रियल में भी ऐसी ही हैं 'मे आई कम इन मैडम' की चुलबुली किरदार नेहा पेंडसे
'मे आई कम ईन मैडम' की हसीन और चंचल बॉस संजना घर-घर में लोकप्रिय हो चुकी हैं। संजना का किरदार निभा रही नेहा पेंडसे का तर्क है कि मर्द फितरतन दिलफेंक होते हैं..
धारावाहिक 'मे आई कम इन मैडम' में नेहा पेंडसे संजना का किरदार निभा रही हैं। संजना पर उनका सेक्रेट्री साजन शादीशुदा होने के बावजूद उन पर फिदा है। वह संजना की अंगुलियों पर नाचता और कई बार जिल्लत को झेलता है। नेहा कहती हैं कि शादी के बाद भी पुरुषों का दिल कहीं न कहीं भटकता रहता है। शो में इस मूल वजह को हल्के-फुल्के अंदाज में पेश किया गया है। कामकाजी मर्द इस शो से जुड़ाव महसूस करते हैं। लिहाजा शो लोगों के लिए लोकप्रिय है।
संजना की अदा पर सब फिदा
मराठी ग्लैमर जगत ग्लैमर जगत का जाना- पहचाना नाम हैं नेहा पेंडसे। वह कहती हैं कि शो के मशहूर होने का वैसे प्रमुख कारण लेखक संतोषी की लेखनी और शशांक बाली का डायरेक्शन है। इन्होंने बहुत प्यारे किरदार गढे़ हैं। खासकर संजना के मिजाज से हमें बड़ी मदद मिली है। वह पल में तोला पल में पाशा होती रहती है। वह सेक्रेटी साजन के अरमान कभी जगा जाती है तो कभी मटिया मेट कर देती है। उसकी यह अदा महिलाओं और पुरुषों दोनों को पसंद है। महिलाओं को इसलिए क्योंकि शायद उन्हें फरमान जारी करना अच्छा लगता है। पुरुषों को इसलिए क्योंकि कई बार ऑफिस में इस तरह की बॉस से आमना-सामना होता है। बॉस कब खुश हो जाएं, कब नाराज पता नहीं चलता। बॉस की बात करें तो उन्हें साजन की सासू मां बड़ी अच्छी लगती हैं। युवतियों को संजना का ड्रेसिंग सेंस भाता है। मेरे पास कई डिजाइनरों के फोन आए कि आपके कॉस्ट्यूम का काम कौन देखता है। इस तरह सभी किरदारों का सामूहिक प्रभाव शो की सफलता की मूल वजह है। मोटे तौर पर पुरुषों और बच्चों ने इसे हिट बनाया है।
कामकाजी का दर्द दिखाया
साजन उस कामकाजी बिरादरी को पेश करता है, जो अपने हसीन बॉस के नखरे व जुलवे का शिकार है। उससे हमारे शो का जुड़ाव बस ऑडिएंस तक है। दूसरी चीज यह कि टीवी पर उस तबके के लिए शो गिनती के हैं। ऐसे में दर्शकों का एक बड़ा हिस्सा हमें मिल जाता है। बस शो में हमने लोगों की ख्वाहिशो को अतिरंजित किया है। संजना जैसी बॉस हर कामकाजी की दिली ख्वाहिशों होती है। इससे यह और रोचक व मनोरंजक बन गया है। साथ ही महिलाओं को तारीफ पसंद होती है। वे शादीशुदा हो या गैर शादीशुदा। यह बात गांव-कस्बों से लेकर छोटे-बड़े शहरों तक लागू होती है। बस उसके तरीके अलग होते हैं।
औरतें भी दिलफेंक होती हैं
अगर हम संजना-साजन व भाबीजी घर पर हैं में मिश्रा जी और अंगूरी भाभी को पलट दें तो भी वह स्वीकार्य होगा। महिलाओं का भी एक कुनबा दिलफेंक और आशिकमिजाज होता है। हां, हम अश्लील तरीके से वह लजीज प्रदर्शित करेंगे तो दिक्कत होगी। बाकी ऐसे संबंध बनते तो हैं। महिला बॉस का अपने सेक्रेट्री के साथ। यह भी हकीकत है। बस हम स्वीकारते नहीं हैं। पुरुषों के दिलफेंक होने के वैज्ञानिक कारण हैं पर इसकी आड़ में यह दलील नहीं चलेगी कि छोटे कपड़ों में लड़कियों को देखने पर उनका बहकना भी वैज्ञानिक है। छोटे कपड़ों में देख बहकने का ताल्लुक नैसर्गिक बुनावट से ज्यादा छोटी सोच से है। सोच का स्तर विकसित न होने के चलते हम महिलाओं के चरित्र को कपड़ों, काम से देर रात आने-जाने या किसी के साथ हंस-बोल लेने से जज करते हैं। अगर यह प्राकृतिक बनावट का मामला होता तो उत्पीड़न के ज्यादातर मामले पश्चिमी मुल्कों में होते, जबकि ऐसा तीसरी दुनिया के देशों में ज्यादा है।
मराठी में ऐसे शो स्वीकार्य नहीं
मराठी दर्शकों को ऐसे शो पसंद नहीं आते। वह इसलिए क्योंकि उन्हें अपने कल्चर से गहरे जुड़े शो की अपेक्षा रहती है। मैं खुद इसकी मिसाल हूं। मैं जब इस शो से जुड़ी तो सब को लगा कि इसे मराठी दर्शक भी मिलेंगे मगर ऐसा नहीं हुआ। ऐसे शो उन्हें आमतौर पर हजम नहीं होते। मराठी फिल्में में समाज के संवेदनशील मुद्दों पर मसले उठते हैं, लेकिन लोग उन्हें ज्यादा पसंद नहीं करते, जबकि हिंदी फिल्में व धारावाहिकों में समाज के अंदर व्याप्त अच्छाई और बुराई दोनों दिखाई जाती हैं। वह नैतिक रूप से सही है या गलत, यह दर्शकों पर छोड़ दिया जाता है। बाकी समाज कोई भी हो, हर जगह का मर्द लगभग एक सा ही होता है।