पैशन के लिए नहीं छोड़ी पढ़ाई : मंदार चंदावरकर
मंदार बताते हैं,‘मैं बचपन से ऐसा ही हूं। शांत-संयत और अपनी जिम्मेदारी समझने वाला। शायद इसलिए कि मैं घर का बड़ा बेटा था।
तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ के टीचर ‘भीड़े’ घर-घर में मशहूर हैं। बच्चों से लेकर किफायत पसंद मिजाज बड़े-बुजुर्गों तक। नौ साल हो गए हैं उन्हें इस किरदार को निभाते हुए। ‘भीड़े’ की तरह ही जिंदगी भी है उनकी। असल जीवन में भी खासे सुलझे हुए हैं। मंदार बताते हैं,‘मैं बचपन से ऐसा ही हूं। शांत-संयत और अपनी जिम्मेदारी समझने वाला। शायद इसलिए कि मैं घर का बड़ा बेटा था। वह भी एक मध्यवर्गीय फैमिली से। लिहाजा जिंदगी ने शरारती बनने का मौका ही नहीं दिया। थियेटर का शौक था, जो नौवीं क्लास तक आते-आते ही जुनून में तब्दील हो चुका था। उस वक्त ही तय कर लिया था कि इसी में करियर बनाना है। मगर पहले अच्छे नंबरों से दसवीं पास किया। 12वीं और इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी पूरी की।
तीन साल शारजाह में नौकरी की, बतौर मैकेनिकल इंजीनियर। लेकिन मन में इस जगत से जुड़ने की भावना प्रबल होती रही। आखिरकार साल 2000 में मुंबई वापस आ गया। तब दूरदर्शन के अलावा जी टीवी, स्टार टीवी व अन्य चैनल अस्तित्व में आ गए थे। कलाकारों के लिए गुंजाइश बढ़ गई थी। जी मराठी के विभिन्न कार्यक्रमों में मुझे बड़े मौके मिले। ‘तारक मेहता’ में ‘भीड़े’ की पत्नी बनीं सोनालिका जोशी के साथ उन्हीं दिनों ‘परिवार’ नामक सीरियल किया था। शो बहुत लंबा नहीं चला, मगर हम दोनों की जोड़ी खासी सराही गई। उसका फायदा हमें चार साल बाद मिला, जब असित मोदी ‘भीड़े’ ढूंढ़ रहे थे। सोनालिका ने मुझे ऑडिशन देने को कहा। आज आप लोगों के समक्ष हूं। ‘भीड़े’ के किरदार को मैंने पूरे मनोयोग से निभाया। सभी को यह प्रामाणिक लगा, क्योंकि मेरी असली जीवनशैली इससे मेल खाती है। मैं धार्मिक हूं। पूजा पाठ में मन लगता है। बचपन कालबा देवी में बीता। पढाई- लिखाई परेल इलाके में हुई। कॉलेज मांटुंगा में। शुरू से अनुशासित जीवन जिया।
-अमित कर्ण
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