कहानियों में इमोशन की जरूरत
अक्षय कुमार की फिल्म ‘बेबी’ की ‘स्पिन ऑफ’ है नाम शबाना’, यानी ऐसी फिल्म जिसमें पिछली फिल्म के किसी एक किरदार की परतें खोली जाती हैं। इसके निर्देशक शिवम नायर साझा कर रहे हैं फिल्म से जुड़ी बातें..
तापसी पन्नू अभिनीत ‘नाम शबाना’ के निर्देशक शिवम नायर की यह चौथी फिल्म है। नीरज पांडेय ने ‘बेबी’ की ‘स्पिन ऑफ’ फिल्म के बारे में सोचा तो उन्हें शिवम नायर का ही ख्याल आया। शिवम नायर से बातचीत के अंश:
‘नाम शबाना’ थोड़ा अजीब सा टाइटल है। कैसे यह नाम जेहन में आया और क्या है इस फिल्म में?
‘बेबी’ में तापसी पन्नू का नाम शबाना था। नीरज पांडेय ने ‘स्पिन ऑफ’ फिल्म के बारे में सोचा। भारत में यह अपने ढंग की पहली कोशिश है। ऐसी फिल्म में किसी एक कैरेक्टर की बैक स्टोरी पर जाते हैं। ‘नाम शबाना’ टाइटल नीरज ने ही सुझाया। फिल्म में मनोज बाजपेयी दो-तीन बार इसी रूप में नाम लेते हैं।
नीरज पांडेय की फिल्म में आप कैसे आए? उन्होंने आपको बुलाया या आप...
नीरज के साथ मेरे पुराने संबंध हैं। ‘ए वेडनेसडे’ के बाद उन्होंने मुझे दो बार बुलाया, लेकिन स्क्रिप्ट समझ में नहीं आई। यह विचार था कि कभी साथ काम करेंगे। मैं उनके पास ‘झांसी वाली वेडिंग’ लेकर गया। तभी उन्होंने ‘नाम शबाना’ का ऑफर दिया। मुझे स्क्रिप्ट पसंद आई।
क्या है ‘नाम शबाना’ की कहानी?
शबाना मुंबई के मुस्लिम इलाके में रहने वाली एक लड़की है। वह एकीडो की नेशनल चैंपियन बनना चाहती है। वह स्पष्ट सोच वाली लड़की है। वह तुरंत रिएक्ट करती है। स्ट्रांग कैरेक्टर है। उसकी जिंदगी में कुछ ऐसा होता है कि वह हिल जाती है। सिस्टम उसका सपोर्ट नहीं करता। तभी उस पर मनोज बाजपेयी के किरदार की नजर पड़ती है। वह उसे अपने साथ जोड़ लेते हैं। शबाना को एक बड़े मिशन पर मलेशिया भेजा जाता है। मैं पहली बार स्पाई थ्रिलर कर रहा हूं।
आपकी पिछली फिल्में नहीं चलीं। क्या वजहें रहीं?
मैं अपनी कहानी ढंग से नहीं कह सका। मैं तो आज भी कहता हूं कि अगर इम्तियाज अली ने ‘आहिस्ता आहिस्ता’ निर्देशित की होती तो उसे दर्शक पसंद करते। मैं उस कहानी के साथ न्याय नहीं कर सका। उसके बाद की दोनों फिल्में कमजोर रहीं। ‘नाम शबाना’ की स्क्रिप्ट परिष्कृत है। मेरी समझ में आई है। शबाना की जर्नी है इसमें। मेरी समस्या है कि मैं लेखक नहीं हूं। मुझे लेखक की मदद लेनी पड़ती है। मेरी पीढ़ी के सारे निर्देशक खुद लेखक हैं। वे लंबे समय तक चलेंगे।
फिल्म के कलाकारों के चुनाव में आपकी क्या भूमिका रही?
स्पिन ऑफ होने की वजह से तापसी पन्नू, अक्षय कुमार, अनुपम खेर और डैनी डेंजोग्पा को होना ही था। मनोज बाजपेयी मेरे पुराने दोस्त हैं। फिर भी उनकी भूमिका में मैं पहले किसी और एक्टर को लेने के बारे में सोच रहा था। नीरज ने आश्वस्त किया कि मनोज ही सही रहेंगे। रीडिंग आरंभ हुई तो मुझे पता चला कि मनोज तो कलाकार के तौर पर काफी इवॉल्व हो गए हैं। उन्होंने किरदार को पकड़ लिया। उनके बॉडी लैंग्वेज में कड़कपन चाहिए था। मैंने मनोज को बताया भी कि मैं पहले आपके लिए तैयार नहीं था। दक्षिण से मैं पृथ्वी राज को ले आया। वीरेन्द्र सक्सेना को भी एक खास रोल में देखेंगे।
तापसी पन्नू और अक्षय कुमार के बारे में क्या कहेंगे?
तापसी का तो कॅरियर डिफाइनिंग रोल है। एक्शन और इमोशन दोनों तरह के सीन में वह परफेक्ट हैं। अक्षय कुमार प्रोफेशनल और अनुशासित एक्टर हैं। मैं भी पहली बार पॉपुलर स्टार के साथ काम कर रहा था। उनसे एक कनेक्ट बना। उन्होंने खुद को रीइनवेंट किया है।
इस दौर का सिनेमा कितना बदल गया है?
अभी क्राफ्ट करेक्ट हो गया है। हमलोग इमोशन लाने में पिछड़ रहे हैं। आप राज कपूर, बिमल राय और गुरुदत्त की फिल्मों में इमोशन का लेवल देखिए और आज की फिल्मों पर नजर डालिए। अभी केवल राजकुमार हिरानी और इम्तियाज अली उस दिशा में थोड़ा आगे बढ़े हैं। हमारी पीढ़ी कहानी और इमोशन में मार खा रही है। नए लेखक इंप्रेस करने के लिए लिख रहे हैं। उनके लेखन में गहराई नहीं आ पाती। सभी जल्दबाजी मैं हैं।
-अजय ब्रह्मात्मज
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