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उस दिन के इंतजार में हूं जब महिला दिवस मनाने की आवयश्‍कता ही ना हो

दो लीक से हटकर फिल्मों ‘इंग्लिश विंग्लिश’ और ‘डियर जिंदगी’ की निर्देशक के रूप में ख्याति है गौरी शिंदे की। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस से पूर्व उनसे बातचीत की स्मिता श्रीवास्तव ने...

By Pratibha Kumari Edited By: Published: Mon, 06 Mar 2017 01:03 PM (IST)Updated: Tue, 07 Mar 2017 11:57 AM (IST)
उस दिन के इंतजार में हूं जब महिला दिवस मनाने की आवयश्‍कता ही ना हो
उस दिन के इंतजार में हूं जब महिला दिवस मनाने की आवयश्‍कता ही ना हो

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस आपके लिए क्या मायने रखता है?
मुझे लगता है कि हमें किसी एक दिन महिला दिवस की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। हमारे देश में हर दिन महिला दिवस होना चाहिए। लंबे समय से महिलाएं अपने हक के लिए आंदोलनरत हैं। वहीं, दूसरी ओर लगता है कि सेलिब्रेशन उम्दा विचार है। सालभर में एक दिन ही सही, उनसे जुड़े मुद्दों पर गहराई से चर्चा हो। अलबत्ता मैं उस दिन के इंतजार में हूं जब हमें महिला दिवस मनाने की आवश्यकता ही न हो। हमारे बीच लिंगभेद न हो और सभी को समानता का अहसास हो। महिला दिवस मनाने को लेकर मुझे एतराज नहीं है। मेरे लिए यह दिन निजी तौर पर अहम है। मैं गर्ल्‍स स्कूल में पढ़ी हूं। उसी दिन हम सहेलियों का गैंग बना था। लिहाजा अपनी दोस्ती का जश्न उस दिन मनाते हैं।

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इस वर्ष महिला दिवस की थीम है ‘बी बोल्ड फॉर चेंज’, आपका क्या सोचना है?
मेरे लिए बोल्ड का अर्थ है अपने सपनों को रंग देना और उन्हें साकार करने का प्रयास करना। अपने फैसलों पर यकीन रखना और हतोत्साहित नहीं होना। ज्यादातर लड़कियां अपनी ख्वाहिशें दबा जाती हैं। नया काम आरंभ करने से डरती हैं, यहां तक कि उसे व्यक्त करना भी जरूरी नहीं समझतीं। परिणाम को लेकर आशंकित रहती हैं।
उस भय पर काबू पाने को मैं बोल्ड कदम मानती हूं। उदाहरण के तौर पर किसी को दूसरे राज्य में पढ़ाई करनी है तो जरूर जाए। मन में बिना निगेटिव विचार पाले एक कदम तो बढ़ाए। छोटी सी सफलता आत्मविश्वास में इजाफा करती है। अगर पड़ोसी मुश्किल में है तो मदद को लेकर झिझके नहीं। साहसी बनें और मदद करें। अपने
फैसलों को लेकर आश्वस्त रहें। अपने भय पर काबू पा लेने से काम आसान हो जाते हैं।

आप अपनी जिंदगी का सबसे बोल्ड कदम क्या मानती हैं?
कदम उठाते समय अहसास नहीं होता। पीछे मुड़कर देखने पर लगता है वाकई साहसिक कदम उठाया। मैं पुणे में रहती थी। मेरी कॉलेज की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी। उस समय मैं 21 साल की थी। मैं स्पष्ट थी कि मुझे एडवरटाइजिंग में जाना है। मैं भली-भांति जानती थी उसके लिए मुंबई उपयुक्त जगह है। वहां कॅरियर के लिहाज से ढेरों अवसर हैं। मैंने अपनी दोस्त के साथ मुंबई आना सुनिश्चित किया था। मुझे भी पैरेंट्स को मनाने के लिए ढेरों जतन करने पड़े थे। आखिरकार उन्होंने सपोर्ट किया। मेरे लिए वह साहसिक कदम रहा। उस समय मेरी कई दोस्त यह कदम नहीं उठा सकीं। वे अलग-अलग कोर्स में एडमिशन लेकर संतुष्ट हुईं। मैंने मुंबई आकर खुद किराए पर घर खोजा और नौकरी तलाशी। मौजूदा दौर में बहुत सारी लड़कियां यह कदम उठा रही हैं। मैं उन्हें वाकई साहसी और निडर की संज्ञा दूंगी।

फिल्म ‘डियर जिंदगी’ में डायलॉग था ‘मुझे खूबसूरती नहीं, टैलेंट के बल पर काम चाहिए।’ असल जिंदगी में यह कितना सही मानती हैं?
लड़कियों का खूबसूरत होना ऊपरवाले की नियामत है। अगर पुरुष वर्चस्व वाला कार्यक्षेत्र है तो वे कभी-कभी आस-पास सुंदर लड़कियां रखते हैं, यह सत्य है। एंट्री लेवल पर यह काम कर सकता है मगर दीर्घकाल में यह काम नहीं करेगा, बशर्ते कि आपका कार्यक्षेत्र उसकी मांग न करता हो। मॉडलिंग, सिनेमा या विजुअल मीडियम में खूबसूरती अहम है। जहां तक मेरी बात है, मेरे लिए धर्म या लिंग मायने नहीं रखता बल्कि योग्यता अहम है। मेरे लिए काम में पारंगत होना जरूरी है। फिल्मी दुनिया ऐसी जगह है जहां देश-दुनिया से लोग आते हैं। वहां कोई बैकग्राउंड नहीं देखता सिर्फ योग्यता के आधार पर चुना जाता है।

महिला मुद्दों पर आधारित सिनेमा समाज के लिए कितना उपयोगी है?
बहुत अहम है। मुझे महिला प्रधान फिल्में बनाने का श्रेय दिया गया। मुझे पूर्व में वह स्वीकार नहीं हुआ। फिर लगा यही मेरी आवाज है। मैं अपनी बात को रख पा रही हूं। उसके लिए असहज क्यों महसूस करना? इस किस्म की फिल्मों में दर्शकों को कहानी से बांधे रखना अहम है। मुद्दों को मनोरंजक और यूनिक तरीके से प्रदर्शित करना
जरूरी है। भाषणबाजी के बजाय महिला का नजरिया शामिल होना चाहिए।

आपको अपनी फिल्मों के बाद सबसे अच्छा कांप्लीमेंट क्या मिला?
‘इंग्लिश विंग्लिश’ के बाद कई पुरुषों ने कहा कि उनका पत्नी के प्रति नजरिया बदला और उनकी योग्यता को सम्मान देना शुरू किया। उनके साथ किए गए व्यवहार का उन्हें अफसोस रहा। कुछ बच्चों ने कहा कि उन्होंने फिल्म से सबक लिया। वे मां की गरिमा का ख्याल रखेंगे। पुरुषों की सोच में बदलाव जानकर प्रसन्नता हुई। ‘डियर जिंदगी’ के बाद एक पैरेंट्स ने लिखा कि लॉस एंजिलिस में मैंने अपने घर जाकर बेटी को गले लगाया। उन्होंने मुझे बाकायदा एक लेख भेजा। उसमें पांच आवश्यक चीजें थीं जिसे वह अपनी बेटी के साथ नहीं करेंगे। जैसे बेटी पर पढ़ाई में अव्वल आने को लेकर दबाव नहीं बनाएंगे, उसकी इच्छाओं और महत्वाकांक्षाओं को समझने का प्रयास करेंगे आदि। यह पढ़कर बेहद खुशी हुई। अगर हमारी फिल्म से पांच लोगों में बदलाव आता है तो यह सराहनीय है। बहुत सारी युवा लड़कियों ने कहा कि वे महीनों से डिप्रेशन से गुजर रही थीं और जिंदगी को लेकर निराश थीं। फिल्म से उनका आत्मविश्वास बढ़ा।

कभी आप डिप्रेशन के दौर से गुजरी हैं?
जब मैं युवा थी तो मनमाफिक चीजें न होने पर बहुत निराशा हुई थी। मगर हां, समस्याओं के चलते मैं कभी हफ्तों तक घर नहीं बैठी। मेरे पास अच्छे दोस्त हैं। उनके साथ अपनी परेशानी साझा कर लेती हूं।

आप किन शख्सियतों से प्रभावित रही हैं?
मैंने कभी किसी एक को रोल मॉडल नहीं बनाया। ‘डियर जिंदगी’ में शाह रुख खान आलिया से पूछते हैं कि उनके बेहद करीबी पांच लोग कौन हैं? मेरे हिसाब से वे वक्त के साथ बदलते रहते हैं। कई लोगों के ख्यालात मुझे पसंद आते हैं। ब्रिटिश लेखिका वजीर्निया वुल्फ और मार्टिन लूथर किंग से प्रभावित रही हूं। ऐसे तमाम लोग हैं जिनकी फेहरिस्त काफी लंबी है।


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