दुनियाभर में देसराग
मशहूर वोकलिस्ट और गिटारिस्ट डॉ. प्रकाश सोनटक्के ने हिंदुस्तानी संगीत को इस प्रकार पेश किया है कि इसकी तरंगें दुनिया के हर संगीत से मिल जाती हैं। इस अद्भुत संगीतज्ञ से बात की यशा माथुर ने...
आपके नए एलबम ‘प्रोग्रेसिव रागा’ में खास क्या है?
यह पूरी तरह से राग आधारित है लेकिन आप सुनेंगे तो लगेगा कि यह कहीं रॉक लग रहा है कहीं जैज। इसमें हिंदुस्तानी संगीत की तरंगें दुनिया के हर संगीत से मिल रही हैं। भारतीय रागों को वेस्टर्न फॉर्मेट में बजाया है मैंने। यह एक प्रयोग है जिसे ज्यादा से ज्यादा संगीतज्ञों को करना चाहिए ताकि पूरी दुनिया को हिंदुस्तानी संगीत की महत्ता पता लगे। मेरा उद्देश्य यह बताना है कि हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की इतनी व्यापकता है कि वह दुनिया भर के संगीत के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल सकता है। दुनिया के किसी भी संगीत में आपको हमारी रागदारी मिल जाएगी। यह हमारे संगीत की खासियत है जिसे लोग समझ नहीं पाए हैं।
आपने एक नया इंस्ट्रूमेंट बनाया है। इसकी जरूरत क्यों महसूस हुई?
मैं जब विदेश जाता तो कई बार मेरा गिटार पूरी तरह से टूट जाता। एक बार तो कार्यक्रम से पहले मेरा वाद्ययंत्र चूर-चूर होकर आया। मैं बहुत घबरा गया। आपका वाद्ययंत्र आपकी जिंदगी होता है। तब मैंने सोचा कि मैं अपना ही ऐसा वाद्य बनाऊं जो फ्लाइट में केबिन लगेज के साथ आ जाए, फिर मैंने स्वर वीणा बनाई। इसको ‘लैप स्टील गिटार’ भी कहते हैं क्योंकि यह उस अमेरिकी परंपरा के अनुरुप है जिसमें स्टील के तार पड़ते हैं और गोद में रख कर बजाया जाता है।
हिंदुस्तानी संगीत को विदेश में कितना आदर मिलता है?
अमेरिकी संगीत हमें जमे या न जमे, लेकिन भारतीय संगीत के प्रति उनकी अपार श्रद्धा है। लोग नतमस्तक
होकर हमें सुनते हैं। यूरोप में तो इंस्ट्रूमेंट बजाने को प्राथमिकता देते हैं। उन्हें जिस काम में विशेषता और
सुंदरता नजर आती है उसी का चयन करते हैं। मैं जैज, रॉक, रैप सहित दुनिया में हर प्रकार के संगीत के साथ गिटार बजा चुका हूं। शास्त्रीय संगीत के कलाकारों को विदेश में काफी सम्मान मिलता है। अगर एक घंटे तक हम एक ही राग बजाते हैं तो भी वे शांति से बैठ कर सुनते हैं। हमारी शास्त्रीय परंपरा इतनी महान है कि बाहर से लोग आकर चालीस साल तक सीखते हैं और फिर भी कहते हैं कि मैं अभी पूरा सीख नहीं पाया हूं।
हमारे देश में हमारे ही संगीत का महत्व कम करके आंका जाता है, ऐसा क्यों है?
शास्त्रीय संगीत महान विद्या है। हमारे देश में इसकी इतनी महत्ता नहीं है क्योंकि इसे हमारी शिक्षा प्रणाली
में कायदे से डाला नहीं गया है। संगीत को एक आवश्यक विषय के रूप में रखना चाहिए। कला में ही संगीत को शामिल कर लेना चाहिए। बच्चे को जितना एक्सपोजर मिलेगा, वह उतना ही सीखेगा।
आजकल के बच्चों में तो सिंगर बनने का जुनून है?
हमने रियलिटी शोज में दो-तीन हजार बच्चों को गायक कह दिया लेकिन उनमें से कितने हैं जो अपने बलबूते पर काम कर रहे हैं। चैनल के अपने हित हैं पर आज आपको किसी इंडियन आइडल का नाम याद रहता है? इंस्ट्रूमेंटल संगीत बच्चे का सर्वांगीण विकास करता है। बच्चों को हम जो कल्चर देंगे, वही वह सीखेंगे। हमें बच्चों को इसी संस्कृति से जोड़ना होगा। मानसिक रूप से अविकसित बच्चे भी अगर कोई वाद्य बजाना शुरू कर देते हैं तो उनमें
अधिक आत्मविश्वास भर जाता है।
आप इंजीनियरिंग के छात्र रहे हैं?
मैं कहूंगा कि मैंने इंजीनियरिंग का निष्फल प्रयास किया। मेरी माताजी डॉ. मणि सोनटक्के और पिताजी डॉ. आर. वी. सोनटक्के महान संगीतज्ञ रहे हैं। पिताजी डबल डॉक्टरेट थे, एक वोकल में और एक वायलिन में। माताजी ने करीब 12 वाद्यों में मास्टर डिग्री ली। वे दोनों नहीं चाहते थे कि उनका बेटा संगीत में आए। वे सोचते थे कि शास्त्रीय संगीत में नाम कमाने के लिए मुझे काफी पापड़ बेलने होंगे, राजनीति का सामना करना पड़ेगा लेकिन मेरे भाग्य में संगीत ही लिखा था। जब मेरे पास म्यूजिक के प्रोग्राम आने लगे तो मैंने इंजीनियरिंग बीच में छोड़
दी। जब म्यूजिक में मास्टर डिग्री करने की बात आई तो पत्राचार से बीए किया। कैसे पास किया, मैं ही जानता हूं। महीने में करीब चालीस कार्यक्रम भी किए उस समय मैंने। मुझे दुख होता है कि संगीत पढ़ने के लिए मुझे किसी और विषय में बैचलर्स डिग्री करनी पड़ी। फिर मैंने मास्टर्स और पीएचडी की। हमारी गायकी के स्वरूप को हर प्रकार से गिटार में उतारने की कोशिश की है मैंने। पंडित किशन महाराज ने तो यहां तक कहा कि बेटा, मुझे विश्वास नहीं हो रहा कि इस वाद्य में तुम शास्त्रीय संगीत बजा रहे हो।
क्या शास्त्रीय संगीत कुछ घरानों तक सिमट कर रह गया है?
हम यह मान कर न चलें कि शास्त्रीय संगीत कुछ गिने-चुने घरानों के लिए ही है। केवल उसी घराने वाला सीखे और बजाए। बाहर से कोई नहीं सीख सकता। यह गलत है। हमें शास्त्रीय संगीत को और लोगों के लिए एक्सेसेबल बनाना होगा। इस तरह से पेश करना होगा कि दुनिया इसकी ओर अधिक आकर्षित हो।
संगीत की शिक्षा मुश्किल लगे तो क्या करें?
बचपन में मैंने हिंदी साहित्य काफी पढ़ा है। उस समय मुझे बेशक अज्ञेय समझ नहीं आए लेकिन मेरे माताजी-पिताजी ने कभी यह नहीं बोला कि हिंदी साहित्य मत पढ़ो। अज्ञेय मुश्किल हैं, मत पढ़ो। जब मैं 30 की उम्र का हुआ तो मुझे इनमें आनंद आने लगा। मैं कहता हूं कि जो चीज आज मुश्किल है, उस पर हम लगे रहें तो वह कल समझ में आने लगेगी। लेकिन हम यह समझने लगें कि बोरिंग है और अपने बच्चों को कहने लगें कि तुम मत करो तो वह सीखेगा
यशा माथुर