आधी आबादी की आशा
स्कूल समय में लोगों की मदद करना अच्छा लगता था। जरूरतमंदों तक हर चीज पहुंचा देना, इसी आदत ने आधी आबादी की आशा बना दिया।
स्कूल समय में लोगों की मदद करना अच्छा लगता था। जरूरतमंदों तक हर चीज पहुंचा देना, इसी आदत ने आधी आबादी की आशा बना दिया।
स्कूल में पढ़ाई के समय से ही लोगों की मदद करना अच्छा लगता था। अपनी किताबे-स्टेशनरी बच्चों को दे देना। घर में जो ड्रेस होती थीं वह सब जरूरतमंदों तक पहुंचा देना। बचपन की यह आदत बड़े होते तक भी साथ रही। बड़े होकर आधी आबादी की आशा बनने की इच्छा हुई तो घर में परिजनों ने पुलिस में भर्ती होने की सलाह दी। आशा रानी बताती हैं कि परिजनों के कहे अनुसार वर्ष 1981 में पुलिस भर्ती के लिए भागदौड़ शुरू कर दी और साल का अंतिम माह तक सपना पूरा भी हो गया। आशा को गणतंत्र दिवस पर महिलाओं के हित में बेहतर कार्य करने के लिए हरियाणा सरकार द्वारा सम्मानित किया गया।
जीवन बर्बाद न हो :
सिपाही के पद से भर्ती होकर निरीक्षक तक पहुंचना जीवन की उपलब्धि तो है। लेकिन उससे कहीं अधिक यह मायने रखता है कि बेसहारा व असहाय महिलाओं को हरसंभव न्याय दिला सकूं। इसी सोच पर काम करते हुए सिपाही से निरीक्षक तक का सफर रहा। हालांकि निरीक्षक बनने के बाद महिलाओं को न्याय दिलाने की राह और सरल-सहज हो गई। सोनीपत, रोहतक, पानीपत और अब फरीदाबाद में बतौर महिला थाना प्रभारी रहते सैकड़ों महिलाओं को न्याय दिलाने का अवसर मिलता चला गया। आशा बताती हैं कि दहेज उत्पीड़न व घरेर्लू ंहसा की हर रोज एक नई कहानी सामने आती है। ऐसे मामलों को सुलझाना अधिक विश्वास करती हूं, क्योंकि घर बिगड़ने से दोनों पक्षों का पैसा तो बर्बाद होता है, साथ ही उनका जीवन भी बर्बाद होता है। इसलिए इन दोनों मामलों में मेरा प्रयास केवल घर बसाने का होता है, लेकिन दुष्कर्म व छेड़छाड़ के मामले के आरोपियों को सलाखों के पीछे पहुंचाने के बाद ही दम लेती हूं। चूंकि इन मामलों में सामाजिक ताना-बाना बिगड़ता है। मेरा यह भी कहना है कि हर आदमी की कामयाबी के पीछे कड़ी मेहनत, लगन, ईमानदारी व परिजनों का हाथ होता है। जिस मुकाम पर पर हूं, उसमे पति राकेर्श ंसह का खूब सहयोग रहा है। अभिभावक अपने बच्चों को अच्छाई व बुराई की परिभाषा जरूर बताएं, क्योंकि अभिभावकों द्वारा बच्चों को अच्छाई व बुराई का ज्ञान ना दिए जाने के कारण वह रास्ता भटक जाते हैं। इन दोनों की अनभिज्ञता के चलते युवा अच्छे व बुरे कार्यों में फर्क नहीं कर पाते। दलदल में फंसते चले जाते हैं। इसलिए खासकर मां इन दोनों की सीख आवश्यक दें।
प्रस्तुति : सुनील गौड़, फरीदाबाद