सूफी संगीत से है रूहानी रिश्ता: रश्मि अग्रवाल
अपनी दिलकश आवाज से श्रोताओं को झुमा देने वाली रश्मि अग्रवाल न किसी संगीत घराने से ताल्लुक रखती हैं और न ही उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि संगीतज्ञों की हैं। रश्मि सूफी गीत रचती हैं, उन्हें गाती हैं, गजलें पढ़ती हैं। ठुमरी, दादरा को भी वे बड़ी सहजता से गा लेती हैं य्
अपनी दिलकश आवाज से श्रोताओं को झुमा देने वाली रश्मि अग्रवाल न किसी संगीत घराने से ताल्लुक रखती हैं और न ही उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि संगीतज्ञों की हैं। रश्मि सूफी गीत रचती हैं, उन्हें गाती हैं, गजलें पढ़ती हैं। ठुमरी, दादरा को भी वे बड़ी सहजता से गा लेती हैं यानी रश्मि गायन के क्षेत्र में हरफनमौला हैं। हाल ही में उन्होंने उजबेकिस्तान में शार्क तरुणअलारी ग्रैंड प्रिक्स प्रतियोगिता जीती है। यह मध्य एशिया का सबसे बड़ा संगीत महोत्सव है, जो यूनेस्को द्वारा संचालित होता है। इसमें 50 से अधिक गायकों ने हिस्सा लिया था। रश्मि यह प्रतियोगिता जीतने वाली पहली भारतीय महिला हैं। सूफी गीत रांझा जोगिदा गाने पर इन्हें हंगामा डिजिटल मीडिया ने बेस्ट फीमेल सिंगर का अवार्ड दिया। गीत-संगीत के क्षेत्र में अमूल्य योगदान देने के लिए दिल्ली में उन्हें 2014 का संभावना सम्मान भी मिल चुका है। रंग दे मौला सूफी एलबम के अलावा, उन्होंने कबीर के गीत और उत्तर प्रदेश के कई दिल छूने वाले लोकगीत गाए हैं। हाल ही में उनका एक गजल एलबम 'सेंटिमेंट्स' रिलीज हुआ है।
गायन की शुरुआत कब हुई
मेरे घर में म्यूजिक का माहौल नहीं था, पर पिताजी गाने सुनने के शौकीन थे। वह अंग्रेजी गाने, पाकिस्तानी गाने और रेडियो शिलॉन्ग खूब सुना करते थे। सुबह उनके द्वारा सुने जा रहे गीतों से ही आंख खुलती थी। जब कॉलेज पहुंची तो म्यूजिक सब्जेक्ट से पहली बार इंट्रोड्यूस हुई। बैचलर्स और मास्टर्स की डिग्री मैंने म्यूजिक से ही ली। फिर मेरी शादी हो गई। बेटी होने के बाद समय निकालकर मैंने ठुमरी और दादरे की शिक्षा ली। सात-आठ साल पहले, ओशो वर्ल्ड के एक प्रोग्राम में मैंने हिस्सा लिया था। वहीं मुझसे कहा गया कि कुछ ऐसे लिरिक्स की रचना करो, जो अंतर्मन का दिया जला दें। इसके बाद उसे गाओ। मैंने उसी समय सूफी मंत्रों पर रिसर्च करना शुरू कर दिया। इस तरह मैं गायन और फिर सूफी संगीत की ओर मुड़ गई।
सूफी संगीत से खास लगाव की वजह?
मैं गजल, ठुमरी, दादरा भी गाती हूं। मीरा, कबीर, नानक के निर्गुण भी गाती हूं। बाबा बुल्लेशाह को भी खूब गाया है मैंने। दरअसल, सूफी गाने दिल को छूते हैं। इसके अल्फाज सुकून देते हैं। संतों की बातें हमारे अंतर्मन को छूती हैं। लगता है मानो आत्मा और परमात्मा के बीच सीधा संबंध कायम हो गया है। इससे मेरा रूहानी रिश्ता है। सच कहें, यह शरीर और मस्तिष्क के लिए दवा के समान है।
गायन के लिए समय किस तरह निकालती हैं?
शादी के बाद जब बच्चे स्कूल जाने लायक हो गए तो मैंने संगीत की ओर ध्यान देना शुरू किया। मैंने समय को निश्चित कंपार्टमेंट्स में बांट दिया है। कुछ समय परिवार के लिए, कुछ समय संगीत के लिए मैंने निश्चित कर लिया है। अपने लिए स्पेस बनाना बहुत जरूरी है, ताकि आप अपनी रुचि के काम को कर सकें। मेरे लिए गाने के बिना जीना संभव नहीं है। आज भी सुबह वॉक और ब्रेकफास्ट के बाद जब बच्चे और पति घर से बाहर निकल जाते हैं तो मैं अपना रियाज करती हूं। यह समय 11.30 से 2.00 बजे के बीच का होता है। रोज रियाज के बिना तो गले में जंग लगने लगती है। इसके बाद मैं रिसर्च वर्क, म्यूजिक कंपोजिंग और गाने लिखने के लिए कंप्यूटर पर काम करती हूं।
इन दिनों क्या कर रही हैं?
मैं हमेशा कुछ न कुछ नया एक्सपेरिमेंट करती रहती हूं। मैंने भी सूफी संगीत लिखा है। जलालुद्दीन रूमी के सूफी गानों को हिंदी में अनुवाद किया है। सूफी संत राबिया के गानों का हिंदी में अनुवाद किया है। एक अपना सूफी एलबम भी तैयार कर रही हूं। वैसे बॉलीवुड में भी इन दिनों सूफी गानों की खूब मांग है। ज्यादातर फिल्मों में एक सूफी गीत जरूर होता है। अगर फिल्मों में गाने का मौका मिलता है तो यह एक स्वप्न पूरा होने जैसा होगा। मैं सिंगल गाने भी गाना चाहती हूं।
आप थीम बेस्ड गाने अधिक गाती हैं?
थीम बेस्ड गाने से आपको एक पहचान मिलती है। खुद भी बेहतर महसूस होता है। मुझे यह एहसास होता है कि अपने गानों के माध्यम से पूरी कहानी बयां कर दी। हाल में मैंने इकोज फ्रॉम उत्तर प्रदेश थीम पर गाने गाये। यहां की लोक गीत गाने वाली महिलाओं पर आधारित थी यह थीम। एक प्रोग्राम के दौरान शादी के बाद लड़की के जीवन में क्या परिवर्तन आते हैं, इस पर आधारित था मेरा गायन। इसकी संगीत जगत में काफी सराहना हुई थी। भारत और पाकिस्तान की जो उर्दू शायरा हैं, अलग-अलग क्षेत्र में मशरूफ होते हुए भी गजलों से जुड़ी हुई हैं, इनकी गजलों को चुनकर कंपोज कर गाया था। इनमें भारत की इंदिरा वर्मा, नसीम अंसारी, पाकिस्तान की परवीन शाकिर, किश्वर नाहिद, जेहरा निगाह का नाम प्रमुख है।
राह में आई मुसीबतों से किस तरह आपने मुकाबला किया?
ससुराल में संगीत का माहौल नहीं था। हमारे देश में मांएं अपने लड़कों की ब्रिंगिंग कुछ इस तरह करती हैं कि वे खुद को परिवार में खास समझने लगते हैं। उन्हें घर के कामकाज में स्त्री की मदद करना समय की बर्बादी लगता है। मुझे भी न सिर्फ घर-परिवार, बल्कि संगीत के क्षेत्र में संघर्ष करना पड़ा, पर धीरे-धीरे लोग मुझे समझने लगे। मेरे पति अनुपम बिजनेसमैन हैं। वह बहुत सर्पोटिव हैं। उन्होंने घर में मेरे लिए सपोर्ट सिस्टम डेवलप किया। आज भी जब कभी मैं परफॉर्म करती हूं तो वह बेहद खुश होते हैं। हालांकि हर महिला को स्ट्रगल करना पड़ता है। यदि अपनी रुचि के काम के लिए उन्हें पैशन है तो अपनी जरूरत के हिसाब से वे समय जरूर निकाल लेती हैं। फिर अपने लक्ष्य के लिए वे जी-जान लगा देती हैं।
आज के समय में गीत-संगीत के प्रचार-प्रसार का सबसे आसान तरीका क्या है?
सोशल साइट्स जैसे फेसबुक, ट्विटर, यू ट्यूब आदि सबसे अधिक आसान तरीका है गीत-संगीत के प्रचार-प्रसार के लिए। इनके माध्यम से आपकी पहुंच उन लोगों तक हो जाती है, जो आपको जानते तक नहीं हैं। मैंने फेसबुक पर अपना एक पेज भी बनाया हुआ है, जिस पर मेरे प्रशंसक अपनी प्रतिक्रियाएं देते रहते हैं और मेरी हौसलाअफजाई करते हैं।
लोगों को क्या संदेश देना चाहेंगी?
गीत-संगीत एक तपस्या के समान है। कई साल लगातार बिना रुके बिना थके यदि आप परिश्रम करते हैं, तब जाकर आपको फल मिलता है। इस क्षेत्र में कोई शॉर्ट कट भी नहीं है। बिना मेहनत के कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता है। अगर गीत-संगीत से जुड़े हैं तो अपना सौ प्रतिशत देना होगा।
(स्मिता)