम के बल पर कोई इंडस्ट्री में नहीं टिक सकता। बिना प्रतिभा के तरक्की संभव नहीं है।

बिजनेस की तरफ रुझान

बिजनेस की ओर मेरा रुझान था। पापा की कंपनी कारपोरेट बन चुकी थी। हम दूसरों के प्रोडक्शन संभाल रहे थे। डिस्ट्रीब्यूशन कर रहे थे, लेकिन एजुकेशनल इंस्टीट्यूट खोलना चाहते थे। कंपनी में बिजनेस देखने के लिए भी कोई चाहिए था। मैं लंदन में पढ़ाई के साथ काम भी कर रही थी। तभी पापा ने कहा कि हम इंस्टीट्यूट खोल रहे हैं। तुम्हें इससे जुडऩा होगा। महज 21 साल में यह प्रस्ताव किसी उपलब्धि से कम नहीं था। हालांकि इंस्टीट्यूट बनने में तीन साल लगे। हमने बहुत रिसर्च की। देश-दुनिया के इंस्टीट्यूट घूमे। उनसे विजन मिला। हमने उसे साकार किया।

नई तकनीक का प्रयोग

पापा ने अपनी फिल्मों में हमेशा नई तकनीक का इस्तेमाल किया। इंस्टीट्यूट के लिए नामी-गिरामी आईटी कंपनी के साथ करार कर रखा है, ताकि हर नई तकनीक से समय रहते वाकिफ रहें। पापा ने बच्चों को फिल्म इकोनॉमिक्स सिखाने पर भी जोर दिया, ताकि फिल्मी दुनिया में वे किसी का नुकसान न करें। जब पापा की खुद की फिल्म त्रिमूर्ति नहीं चली थी तब उन्होंने डिस्ट्रीब्यूटर को बुलाकर पैसे वापस किए थे।

अपने काम से खुश हूं

मेरी समकालीन लड़कियां प्रसिद्ध अभिनेत्रियां हैं, मगर मैं अपने काम से खुश हूं। मैं इंडस्ट्री से अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी हूं। व्हिसलिंग वुड्स के कारण इंडस्ट्री के सभी लोगों से मेल मुलाकात होती ही रहती है। कुछ लोग इंस्टीट्यूट में लेक्चर देने भी आते हैं। अगर हमने स्टूडियो खोला होता तो जरूर कंप्टीशन होता।

स्मिता श्रीवास्तव


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