हर मोड़ पर साथ-साथ
एक पल में रूठ जाना और फिर अगले ही पल एक-दूसरे से बोले बिना रह न पाना। ऐसा ही तो होता है भाई-बहन का रिश्ता
कभी छोटी सी बात पर एक-दूसरे से लड़ जाना तो कभी एक चॉकलेट को आधा-आधा खाकर भी खुश हो जाना, कभी ज्यादा देर तक बाहर खेलने पर मम्मी-पापा की डांट से भाई को बचाना या फिर कभी चुपके से बहन को कहीं घुमाने ले जाना... एक पल में रूठ जाना और फिर अगले ही पल एक-दूसरे से बोले बिना रह न पाना। ऐसा ही तो होता है भाई-बहन का रिश्ता। छोटी सी उम्र में अपने खिलौने एक-दूसरे से बांटने वाले भाई-बहन, युवावस्था में कब अपने सपने बांटने लगते हैं, पता ही नहीं चलता। शायद इसीलिए क्योंकि बदलते वक्त के साथ यह रिश्ता
अब नए पड़ाव पर पहुंच चुका है... अब भाई-बहन सबसे अच्छे दोस्त, बिजनेस पार्टनर, एकदूसरे के भावनात्मक संबल और हर मुद्दे पर
सलाह देने वाले गाइड बन गए हैं...
एक-दूजे को दे रहे हौसला
मृणाल जैन, टीवी अभिनेता
यूं तो रिश्तों की डोर बहुत नाजुक होती है, जरा-सा अविश्वास रिश्ते की नींव को दरका देता है। बात अगर ग्लैमर जगत की हो तो यहां भरोसा और जल्दी डगमगाने लगता है। कुछ ऐसे ही मुश्किल हालात में एक-दूसरे को हौसला दिया
है टीवी जगत के भाई-बहन रश्मि देसाई और अभिनेता मृणाल जैन ने। सीरियल 'उतरनÓ में खलनायक की भूमिका निभाने वाले मृणाल
कहते हैं कि दिन-रात शूटिंग में व्यस्त होने की वजह से अक्सर मैं फैमिली को समय नहीं दे पाता था। इसका असर मेरी पर्सनल लाइफ पर पडऩे लगा। मेरी वाइफ स्वीटी को यह शिकायत रहती थी कि मैं उसके लिए वक्त नहीं निकाल पाता हूं। काफी कोशिशों के बावजूद जब वह इस बात को समझने के लिए तैयार नहीं थी तो उस वक्त मेरी बहन रश्मि ने मेरी पत्नी को समझाने की कोशिश की। उन्होंने कहा, इस फील्ड में दिन-रात का कोई भरोसा नहीं होता। एस्ेो में थोड़ा धयर््ैा रखना पड़ता है। रश्मि की सझ्ूाबझ्ूा ने मेरे
परिवार में आने वाली समस्या को दूर किया। इसके अलावा, मुझसे सीनियर होने की वजह से उसने प्रोफेशनल लाइफ की कई बारीकियां भी मुझे सिखाईं।
बहन की अमानत है जिंदगी
शैलेंद्र कुमार गर्ग, बिजनेसमैन
अक्सर माता-पिता अपने ब'चों की हर तकलीफ उठाने को तैयार रहते हैं, लेकिन भाई-बहन के मामले में ऐसा कम ही सुनने को मिलता है, लेकिन शैलेंद्र कुमार गर्ग और मृदुला गर्ग की कहानी इससे थोड़ी अलग है। गाजियाबाद में अपना बिजनेस करने वाले शैलेंद्र को जांडिस ने जकड़ लिया था। गाजियाबाद और दिल्ली में कई डॉक्टरों को दिखाने के बाद पता चला कि उनका लिवर डैमेज हो चुका है। उसके बाद तो शैलेंद्र और उनके परिवार ने डॉक्टरों के चक्कर लगाने शुरू कर दिए, ताकि उन्हें लिवर ट्रासप्लांट न कराना पड़े। आखिरकार डॉक्टरों ने कह दिया कि बिना ट्रांसप्लाट के जिंदगी बचानी मुश्किल है। शैलेंद्र
बताते हैं कि इस मुिश्कल दौर में मन्ंैो उम्मीद का दामन बिल्कल्ुा छोड़ दिया था। एस्ेो में जिसने मझ्ुो सब्ंालिद या, वह मरेी बहन थी।ं बडी़ बहन मदृ ल्ुाा ने कहा, मेरे रहते इतना क्यों घबराते हैं? मैं हूं न। उसके बाद उन्होंने मुझे अपना लिवर डोनेट कर दिया। तीन महीने पहले हुए ऑपरेशन के बाद आज मैं और मेरी बहन दोनों ठीक हैं। मैं कह सकता हूं कि मेरी जिंदगी तो बहन की अमानत है।
दिया जिंदगी जीने का मकसद
आशीष साहू, फैशन फोटोग्राफर
जीवन में अगर आपको स'चा दोस्त मिल जाए तो जिंदगी की मुश्किलें थोड़ी आसान हो जाती हैं। अगर यह दोस्त आपका भाई या बहन हो तो भरोसा और भी बढ़ जाता है। कुछ ऐसे ही दौर से गुजरा है आशीष साहू और उनकी बहन आराधना खुराना का रिश्ता। ओडि़सा के छोटे से कस्बे से निकलकर देश की राजधानी दिल्ली में फैशन
फोटोग्राफी में अपनी पहचान बनाने वाले आशीष साहू कहते हैं, 'जब मैं कॉलेज में था तो मुझे एक लड़की से प्यार हो गया था, लेकिन उसने मेरे प्यार को यह कहकर ठुकरा दिया कि तुम्हारा कोई सुरक्षित भविष्य नहीं है। ऐसे में तुम मुझे बेहतर जिंदगी कैसे दे सकते हो और वह मुझे छोड़कर चली गई। मैं बुरी तरह टूट गया था। उसके बाद मैंने खुद को कमरे में कैद कर लिया और लोगों से मिलना-जुलना तक छोड़ दिया। मम्मी-पापा भी मेरे बदले व्यवहार की वजह समझ नहीं पा रहे
थे। उस वक्त जिसने मेरे मन की परेशानी को समझा, वह मेरी बड़ी बहन आराधना थीं। उन्होंने मुझे समझाया कि जो लड़की मेरी मुश्किल
परिस्थितियों में मेरा साथ नहीं दे सकती, वह ताउम्र कैसे साथ निभाएगी? उनकी यह बात मेरी समझ में आ गई।
भाई ने किया सपना साकार
निधिशा वाष्र्णेय, फिट मी की फाउंडर
कहते हैं कि अगर एक का सपना दूसरे का जुनून बन जाए तो कुछ भी असंभव नहीं होता। ऐसा ही कुछ हुआ दिल्ली में पले-बढ़े भाई-बहन निधिशा और सधर्म वाष्र्णेय का। डीयू से फाइनेंस में ग्रेजुएशन करने वाली निधिशा एक बेहतर कंपनी में जॉब कर रही थीं। वह इससे इतर भी कुछ करने को आतुर थीं, लेकिन क्या? इसे वह समझ नहीं पा रही थीं। इसी दौरान एक दिन जिम करते वक्त उन्होंने महसूस किया कि जिम में जाने पर एक शख्स को छह से एक साल तक की मेंबरशिप लेनी पड़ती है। अगर वह बीच में ही छोड़ता है, तो उसके उतने पैसे रिटर्न नहीं होते। बस यहीं से उन्होंने सोचा कि क्यों न कुछ ऐसा किया जाए कि कोई आदमी जितने दिन एक्सरसाइज करे उसको उतने ही पैसे का भुगतान करना पड़े।
अपने इस आइडिए को उन्होंने अपने भाई के साथ शेयर किया। फिर क्या था, बहन के सपने को भाई ने अपना जुनून बनाया और बना डाली
'फिट मी डॉट इनÓ वेबसाइट और मोबाइल ऐप फिट मी।
डांट ने बना दिया लेखक
सत्य व्यास, राइटर
घर में बड़ा भाई या बहन हो तो उसकी सलाह से
मनपसंद कॅरियर चुनने में बहुत मदद मिल जाती
है। माता-पिता की तुलना में वह उन सपनों को
समझने और उसमें पनप रही संभावनाओं को
बेहतर समझ पाते हैं। कुछ ऐसा ही हुआ युवाओं
के बीच लोकप्रिय 'बनारस टॉकीजÓ जैसी किताब
लिखने वाले लेखक सत्य व्यास के साथ। यूपी के
बलिया जैसे शहर में पले-बढ़े व्यास को बचपन से ही किताबों से बहुत लगाव था। वह कोर्स की किताबों के इतर घर में अपने से बड़ी तीन बहनों की किताबें भी उनसे पहले ही पढ़ लिया करते थे। किताबों के प्रति व्यास के इसी शौक को जब उनकी बहन सुनीता और अनिता ने समझा तो उन्होंने व्यास को और नए-नए विषयों की किताबें गिद्ब्रट करना शुरू कर दिया। हालांकि इसके
विपरीत सरकारी नौकरी में कार्यरत पिता चाहते थे कि बेटा कॉमर्स की पढ़ाई करके कॉस्ट एकाउंटिंग में अपना भविष्य बनाए। व्यास कहते हैं, मैंने पापा को जब अपने रुझान के बारे में बताया तो उन्होंने हाथ खड़े कर दिए। उस वक्त मेरी बहनों ने मेरा साथ दिया, उन्होंने पापा और मम्मी दोनों को समझाया कि मुझे थोड़ा वक्त दें। बस उसके बाद से मैंने अपना पढऩा-लिखना निरंतर
जारी रखा। इस दौरान मैं जो भी लिखता था, अपनी दोनों बहनों सुनीता और अनिता को दिखाता रहता था। मेरे लेखन में व्याकरण की कोई गलती होती थी तो हिंदी में परास्नातक मेरी बड़ी बहनें मुझे डांट-डांट कर उसकी त्रुटियां
बताया करती थीं। उनकी डांट के बाद से जो सिलसिला शुरू हुआ है, वह आज तक जारी है। अब मैं जो भी लिखता हूं, उसकी प्रूफरीडर मेरी दो छोटी बहने हैं, जबकि मेरी बड़ी बहन मेरी सबसे बड़ी आलोचक हैं।
वह मुझे बताती रहती हैं कि क्या सही और क्या गलत है? इसीलिए मेरे पसंद के करियर को बनाने में मेरी तीनों बहनों का बहुत बड़ा योगदान है।
नंदिनी दुबे