सकारात्मक सोच और दृढ़ इच्छाशक्ति से जीती जा सकती है कैंसर से जंग
मनीषा कोइराला, लीजा रे और मुमताज जैसी अपने जमाने की सशक्त अभिनेत्रियां भी कैंसर जैसी घातक बीमारी से गुजर चुकी हैं लेकिन किस तरह उन्होंने इससे लड़कर जीत हासिल की, जानें।
हर शख्स के जीवन में कई बाधाएं आती हैं लेकिन अंत में ये मायने रखता है कि कैसे पॉजीटीव तरीके से उससे लड़कर आगे बढ़ा जाए और उसपे जीत हासिल की जाए। कैंसर को पहले लाइलाज समझा जाता था ऐसे में अगर किसी को ये बीमारी हो जाती थी तो वो अपनी जीने की उम्मीदें खो देता था। लेकिन इन अभिनेत्रियों ने कैेसर की बीमारी से न सिर्फ लड़ा बल्कि इनसे पूरी तरह से उबर भी चुकीं और अब इसके प्रति दूसरों को भी जागरुक कर रही हैं। जानें कौन हैं ये और कैसे कैंसर को इन्होंने मौत नहीं जीने का आधार बनाया।
पॉजीटीविटी के लिए कैंसर फाइटर्स के मोटिवेशनल बुक्स पढ़ती थी- मनीषा कोइराला
'दिल से' एक्ट्रेस मनीषा कोइराला 2012 में ओवरीयन कैंसर से उबर कर बाहर आई थीं। उनका मानना था कि कैंसर किसी भी प्रकार से मौत की सजा नहीं है इसमें अभी भी उम्मीद बची है। वे कहती हैं कि जिन्होंने उम्मीद खत्म कर ली हैं उन्हें उम्मीद बचा कर रखनी चाहिए। कैंसर पीड़ित को शुरुआत से ही खुद के उपर ध्यान देना चाहिए।
कैंसर ने ही उन्हें एहसास दिलाया कि हेल्थ, सही खाना और एक्सरसाइज किसी भी शख्स के लिए कितना महत्वपूर्ण है। आज भी उन्हें इस बात का डर है कि कैंसर कहीं उन्हें वापस से ना हो जाए। लेकिन हमें पॉजीटीव रहना चाहिए और ये ही इस खतरनाक बीमारी से लड़ने का सबसे बेस्ट तरीका है। वो कहती है कि उन्हें जब इस बीमारी के बारे में सबसे पहले पता चला तो वे ब्रेक डाउन हो गई थीं उन्हें लगा कि उनके पास जो कुछ भी था उन्होंने वो सब खो दिया है। लेकिन हर कदम पर उनके रिश्तेदारों ने और उनके चाहने वालों ने उनका साथ दिया। जिसकी वजह से ट्रीटमेंट के दौरान भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। वे कहती हैं कि उन्हें हमेशा कॉमेडी शोज दिखाये जाते थे ताकि वो निगेटिविटी की तरफ ना जाए।
उन्होंने युएस में अपने ट्रीटमेंट के दौरान काफी बुक्स पढ़ीं जिसमें कैंसर फाइटर्स की आत्मकथाएं होती थीं। ये उन्हें पॉजीटीव रहने में मदद करता था। ट्रीटमेंट के बाद उन्होंने एक नई जिंदगी का अनुभव किया।
डेथ सेंटेंस नहीं जीने की उम्मीदें हैं- लीसा रे
कैंसर को लोग डेथ सेंटेंस की तरह लेते हैं। लीसा रे ने अपने सिर के क्लीन शेव पिक्चर्स को सार्वजनिक रुप से शेयर को सभी को अचंभे में डाल दिया था। वो ऐसी पहली महिला थीं जो खुलकर इस बीमारी के लिए आगे आकर स्टैंड लिया था।
वे कहती हैं कि भारत के लोग आज भी अंधविश्वास में जी रहे हैं। लोग सोचते हैं कि बीमार रहना उनकी कर्मों का फल है और वे इन बीमारियों को डिजर्व करते हैं। ये सोचकर वे इसका प्रॉपर तरीके से ट्रीटमेंट भी नहीं कराते हैं। वे इसे लेकर शर्म महसूस करते हैं। जबकि वे कहती हैं कि कैंसर कोई मौत का दूसरा नाम नहीं है। इसमें भी जिंदा रहने और अच्छे से जीवन जीने की उम्मीद है।
मुझे मौत से नहीं मौत को मुझसे लड़ना होगा- मुमताज
पुराने जमाने की गॉर्जियस एक्ट्रेस मुमताज भी एक जमाने में कैंसर पेशेंट हुआ करती थीं। सन 2000 के शुरुआत में उनके ब्रेस्ट में कैंसर का पता लगा। वे भी अपनी फैमिली के लगातार सपोर्ट और सहयोग से इससे उबर पाईं। वे किसी भी सूरत में हिम्मत नहीं हारी और अंत तक लड़ी। उनका कहना था कि अब मुझे मौत से नहीं मौत को मुझसे लड़ना होगा।