मिली है आधी आजादी
पुरुष प्रधान समाज में महिलाएं आज भी अपना हक हासिल करने को लेकर संघर्षरत हैं। महिलाओं की आजादी के कथित पैरोकारों का दावा होता है कि समाज का बड़ा वर्ग उन्हें हर प्रकार की आजादी दे रहा है। उनका दावा होता है कि अब महिलाओं को अपना मनपसंद जीवनसाथी, कॅरियर
पुरुष प्रधान समाज में महिलाएं आज भी अपना हक हासिल करने को लेकर संघर्षरत हैं। महिलाओं की आजादी के कथित पैरोकारों का दावा होता है कि समाज का बड़ा वर्ग उन्हें हर प्रकार की आजादी दे रहा है। उनका दावा होता है कि अब महिलाओं को अपना मनपसंद जीवनसाथी, कॅरियर चुनने की आजादी है। महिलाओं की आजादी को यहीं तक सीमित कर महिला सशक्तिकरण के दावे पर फिल्म बिरादरी की अलग राय है। समाज की तमाम अच्छाई-बुराई को पर्दे पर जीने वाले कलाकार महिलाओं की आजादी को अलग-अलग तरह से परिभाषित करते हैं।
ग्रामीण स्तर पर विकास की जरूरत है
अक्षय कुमार, अभिनेता
पिछले करीब 25 साल से फिल्म इंडस्ट्री में सक्रिय हूं। मेरी पत्नी ट्विंकल खन्ना ने एक्टिंग से दूरी बनाने के बाद व्यवसाय का रुख कर लिया। दो बच्चों की मां बनने के बाद भी ट्विंकल घर और काम में संतुलन साध रही हैं। महिलाओं की आजादी को सिर्फ काम से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। वैसे ट्विंकल काम शौक के लिए करती हैं। मैंने उन्हें काम करने के लिए नहीं कहा है। यह उनका पैशन है। वह अपने काम को एंजॉय करती हैं। सिर्फ काम को महिलाओं की आजादी नहीं कहा जा सकता है। वे किसमें खुश है यह महत्वपूर्ण है। वैसे दिनोंदिन हम तरक्की की ओर अग्रसर हैं। हर क्षेत्र में महिलाएं खुद अपनी जगह बना रही हैं। उन्हें पिछड़ा नहीं कहा जा सकता। फिर भी ग्रामीण स्तर पर उनके विकास की जरूरत है। मैं लड़कियों के लिए मार्शल आर्ट स्कूल चलाता हूं। वहां उन्हें आत्मरक्षा के गुण सिखाए जाते हैं। मैं चाहता हूं कि हर स्कूल में लड़कियों को मार्शल आर्ट सिखाना अनिवार्य किया जाए। यहीं से उनकी आजादी और आत्मनिर्भरता शुरू होती है।
स्थिति में जरा सा सुधार हुआ है
प्रहलाद कक्कड़, एड गुरु
इन दिनों विज्ञापनों में महिलाओं को मात्र शो पीस के तौर पर पेश नहीं किया जा रहा। उनकी उजली तस्वीर भी दिखाई जा रही है। वाशिंग मशीन के एक विज्ञापन में महिला सेल्समैन से ऐसी वाशिंग मशीन दिखाने को कहती है जिसे पति भी चला सके यानी घरेलू काम का बोझ सिर्फ एक व्यक्ति के कंधों पर न रहे। भारतीय महिलाएं अब बहुत आगे आ चुकी हैं। अभी पुरुष आधुनिक भारतीय महिला को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। भारतीय परंपरा में महिलाओं ने कभी काम नहीं किया। आर्थिक रूप से वे पति या परिवार पर निर्भर रहीं। अब वे शिक्षित होने के कारण आत्मनिर्भर होने लगी हैं। पहले धारणा थी कि अपनी बेटियों को शिक्षित मत करो वे दूसरे परिवार में चली जाएंगी। ज्यादा पढ़ जाएंगी तो पुरानी परंपराओं और रुढिय़ों को लेकर सवाल उठाएंगी। अब छोटे शहरों में भी लड़कियां शिक्षित हो रही। सौ साल पुरानी परंपराओं और धारणाओं को लेकर उनका सवाल उठाना लाजमी है। यह सब समाज की हकीकत है। बीस साल पहले सिंगल मदर कितनी होती थीं? अब महिलाएं आत्मनिर्भर होने के कारण सालों पुरानी धारणा का पालन करने को बाध्य नहीं हैं।
मुझे पूरा मौका मिला
कोंकणा सेन, अभिनेत्री
सामाजिक बंधनों, मान्यताओं और सोच के स्तर पर महिलाओं को अभी भी आजादी नहीं मिल सकी है। देश में अभी भी महिलाओं को बराबरी का दर्जा नहीं मिला है। दोनों को बराबरी का हक देने के लिए शिक्षा, सरकार, कानून स्तर और कारपोरेट पॉलिसी में भी और ठोस प्रयास की जरूरत है। मैं खुशकिस्मत हूं कि पढ़ाई-लिखाई से लेकर कॅरियर चुनने का पूरा मौका मिला। शादीशुदा होने और मां बनने के बाद भी मैं काम करने को स्वतंत्र हूं। हालांकि अभी भी गांवों और शहरों में महिलाओं की स्थिति में कोई खास परिवर्तन नहीं आया है। फिल्म इंडस्ट्री की ही बात करें तो यहां पर समान काम के लिए महिला कलाकारों को पुरुषों के बराबर मेहनताना नहीं मिलता।
स्मिता श्रीवास्तव