पियुष को कथक से प्रीति
शुक्रिया, प्रीति-पियुष भारतीय संस्कृति की कथककला को फिल्मी-चमक धमक वाली दुनिया के बीच लाने का। इस यादगार प्रस्तुति को देश कभी नहीं भूल पाएगा। नृत्य की मॉम यानी मां, कही जाने सरोज खान से एक निजी चैनल के डांस शो में ऐसी प्रशंसा सुन प्रीति-पियुष का कथक के प्रति स्नेह-समर्पण
शुक्रिया, प्रीति-पियुष भारतीय संस्कृति की कथककला को फिल्मी-चमक धमक वाली दुनिया के बीच लाने का। इस यादगार प्रस्तुति को देश कभी नहीं भूल पाएगा। नृत्य की मॉम यानी मां, कही जाने सरोज खान से एक निजी चैनल के डांस शो में ऐसी प्रशंसा सुन प्रीति-पियुष का कथक के प्रति स्नेह-समर्पण लगन-जुनून इस कदर बढ़ गया कि अब रियाज-प्रस्तुतियों के साथ-साथ अपनी सांस्कृतिक कला संस्कारों को आने वाली पीढ़ी तक पहुंचाने का सिलसिला छिड़ गया है।
प्रीति-पियुष। उम्र 27-26 साल। 11 साल से युगल कथक कला की प्रस्तुतियां दे रहे हैं। भारत सभी राज्यों से लेकर वैश्विक पटल पर यूएस और स्वीट्जरलैंड को छोड़ दें सभी जगह युगल प्रस्तुति दे चुके हैं। 100 से अधिक घुंघरुओं को पैरों में बांध कर तालबद्ध पदचाप, विहंगम चक्कर स्वरूप में कथक की प्रस्तुति। नृत्य करते-करते उपज, ठाठ, आमद, उठान, परन आमद, टुकड़े, तिहाई, गत भाव व लड़ी जैसी प्रस्तुति देख नृत्य सभागार तालियों से गुंजायमान हो जाते हैं। कथा यानी कहानी उद्भाव से जन्मीं इस कथक कला के दो प्रमुख घराने लखनऊ व
जयपुर हैं। प्रीति व पियुष जयपुर घराने से ताल्लुक रखते हैं। कथक कला केंद्र में दोनों एक ही गुरु राजेंद्र गंगन के शागिर्द रहे। नृत्य की दुनिया में अनुभव के झरोखे से कुछ ऐसी ही यादगार यादें बयां करता है यह युवा युगल।
मां-पापा का साथ तो बन गई बात:
मूल रूप से हिमाचल की रहने वाली प्रीति ने बचपन में मद्रासी पड़ोसन सहेली के साथ पहले कर्नाटक संगीत सीखा। फिर जब प्रीति के साथ उनके मां-पापा गायत्री शर्मा व आरएल शर्मा का भी संगीत की दुनिया में ही बेटी को
आगे बढ़ाने सपना बन गया तो दस साल की उम्र में ही दिल्ली स्थित कथक कला केंद्र में दाखिला करा दिया। कथक के साथ यह सफर अब निरंतर चल रहा है। अपने मां-पिता को अपनी कामयाबी का श्रेय देते हुए प्रीति
बताती हैं कि बहुत कड़ी मेहनत के बाद किसी कला में निपुण हो पाता है इंसान।
कथक कला केंद्र में 12 साल कथक से लेकर तबला, योग, गाना सब सीखा। क्योंकि सिर्फ नृत्य सीख लेने भर से वह नहीं आ जाता। यह तो ऐसी कला है जिसमें जब तक ध्यान नहीं लगेगा तो इसमें रम नहीं पाएंगे और कदम थिरक नहीं पाएंगे। जब कथक में निपुण हो जाते हैं तब फिर तबले की थाप हमारे कदमों व प्रस्तुति के अनुकूल होती है।
पियुष जो कि राजस्थान के संगीत घराने से ताल्लुक रखते हैं जिनके जन्म होने पर कानों में पहले शब्द किसी श्लोक- मंत्र के नहीं बल्कि तबले के बोल पड़े थे। पियुष बताते हैं कि 14 साल तक परिवार में ही तबला वाद्य यंत्र सीखने के बाद पिता व दादा जी की इच्छा से कथक कला केंद्र का रुख कर लिया।
यहीं सुबह से शाम क्लास और रियाज में दिन बीतने लगे। कोई भी कला समर्पण मांगती है। 'मैं तकरीबन आठ से दस घंटे रियाज करता था। प्रीति जो कि उस वक्त कथक कला केंद्र में एक साल सीनियर थीं। प्रीति ने एक दिन कथक का रियाज करते देखा लगननिष्ठा देखकर युगल नृत्य का प्रस्ताव रखा। प्रीति ने कहा कि एक चुनौती है
कि आज शाम को ही प्रस्तुति है। चुनौती को स्वीकार किया और उस दिन छतरपुर स्थित ऑडिटोरियम में हुई
हमारी पहली युगल प्रस्तुति से हॉल तालियों की आवाज से गूंज उठा था।
लोगों ने खड़े होकर ताली बजाई।' तब से हमारे गुरु राजेंद्र जी की अनुमति से तय किया आगे से प्रीति-पियुष युगल प्रस्तुति ही देंगे। पियुष बताते हैं 11 साल हो गए आज हम भारत में खजुराहो फेस्टिवल से लेकर ऑस्ट्रेलिया के ओज-एशिया फेस्टिवल तक विश्व में अमूमन सब जगह प्रस्तुति दे चुके हैं और हर प्रस्तुति के बाद
हमारा सौभाग्य है कि अगली बार के लिए या अगले शो के लिए निमंत्रण मिल जाता है।
-एक-दूसरे को दी हमेशा चुनौती :
प्रीति-पियुष बताते हैं कि हमारे 11 साल के साथ संगीतज्ञ साथ में दोनों ने एकदूसरे से बहुत कुछ सीखा है और हमेशा एक-दूसरे को चुनौती देकर ही सीखा है ताकि आगे और बेहतर कर सकें उसी परिश्रम की देन है आज पद्मश्री पंडित बिरजू महाराज, उनके पंडित राम मोहन महाराज व लखनऊ घराने के गीतांजली लाल व जय किशन महाराज के साथ भी प्रस्तुति दे चुके हैं।
-डांस शो से मिला फेम :
कथक कला प्रस्तुति के दौरान एकदूसरे के सहयोग की तारीफ करते हुए प्रीति-पियुष बताते हैं कि पिछले वर्ष एक निजी चैनल पर आयोजित होने वाले डांस शो में पहली बार कथक कला की प्रस्तुति दिखी। कार्यक्रम के सभी जज सरोज खान, रेमो डिसूजा, प्रभु देवा सभी ने सराहना करते हुए इसे बॉलीवुड मंच पर सांस्कृति कला के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि बताया। हालांकि पहले राउंड में ही फाइनल तक की बढ़त बनाने के बावजूद वोटिंग के आधार पर हमे फाइनल में रनर-अप पर ही संतोष करना पड़ा। उत्सुक्ता से पियुष बताते हैं कि सबसे यादगार लम्हा तो वह था जब अमिताभ बच्चन जी के शो 'आज की रात है जिंदगी' में हमारी कला की पहचान के बूते हमे बुलाया
गया।
-अगली पीढ़ी तक पहुंचाने की बारी :
- जल्द ही तपस्या कला केंद्र के नाम से स्कूल शुरू कर आने वाली पीढ़ी को सांस्कृतिक कला के संस्कार देने की
तरफ भी प्रीति-पियुष चल पड़े हैं।
इसके लिए कई संस्थाओं के जरिये आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को कथक सिखाकर उन्हें इसके प्रति प्रेरित भी कर रहे हैं।
-प्रस्तुति : मनु त्यागी, नई दिल्ली