बैडमिंटन चैंपियन बन रिश्तेदारों और आलोचकों को गलत प्रूव किया
साइना नेहवाल के रिश्तेदार कभी नहीं चाहते थे कि वे इस क्षेत्र में अपना करियर बनायें लेकिन उन्होंने बस खुद की सुनी और उन्हें गलत साबित किया।
बैडमिंटन की वर्ल्ड चैंपियन साइना नेहवाल भारत की पहली महिला हैं जो सबसे पहले बैडमिंटन में वर्ल्ड नंबर वन की चैंपियन बनी। 1990 में पैदा हुई साइना नेहवाल अपने बचपन के समय में कराटे का शौक रखती थी लेकिन बाद में उन्हें बैडमिंटन खेलने की प्रेरणा अपने पेरेंट्स से मिली जिसके बाद वे आठ साल की उम्र में कराटे छोड़ कर बैडमिंटन की तरफ मुड़ गईं। उन्हें इस गेम के प्रति इस कदर जूनून था कि इसके लिए प्रैक्टिस अपने युनिवर्सिटी में स्थित फैकल्टी क्लब के कोर्ट में किया करती थी। 19 वर्ष की उम्र में ही वे नेशनल चैंपियन बन गईं। 2006 आते-आते वे बैडमिंटन के क्षेत्र में एक ग्लोबल फेस बन चुकी थीं। 2010 में ही उन्हें राजीव गांधी खेल रत्न अवॉर्ड से भी नवाजा गया। उनकी लाइफ में कई ऐसी चीजें हैं जो हमें प्रेरित करती हैं, एक एस्पायरिंग गर्ल को उनकी लाइफ से क्या सीख लेनी चाहिए।
फाइटिंग स्पिरिट को बढ़ावा दिया
चोट के अपने बुरे दौर में भी उन्होंने खेलना नहीं छोड़ा। जब उनके पैरों में काफी गहरी चोटें आई और ब्लीडिंग हुई लेकिन इतने दर्द के बावजूद वे पीछे नहीं हटीं, ये उनके अंदर के स्पोर्ट्सपर्सन और उनकी फाइटिंग स्पिरिट को ही दर्शाता है।
कभी भी हतोत्साहित न होना
अपने चोट दौरान वे बिल्कुल भी हतोत्साहित नहीं हुई। कितनी बार उन्हें बैडमिंटन कोर्ट में जीत नहीं मिलीं लेकिन वे कभी भी हार नहीं मानी और हमेशा अपने मेहनत और हार्ड वर्क पर भरोसा करके आगे बढ़ती गईं।
दृढ़ इच्छा शक्ति
उनका मानना है कि ये उनकी इच्छा शक्ति ही है जो उन्हे जीत की ओर ले जाती है। वे हमेशा अच्छा खेलने और अपना बेस्ट देने पर विश्वास करती हैं। सबसे बड़ी बात वे खुद पर पूरा भरोसा रखती हैं।
अपने आलोचकों को गलत साबित किया
आलोचकों का कहना था कि साइना का शुरुआती दौर अच्छा था जो बाद में खराब होने लगा है, लेकिन साइना ने उन्हें गलत प्रूव कर दिखाया।
अपनी जीत को एंजॉय करना
साइना मानती हैं कि अगर आपने अपनी मेहनत के बल पर जीत हासिल की है तो उसे एंजॉय करना आपका हक है। आपको हर उस मोमेंट को एंजॉय करना चाहिए।
खुद के प्रति इमानदार रहें
क्रिकेट के लिए पागल इस देश में टेनिस और बैडमिंटन के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाना वास्तव में एक बहुत बड़ा चैलेंज था। लेकिन अपने जूनून और इमानदारी की वजह से उन्होंने इस मिथक को भी गलत साबित कर दिखाया।
फेल होने से डरें नहीं
साइना को कितनी बार मैच के दौरान हार का मुंह देखना पड़ा लेकिन वे कभी भी अपनी हार से अपसेट नहीं हुई। उनका मानना है कि फेल होकर अपसेट होने की जगह हमें उनसे सीख लेनी चाहिए। हमें तलाश करनी चाहिए कि हमने कहीं पर गलती की है और फिर उस पर वर्क करना शुरु कर देना चाहिए।
अपनी इंस्टिक्ट्स को फॉलो करें
साइना के रिश्तेदार कभी भी उनके करियर को लेकर खुश नहीं थे, लेकिन कोई भी उन्हें उनका लक्ष्य पाने से उन्हें नहीं रोक पाया। उन्होंने हमेशा अपने काम पर फोकस किया और आज वे बेस्ट बैडमिंटन प्लेयर के रुप में जानी जाती हैं।
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