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लोकगीतों और सूफी गीतों की मास्टर दीपमाला मोहन

लोकगीतों और सूफी गीतों की मास्टर दीपमाला मोहन बुंदेलखंडी, अवधी, भोजपुरी, पूर्वी और ब्रज भाषा के लोकगीतों को अपने प्रयास से देश-विदेश में लाइम लाइट में ला रही हैं।

By Babita kashyapEdited By: Published: Mon, 01 Aug 2016 10:06 AM (IST)Updated: Mon, 01 Aug 2016 10:16 AM (IST)
लोकगीतों और सूफी गीतों की मास्टर दीपमाला मोहन

क्या आप महान गायिका बेगम अख्तर से अधिक प्रभावित हैं?

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बेगम अख्तर ने संगीत की दुनिया में अमूल्य योगदान दिया। उनका हुनर और उनकी पर्सनैलिटी इतनी जबर्दस्त थी कि उस समय संगीत के प्रति लगाव रखने वाले किसी भी व्यक्ति का अप्रभावित रहना असंभव था। मुझे लगता है कि मैं जब परफॉर्म करती हूं तो यह प्रतिबिंबित होता है। काश वह हमारे साथ होतीं।

सूफी संगीत की तरफ झुकाव किस तरह हुआ?

सूफी ख्याल मेरे लिए आध्यात्मिक रास्ते पर चलने के बराबर है। जैसे-जैसे बड़ी होती गई, मैंने अलग-अलग गीत-संगीत की विधाओं को खूब खंगाला। मैं चाहती थी कि संगीत का एक ऐसा माध्यम मिले, जो हमारे भावों को सही रूप में प्रकट कर सके। इस तरह मैं अपने आप सूफीवाद और उसके संगीत की ओर मुड़ गई। मैं जब सूफी गीत गाती हूं तो इसके संगीत से खुद को जुड़ा महसूस करती हूं।

कई सारी लोक भाषाओं के गीतों में आपने किस तरह महारत हासिल की?

मैं लखनऊ से हूं। मैंने यहां औपचारिक ट्रेनिंग ली है। मेरे पति झांसी से हैं। कई वर्ष तक मैंने यात्राएं कीं।

संगीतज्ञों और कलाकारों से मिलने के बाद मैं गीत-संगीत की ओर अधिक आकर्षित हुई। मैंने अलग-अलग बोलियां सीखी। मैंने नोटिस किया कि संगीत की कई परंपराएं समाप्त होने के कगार पर पहुंच रही हैं।

ऐसे में हम कलाकारों का यह कर्तव्य बनता है किउन्हें संरक्षित किया जाए। ईश्वर की कृपा से मैं संगीत को अंतरराष्ट्रीय प्लेटफॉर्म तक ले गई।

आपकी उपलब्धियों की फेहरिस्त लंबी है। इतने सारे कार्यों के लिए समय किस तरह निकालती हैं?

अगर कोई व्यक्ति किसी कार्य के प्रति पूर्ण समर्पित है तो उसके लिए समय निकालना बहुत अधिक मुश्किल नहीं है। जिम्मेदारियां तो चलती रहती हैं, लेकिन हमें उस काम के लिए वक्त निकालना ही होगा, जिसे पूरा करने के लिए हम बने हैं। इससे हमारी पहचान बनती है।

विदेश में कार्यक्रम के दौरान घर और परिवार को किस तरह संभालती हैं?

मेरा परिवार हर कदम पर मेरा साथ देता है। उनकी मदद के बिना कुछ भी संभव नहीं था। घर पर मेरी मदद करने वाले वर्किंग स्टाफ को मैं विशेष रूप से धन्यवाद देती हूं। उन्हीं की बदौलत मैं भारत के बाहर अपना परफॉर्मेंस दे पाती हूं।

घर वालों का सहयोग कितना रहा?

मैं भाग्यशाली हूं कि ऐसे परिवार में पैदा हुई, जो

लड़कियों को खूब पढ़ाना चाहते थे। मुझे परिवार वालों का पूर्ण सहयोग मिला। खासकर मेरी मां ने अपनी रुचि का क्षेत्र चुनने में पूरा सहयोग दिया, तभी मैंने गीत-संगीत को चुना। शादी के बाद मेरे ससुरजी, पति और बच्चों ने भी मुझे सपोर्ट किया।

मुश्किलों का सामना किस तरह किया?

ईश्वर में मेरी गहरी आस्था है। इसी वजह से मैं कई बार विषम परिस्थितियों से बाहर निकलने में कामयाब हुई।

बहुत बार कठिन क्षण ज्वार-भाटे के समान मेरी जिंदगी में आए, लेकिन मैंने हौसला बनाए रखा और उनका डटकर मुकाबला किया।

सूफी संगीत अंतस को जगाने में कितना कारगर है?

सृजनकर्ता के साथ होने का अहसास दिलाता है सूफिज्म। यह हमें अप्रतिबंधित प्रेम सिखाता है, लेकिन हर किसी को इसका खुले दिल से स्वागत करना चाहिए। बिना किसी रुकावट के प्रेम के अहसास को अंदर आने दीजिए।

इन दिनों युवाओं का सूफी संगीत की ओर झुकाव अधिक हो रहा है। इसकी वजह क्या मानती हैं?

यही तो संगीत की शक्ति है। इसमें इतनी अधिकगहराई और आकर्षण है कि हर उम्र के व्यक्ति इसकी तीव्रता और गहनता को महसूस कर सकते हैं। इनके गीतों के शब्दों और ताल को समझना और इससे संबद्ध होना भी आसान है। यही वजह है कि आध्यात्मिक जुड़ाव आसान हो जाता है। संगीत को आत्मा का आहार कहा जा सकता है। अगर सूफी संगीत की पहुंच युवाओं तक है और यह उन्हें तसल्ली प्रदान करती है तो यह बात बेहद खूबसूरत है।

ऐसे युवा जो सूफी संगीत से जुडऩा चाहते हैं, उनको क्या सलाह देना चाहेंगी?

पारलौकिक शक्तियों के प्रति सूफी संगीत नि:स्वार्थ प्रेम, मुक्ति, सहनशीलता, बराबरी, आदर, संतुलन और अप्रतिबंधित समर्पण के समान है! सूफिज्म के संदेश प्रासंगिक हैं। युवाओं को इसे अपने व्यवहार में शामिल करना होगा।

दिनचर्या में रियाज किस तरह शामिल होता है?

कई सालों के बाद मैंने अपनी एक दिनचर्या बनाई है, जिसमें कुछ घंटों का रियाज शामिल है। वहीं अपने परिवार, दोस्तों और सामाजिक कार्यों के लिए भी मेरे पास भरपूर समय होता है।

गीत-संगीत के अलावा, आपकी रुचि के और कौन-कौन से काम हैं?

परिवार के लिए भोजन बनाने में मुझे बहुत खुशी मिलती है। इतने सालों में इस क्षेत्र के लगभग गायब हो चुके व्यंजनों पर मैंने खूब रिसर्च किया है। मैंने कई व्यंजनों को बनाने में महारत हासिल कर ली है। सिनेमा मेरे लिए पैशन के समान है। पहले मैं सेंसर बोर्ड की सदस्य भी थी।

आगे की क्या योजना है?

जहां तक संभव हो सके, अवधी और बुंदेलखंडी लोकसंगीत और सूफी गीत-संगीत के लिए काम करना चाहती हूं। मैं इन गीतों को सभी पीढिय़ों के बीच लोकप्रिय बनाना चाहती हूं।

लोग आपको किस रूप में याद रखें?

लोग मुझे एक ऐसी सिंगर के रूप में याद रखें, जिसने उत्तर प्रदेश के दुर्लभ और परंपरागत मौखिक गीतों के दस्तावेज तैयार करने में खुद को समर्पित कर दिया। गांव और घर की चारदीवारियों में कैद होकर गांव की औरतों ने जो गीत गाए हैं, मेरे कुछ गीत उनसे भी प्रभावित हैं। इसमें उनके रोज के जीवन के संघर्ष, जद्दोजहद, पीड़ा के साथ-साथ खुशियां और आनंद सभी समाहित हैं। एक वाक्य में खुद की व्याख्या करें। एक ऐसी औरत जिसने अपनी अभिलाषा पूरी करने के लिए राह में आने वाली सभी मुसीबतों से मुकाबला किया।

स्मिता

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