मुश्किल नहीं है कुछ भी....
कुछ भी असंभव नहीं... यही मूलमंत्र है फेमिना मिस इंडिया अदिति आर्या का। उन्होंने पहले कभी नहीं सोचा था ब्यूटी कांटेस्ट का हिस्सा बनना, लेकिन जब बनीं तो बिना प्रशिक्षण, बिना तैयारी सबको पीछे छोड़कर पहन लिया ताज। एक खास बातचीत में अदिति ने शेयर की, अपनी ग्रूमिंग, सोच और
कुछ भी असंभव नहीं... यही मूलमंत्र है फेमिना मिस इंडिया अदिति आर्या का। उन्होंने पहले कभी नहीं सोचा था ब्यूटी कांटेस्ट का हिस्सा बनना, लेकिन जब बनीं तो बिना प्रशिक्षण, बिना तैयारी सबको पीछे छोड़कर पहन लिया ताज। एक खास बातचीत में अदिति ने शेयर की, अपनी ग्रूमिंग, सोच और उपलब्धियों से जुड़ी तमाम बातें...
मेरी मां कहती हंै कि मैं बचपन से 'एक्सप्रेसिव' रही हूूं। जब तीन साल की थी, तब से शब्दों और चित्रों के माध्यम से अपनी बात रखना भाता था मुझे। शायद यही वजह है मेरा बचपन से सपना है कि दुनिया में मेरी बात, मेरी राय सुनी जाए। इस दिशा में लगातार सक्रिय रही हूं। यूनाइटेड नेशंस से जुडऩे की आकांक्षी रही हूं। मेरा यह सपना इस ढंग से पूरा होगा, सोचा नहीं था। मिस इंडिया का ताज पाकर रोमांचित हो रही हूं।
ताज बाई चांस
मैं स्कूल और कॉलेज के दिनों में सौंदर्य प्रतियोगिताओं में हिस्सा नहीं लेती थी। जब मुंबई में मिस इंडिया कांटेस्ट का आयोजन होना था, मैं बिल्कुल रॉ थी। उस वक्त मैं 'अर्नेस्ट ऐंड यंग' कंपनी में अपनी सेवा दे रही थी। यहां दोस्तों ने जब मुझे मिस इंडिया कांटेस्ट में भाग लेने के लिए प्रेरित किया तो लगा यह चैलेंज मुझे स्वीकार कर लेना चाहिए। मिस इंडिया कांटेस्ट के दौरान जो प्रशिक्षण दिए गए और जिस तरह से ग्रूमिंग की गई, उन सबसे लगा कि मैं इस कांटेस्ट को जीत सकती हूं, पर जब ताज मिला तो यह कुछ 'बाईचांस' सा फील दे रहा था, लेकिन काफी अच्छा लगा।
मेरी सीख, मेरे संस्कार
जैसा कि आमतौर पर होता है बेटा-बेटी में फर्क लड़कियों को हतोत्साहित कर देता है। अक्सर वे चाहकर भी आगे नहीं बढ़ पातीं, पर मुझे बेटी होने के नाते कभी इस तरह की रुकावट का सामना नहीं करना पड़ा। मेरे हर निर्णय में माता-पिता ने मेरा पूरा साथ दिया। उन्होंने मुझ पर कभी उम्मीदों का बोझ नहीं डाला। खिताब जीतने के बाद जिस तरह की प्रतिक्रिया मुझे मिली, मैं जान गई कि उन्हें मुझ पर नाज है। मेरी मां गृहिणी हैं और सामाजिक कार्यो में सक्रिय रही हैं। मेरे पिता देवेन्द्र आर्या एक मल्टीनेशनल कंपनी में शीर्ष पद पर हैं। परिवार के दिए हुए संस्कार और शिक्षा की बदौलत ही मैं यहां हूं। मैं संयुक्त परिवार से हूं, जहां मुझे मुश्किलों में आगे बढऩे की शिक्षा मिली और अपने दम पर आगे बढऩे की प्रेरणा भी।
खूबसूरती विचारों में
यदि आपके विचार अच्छे हैं तो पूरा व्यक्तित्व उससे प्रभावित रहता है। शारीरिक बनावट तो क्षणिक है। यदि आपकी सोच बनावटी है तो सुंदर नैन-नक्श, शारीरिक बनावट की छवि झटके में नष्ट हो सकती है। इसलिए कोशिश हमेशा अपने विचारों को बड़ा और बेहतरीन बनाने की होनी चाहिए। जब ऐसा होगा तो लोग जरूर कहेंगे कि आप बहुत खूबसूरत हैं!
शिक्षा बुनियादी जरूरत
शिक्षा हमारी सबसे बड़ी और बुनियादी जरूरत है। इस बात को मैंने तब समझा, जब एक एनजीओ से जुड़ी। यहां हम लोग तीन स्तरों पर काम कर रहे थे। ऐसे परिवार जो अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजते, उन्हें स्कूल भेजने के लिए तैयार करने, उन्हें स्कूल के लिए जरूरी चीजें उपलब्ध कराने और उनके बच्चों को कोई ऐसी वोकेशनल ट्रेनिंग देने का काम ताकि वे अपना रोजगार शुरू कर सकें।
ग्रूम करें बढ़ें आगे
युवा अपने उत्साह और हौसले के दम पर दुनिया फतह कर सकते हैं। आज के दौर में केवल पढ़ाई मायने नहीं रखती। जब तक आपका व्यक्तित्व जानदार नहीं है, आपमें एनर्जी नहीं है तो आप पीछे छूट जाएंगे। इसलिए पर्सनैलिटी डेवलपमेंट और ग्रूमिंग आज के दौर में आगे बढऩे की पहली शर्त है। अपनी कमियों को लेकर निराश होने और हीनता महसूस करने के बजाय उन्हें दूर करने में समय दें।
रोल मॉडल प्रियंका
मैं उन सबको फॉलो करती हूं, जो अपने दम पर दुनिया बदलने की ताकत रखते हैं। खुद पर भरोसा करते हैं और लगातार बेहतर करने में यकीन रखते हैं। अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा में ये खूबियां मौजूद हैं। इसलिए वह मुझे बहुत पसंद हैं। वह अच्छी अभिनेत्री हैं, अच्छा गाती हैं, चैरिटी का काम भी करती हैं। इतना बेहतर संतुलन ही उन्हें मेरा रोल मॉडल बनाता है।
जो ठाना वह किया
किसी काम में जुट जाती हूं तो तब तक दम नहीं लेती, जब तक वह पूरा न हो जाए। स्कूल के दिनों से ही पढ़ाई के साथ-साथ अतिरिक्त गतिविधियों में भाग लेती आ रही हूं। चाहे वह पेंटिग हो या डांस, सबमें अव्वल रही हूं। मैं कह सकती हूं कि मेरी इच्छाशक्ति मजबूत है, जो ठान लेती हूं, उसे करके मानती हूं। यही मेरे व्यक्तित्व का मजबूत पक्ष है। हालांकि मैं भावुक बहुत हूं। भावनाओं में बह जाना मेरी कमजोरी है, पर यह मेरे व्यक्तित्व का हिस्सा है।
किताबों की गोद में
मुझे किताबें पढऩे का बहुत शौक है। खासतौर पर कविताएं मुझे बहुत अच्छी लगती है। मुझे जब भी मौका मिलता है, दिल्ली के कनाट प्लेस के केजी मार्ग स्थित ब्रिटिश लाइबे्ररी जाकर किताबें पढ़ती हूं। घर की जगह लाइब्रेरी जाकर किताब पढऩा अच्छा लगता है। किताबों की गोद में बैठकर, उसके माध्यम से आप दुनिया के आश्चर्यजनक संसार में गोते लगाते हैं, यह एक आनंददायक अनुभव है।
दुनिया कायल हो भारत की
अपना देश भारत बहुत खूबसूरत है। यह आर्थिक रूप से भी सशक्त है। यहां संभावनाओं की कोई कमी नहीं। यहां की प्रतिभा को दुनिया सलाम करती है, पर इन सबके साथ-साथ भारत की सांस्कृतिक विशेषता अद्भुत है। इसकी सबसे अच्छी बात है इसकी विविधता। अलग-अलग परंपरा, विचारधारा, परिवेश के बावजूद हम जिस एकत्व भाव से यहां रहते हैं, वह एक मिसाल है। यह सीखने वाली बात है, जिसे दुनिया को अपनाना चाहिए। अपने-अपने धर्म, विचार को मानने की स्वतंत्रता के बीच प्यार-मुहब्बत भी है। मैं चाहती हूं पूरी दुनिया हमारी इस खूबी को समझ पाए।
स्वस्थ माहौल बनाएं
महिलाओं के सशक्तीकरण की बातें खूब होती हैं, पर इसके लिए माहौल तैयार नहीं होता। माहौल बनाने के लिए कुछ नहीं करना। बस आपको अपने परिवार से ही यह कार्य शुरू करना है। जब आप अपने घर से ही महिलाओं को सम्मान देना शुरू करेंगे। उन्हें समझेंगे, उनकी प्रतिभा की कद्र करेंगे, उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाएंगे तभी वह समाज में अपनी जगह, अपनी पहचान बना पाने की ओर कदम बढ़ा पाएंगी। अपने दम पर बढ़ी आगे
पूनम आर्या, अदिति की मां
वह शुरू से पढ़ाई में होशियार रही है। ऑलराउंडर है। वह एक अच्छी डांसर और बढिय़ा पेंटर है। वह बचपन से ही अपने विचारों और लक्ष्य को लेकर काफी स्पष्ट हैं। एक बार जो ठान लिया उसे पूरा करके मानती हैं। ऐसे अनेकों उदाहरण इस बात की पुष्टि करते हैं। पहले वह आर्किटेक्ट बनना चाहती थी, पर जिस दिन उसे प्रवेश परीक्षा देनी थी, उसके एक दिन पहले ही उसे गले का संक्रमण हो गया। उसे ड्रिप लगाना पड़ा था। डॉक्टर ने उसे आराम करने की सलाह दी थी, पर अदिति नहीं मानी। वह हमारे साथ ड्रिप लगाए हुए परीक्षा देने गई और अव्वल आई।
सीमा झा/पूनम शंकर