ये लड़कियां कैसे कर रही हैं यह करिश्मा, स्माल टाउन की बिग फाइटर्स
आजकल छोटे शहरों और मध्यवर्गीय परिवारों की लड़कियां भी ऊंचे मुकाम हासिल कर रही हैं। एक वक्त वह था जब तय दायरों में कैद थे उनके सजीले सपने, पर अब बदल रही है यह तस्वीर।
आजकल छोटे शहरों और मध्यवर्गीय परिवारों की लड़कियां भी ऊंचे मुकाम हासिल कर रही हैं। जब वे पहली फाइटर पायलट बनती हैं या फिर सिविल सेवा परीक्षा में टॉप करती हैं, मार्शल आर्ट चैंपियन बनती हैं या फिर कबड्डी की नेशनल प्लेयर बनती हैं तो लोग हैरान रह जाते हैं। ये लड़कियां कैसे कर रही हैं यह करिश्मा और कैसे लिख रही हैं कामयाबी की बड़ी कहानियां...
समाजशास्त्री रितु सारस्वत के अनुसार, टेक्नोलॉजी के टूल्स और घर से बाहर निकलने का अवसर मिलते ही लड़कियों की प्रतिभा खुलकर सामने आ रही है, जो समाज के लिए सुखद संकेत है। ये लड़कियां डर की दीवारें तोड़कर भर रही हैं बड़ी उड़ान। छोटे शहरों और मध्यमवर्गीय परिवारों से आने वाली इन लड़कियों की आजाद उड़ानों की अब कोई सीमा नहीं। इनमें अकेले चलने का साहस भी है और आसमां छू लेने का हैरान कर देने वाला हौसला भी। वे अपने शहर की उन सभी लड़कियों की रोल मॉडल बन रही हैं, जो स्मॉल टाउन या गांव की लड़कियां कहलाने के बंधनों से आजाद होकर बड़ी उड़ान भरना चाहती हैं। मिलते हैं कुछ ऐसी ही दिलेर-जांबाज लड़कियों से, जो छोटे शहर से निकल कर जा पहुंची हैं बड़े मुकाम तक....
चैलेंज लुभाता है मुझे
भावना कंठ
देश की पहली महिला फाइटर पायलट
स्थान बेगूसराय, बिहार
आठवीं क्लास में ही ठान लिया था कि पंछी की तरह आकाश में उडऩा है। कौतूहल रहता था कि पायलट कैसे होते हैं, विमान कैसे उड़ता है, इसकी टेक्नोलॉजी क्या है? अक्सर पापा से, स्कूल में सीनियर्स से और उन सबसे जिनसे मुझे लगता था कि वे मेरी कौतूहल को शांत कर सकते हैं, यही सवाल दोहराती थी। पायलट बनने की तैयारी मेरे मन में पूरी थी। बस समय का इंतजार था कि कब उस उम्र सीमा तक पहुंचना होगा, जब यह सपना पूरा होगा। खीझ भी होती थी कि एनडीए में महिलाओं को अब तक क्यों नहीं एंट्री मिली? खैर, पापा के कहने से इंजीनियरिंग में दाखिला लिया। भारतीय वायुसेना के लिए जमकर मेहनत की और शार्ट सर्विस कमीशन हासिल किया। फाइटर पायलट की ट्रेनिंग बहुत कठिन थी, लेकिन चुनौतियों से प्यार होने की वजह से मैंने इसे आसानी से कर लिया। इंजीनियरिंग के दौरान मेरा रुझान जब मॉडलिंग की तरफ गया तो पापा को लगा कि मैं लक्ष्य से भटक रही हूं, पर मैं हर चीज के बारे में जान लेना चाहती थी। प्रयोगशील रहना पसंद है मुझे।
संदेश: पैशन को पहचानें और लक्ष्य बनाएं, उससे समझौता न करें।
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एक्शन मूवी ने बनाया जुनूनी
रिचा गौड़, मार्शल आर्ट एक्सपर्ट, राष्ट्रपति अवॉर्डी
स्थान जयपुर, राजस्थान
बचपन से मैं टॉमब्वॉय थी। एक्शन मूवीज देखने का शौक था। पढ़ाई में ठीक थी, लेकिन जूडो-ताइक्वांडो ज्यादा समझ आती थी। इंटर स्कूल खेलने लगी। हर बार मेडल मिला। मेरी बहन इंजीनियर है। घर में सब चाहते थे कि मैं भी पढ़ाई करूं, कुछ बनकर दिखाऊं, लेकिन मेरा मन मार्शल आर्ट में ही रमा रहा। पापा लाइब्रेरियन थे। आर्थिक दिक्कतें थीं, इसलिए जयपुर से बाहर नहीं जा पाती थी। पर हारकर बैठ जाना कभी नहीं आया। सोशल प्रेशर काफी था। सब बोलते थे कि यह लड़कियों का खेल नहीं है। जब पैरेंट्स भी कहते कि पढ़ाई में ध्यान दो, मार्शल आर्ट से जिंदगी नहीं चलेगी तो परेशान होना लाजिमी था, लेकिन अपनी जिद पर अड़ी रही। कभी-कभी खाना छोड़ देती थी। इस खेल में मेल कोच च्यादा होते हैं। उनके साथ घर वाले अकेले भेजना नहीं चाहते थे। अंतत: वही हुआ जो मेरी जिद थी। मेरी लोकप्रियता बढ़ी तो पापा भी समझ गए कि मैं इसके अलावा और कुछ नहीं कर सकती। उन्होंने अपनी सारी जमा-पूंजी दे दी ताकि मैं वल्र्ड चैंपियनशिप खेल सकूं। वह मेरा साथ देने लगे। इससे आत्मविश्वास बढ़ता गया। किक-बॉक्सिंग आसान नहीं है, पर खेलती हूं। छह बार नेशनल चैंपियन बनी। इंटरनेशनल जीते हैं। 17 की उम्र में राजस्थान पुलिस में भी ट्रेनिंग दी है। हजारों लड़कियों को सेल्फ डिफेंस में प्रशिक्षित कर चुकी हूं। हमेशा नई तकनीक सीखती हूं। खुद को नई चुनौतियों के लिए तैयार करती हूं।
संदेश: जिद पॉजिटिव हो तो जीत निश्चित है।
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