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जिया है पैशन को

अपने पैशन से एंटरप्रेन्योर के रूप में विशिष्ट पहचान बनाने वाली भारत की फैशन ई-रिटेल कंपनी वॉयला डॉट कॉम की को-फाउंडर और मार्केटिंग हेड जागृति श्रृंगी ने इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग की पढ़ाई की, लेकिन पति का सहयोग मिला तो आ गईं इस क्षेत्र में। हालांकि वह अपने पिता को अपना प्रेरणास्रोत

By Babita kashyapEdited By: Published: Tue, 29 Sep 2015 04:17 PM (IST)Updated: Tue, 29 Sep 2015 04:21 PM (IST)
जिया है पैशन को

अपने पैशन से एंटरप्रेन्योर के रूप में विशिष्ट पहचान बनाने वाली भारत की फैशन ई-रिटेल कंपनी वॉयला डॉट कॉम की को-फाउंडर और मार्केटिंग हेड जागृति श्रृंगी ने इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग की पढ़ाई की, लेकिन पति का सहयोग मिला तो आ गईं इस क्षेत्र में। हालांकि वह अपने पिता को अपना प्रेरणास्रोत मानती हैं

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भोपाल के मौलाना आजाद नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग करने के बाद इन्होंने पिट्सबर्ग यूनिवर्सिटी से टेलीकम्युनिकेशन में डिग्री हासिल की। फिर एक ट्रेनी के रूप में टेलीकॉम रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन सी-डॉट से कॅरियर का आगाज किया। जिंदगी को कहीं से यह भनक नहीं थी कि आने वाले सालों में कुछ अविस्मरणीय घटना दस्तक देने वाली है। बात साल 2005 की है। अमेरिका की लॉरेल नेटवर्क कंपनी ने पहली बार एक महिला सॉफ्टवेयर इंजीनियर को मौका दिया। वह महिला थीं जागृति श्रृंगी, जिन्होंने समय के साथ कंपनी में अपनी काबिलियत को साबित कर दिखाया। यहीं से इनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट भी आया। उन्होंने भारत लौटकर टेक्नोलॉजी और फैशन का संगम कर, कुछ अपना करने का इरादा किया जो 2012 में वॉयला डॉट कॉम के रूप में सामने आया।

आपने इंजीनियरिंग की है। फिर एंटरप्रेन्योर क्यों बनीं?

मेरे दिल में हमेशा से एंटरप्रेन्योर बनने की ख्वाहिश रही। इंजीनियरिंग के बाद जितने भी कार्य संबंधी अनुभव हुए, उसने मुझे कंपनी चलाने के दौरान आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार किया। ग्लोबल एक्सपीरियंस ने फलक बढ़ाया। आमतौर पर किसी एक शख्स में टेक्नोलॉजी और फैशन का पैशन होना संभव नहीं या तो वह टेक्नोलॉजी से सम्मोहित होगा या फैशन का कदरदान। मैं दोनों को लेकर पैशनेट हूं। परंपरा से इतर नजरिया है मेरा। इसलिए कॅरियर के पहले दशक में टेक्नोलॉजी के पैशन को जिया, लेकिन जब अंतर्मन से आवाज आई कि टेक्नोलॉजी और आर्ट के मिश्रण से कुछ करना है तो इस दिशा में संभावनाएं तलाशने लगी। यहीं से शुरू हुआ एंटरप्रेन्योर बनने का सफर।

क्या है वॉयला डॉट कॉम? फंड की व्यवस्था कैसे हुई?

वॉयला की शुरूआत डिजाइन ऐपरल के ऑनलाइन पोर्टल के रूप में हुई। समय बीतने के साथ इसमें हमने जूइॅल्रि को जोड़ा। इस तरह 2012 में कंपनी का पूरा फोकस इमिटेशन जूइॅल्रि पर हो गया। मेरा मानना है कि अगर आपको किसी मॉडल पर विश्वास है तो सबसे पहले खुद उसमें कैपिटल लगाएंगे। मैंने भी अपनी सेविंग्स झोंक डाली। इससे इनवेस्टर्स को कनविंस करना आसान हुआ। कई एंजेल इनवेस्टर्स ने हमारी कंपनी में कैपिटल लगाया है। जब नतीजे उत्साहवर्धक मिलने लगते हैं तो इनवेस्टर्स भी आपके विजन को और विस्तार देने लगते हैं।

ई-कॉमर्स स्पेस में कैसी चुनौतियां आईं? उनका सामना कैसे किया?

एक स्टार्ट-अप पर बहुत अधिक ध्यान देना होता है। काम की कोई निश्चित अवधि नहीं होती। प्रोडक्ट के लिए देश के अलग-अलग प्रांतों का भ्रमण करना होता है यानी टेक्नोलॉजी और ऑपरेशंस दोनों देखने होते हैं। शरूआत में मैं अधिक लोगों को हायर नहीं कर सकती थी। बैक ऐंड सप्लाई चेन को सुदृढ़ करने के बाद ही यह संभव हो सका। पहले के कुछेक महीनों में सबने मल्टीटास्क किया। बाजार की सख्त प्रतिस्पर्धा और बड़े ब्रांड्स के बीच खुद को स्थापित करना चैलेंज था। हमने उसे स्वीकार किया। आज हम हाई फैशन एक्सेसरीज बनाने के साथ ही उसे ऑनलाइन सेल करते हैं। साथ ही 35 दूसरे चैनलों, ऑफलाइन स्टोर और इंटरनेशनल पार्टनर्स के जरिये प्रोडक्ट को मार्केट तक पहुंचा रहे हैं।

क्या वॉयला को विस्तार देने की योजना है?

आज वॉयला को देश का नंबर वन डिजाइनर जूइॅल्रि ब्रांड बनते देखना, सुनहरे सपने के परवान चढऩे जैसा है। फिलहाल यह ग्रोइंग फेज में है। हाल ही में हमने पहला ऐप मैच द ड्रेस लॉन्च किया है। इस ऐप की मदद से आप ड्रेस से मैच करती हुई जूइॅल्रि खरीद सकती हैं। पहले आपको अपनी ड्रेस अपलोड करनी होगी, उसके बाद ऐप मैचिंग जूइॅल्रि के बारे में पूरी जानकारी दे देगा। बाजार में इसका अच्छा रिस्पॉन्स मिला है।

पहले इंजीनियर बनने का कोई विशेष कारण रहा?

अधिकतर लड़कियों की तरह डैड बचपन से ही आइडल रहे। वह इंजीनियर थे। इस तरह सात साल की उम्र में ही निर्णय ले लिया था कि इंजीनियरिंग में ही जाना है। नंबरों से दोस्ती थी, गणित से प्रेम था और उसमें एक्सेल भी करती थी। प्रॉब्लम सॉल्विंग का पैशन था सो अलग। आगे चलकर यही कौशल एंटरप्रेन्योर बनने में मददगार बना। हालांकि मैं एक बिजनेसवूमन, टेक पर्सन, मार्केटिंग पर्सनल सभी की भूमिका निभा चुकी हूं।

भारत के इंजीनियरिंग कॉलेजों और आईआईटी में लिंगानुपात का बड़ा अंतर क्यों है?

रुढि़वादी परंपराएं सबसे प्रमुख कारण हैं इस अंतर का। लड़कों को जहां बचपन से पजल, स्ट्रेटजी गेम, टेक सैवी होना सिखाया जाता है, वहीं लड़कियों को रसोई की जिम्मेदारी या बार्बी डॉल से खेलने की शिक्षा दी जाती है। लड़कों को लीडर के तौर पर ग्रूम किया जाता है, जबकि लड़कियों के साथ यह शर्त नहीं होती है। उनके रोल मॉडल्स भी कम होते हैं। आमतौर पर महिलाएं लोगों के साथ काम करना पसंद करती हैं, जबकि पुरुष चीजों के साथ। क्लासरूम में यह खाई सीधे-सीधे दिखाई देती है।

टेक्नोलॉजी से लगाव कैसे उत्पन्न हुआ?

मैं बहुत पढ़ाकू किस्म की स्टूडेंट थी। टेक्नोलॉजी से एक प्रकार का चुंबकीय आकर्षण था। घंटों पुरानी घडिय़ों, रेडियो को खोलना और देखना कि वह कैसे काम करता है, मेरा पसंदीदा काम था। हम किसी धनाढ्य परिवार से नहीं थे, लेकिन दो चीजें भरपूर थीं। पिता का समय और किताबों का साथ। जब भी हमें डैड की जरूरत महसूस होती, उनसे यूनिवर्स, फिजिक्स, मैकेनिक्स या फिर फिलॉसफी से संबंधित विषयों पर बातचीत का मन होता, वे संग होते। इसी प्रकार कभी किताबों का संकट नहीं रहा। हर पुस्तक मेले में जाना, लाइब्रेरीज की सदस्यता ग्रहण करना मेरे शौक रहे। इससे अधिक से अधिक जानने की जिज्ञासा प्रगाढ़ होती गई।

क्या भारत में महिला एंटरप्रेन्योर्स को ज्यादा संघर्ष करना पड़ रहा है?

हाईटेक स्टार्ट-अप में एक महिला होने के नाते मुझे इंडस्ट्री में स्थापित होने के लिए 100 प्रतिशत से ज्यादा झोंकना पड़ा। अधिकांश कॉन्फ्रेंस कॉल में लोग टेक मामलों पर विचार-विमर्श करने के लिए मिस्टर ऋंगी को तलाशते। यह सच है कि भारत में महिला एंटरप्रेन्योर्स का प्रतिशत कम है, लेकिन इंदिरा नुई, किरण मजूमदार शॉ के बाद ऋचा कार और अनीषा सिंह जैसी टैलेंटेड वूमन एंटरप्रेन्योर्स अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बनकर उभरी हैं।

काम और परिवार के बीच संतुलन कैसे बना पाती हैं?

स्टार्टअप के साथ-साथ दो बच्चों और घर को मैनेज करना कहीं से आसान नहीं है, लेकिन दिन का अधिक से अधिक उपयोग कर सकूं, इस पर पूरा ध्यान देती हूं। एक समय में एक ही जिम्मेदारी निभाती हूं। बारह घंटे काम करने के बाद जब घर लौटती हूं तो सिर्फ एक मां, एक पत्नी और बहू होती हूं। फोन, गैजेट कुछ नहीं होता मेरे पास।

कभी स्ट्रेस्ड होती हैं तो क्या करती हैं?

मेरे दोनों बेटे मेरे सबसे बड़े स्ट्रेस बस्टर्स हैं। जब वे दरवाजे पर मुझे देखते हैं तो उनकी आंखों की चमक देखने लायक होती है। इसके बाद पूरे दिन की कहानियां, अपडेट्स सुनकर स्ट्रेस छू-मंतर हो जाता है। शेष मी टाइम में योग और स्ट्रेंथ ट्रेनिंग से काफी रिलैक्स हो जाती हूं।

अब तक की इस यात्रा को कैसे समेटेंगी?

इंजीनियरिंग करने के बाद मेरी पहली नौकरी अमेरिका की लॉरेल कंपनी में लगी। वहां मैंने वर्क एथिक्स, सरल तरीके से और ईमानदारी से काम करना सीखा। चुनौतियां तो हमेशा रहती हैं, लेकिन अगर टीम मजबूत हो तो किसी भी परिस्थिति का सामना किया जा सकता है। इसलिए सफर की शुरूआत सही टीम के साथ करनी चाहिए। मेरी यात्रा में पिता जी सबसे बड़े प्रेरणास्रोत रहे। आज मैं जो भी हूं, इसका श्रेय उनको जाता है। इसी तरह अगर मेरे पति विश्वास ने रिस्क नहीं उठाए होते तो मेरे कदम भी नहीं बढ़ पाते। वह वॉयला की नींव हैं। उनकी दृढता, दृढ़निश्चय और एकाग्रता से हमने इतने कम अंतराल में यह सब कुछ हासिल कर लिया।

अंशु सिह


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