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मजबूत उम्मीदों पर भारी पड़े कमजोर मुक्के

भारतीयों ने अपने मुक्केबाजों से लंदन ओलंपिक में कई पदक झटकने की उम्मीद लगाई थी लेकिन उनके मुक्के इतने कमजोर निकले कि इस खेल में पुरुषों ने देश को कोई पदक नहीं दिया। लंदन ओलंपिक से भारत के सात पुरुष मुक्केबाज खाली हाथ ही लौटेंगे।

By Edited By: Published: Thu, 09 Aug 2012 08:52 PM (IST)Updated: Fri, 10 Aug 2012 09:24 AM (IST)
मजबूत उम्मीदों पर भारी पड़े कमजोर मुक्के

लंदन। भारतीयों ने अपने मुक्केबाजों से लंदन ओलंपिक में कई पदक झटकने की उम्मीद लगाई थी लेकिन उनके मुक्के इतने कमजोर निकले कि इस खेल में पुरुषों ने देश को कोई पदक नहीं दिया। लंदन ओलंपिक से भारत के सात पुरुष मुक्केबाज खाली हाथ ही लौटेंगे।

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पुरुष मुक्केबाजों में आखिरी उम्मीद एल. देवेंद्रो सिंह से थी, लेकिन वह भी बुधवार देर रात क्वार्टर फाइनल में आयरलैंड के मुक्केबाज पैडी बार्नेस से 23-18 से हारकर बाहर हो गए। भारत की ओर से पुरुष मुक्केबाजी में अब तक का सबसे बड़ा दल गया था, जिसमें बीजिंग ओलंपिक कांस्य पदक विजेता विजेंद्र, विकास कृष्णन, शिव थापा, मनोज कुमार, सुमित सांगवान और जयभगवान के साथ लैशराम देवेंद्रो शामिल थे। सात पुरुषों में से सिर्फ विजेंद्र और देवेंद्रो ही अंतिम आठ तक पहुंच सके। बाकी के पांच या तो पहले या फिर दूसरे दौर से बाहर हो गए। हालांकि भारतीय मुक्केबाजों के निराशाजनक प्रदर्शन में बहुत बड़ा हाथ खराब अंपायरिंग और स्कोरिंग प्रणाली का भी रहा। जयभगवान, मनोज और सुमित ने अपनी हार के लिए सीधे-सीधे ज्यूरी को दोषी ठहराया, वहीं विकास को अमेरिका के दवाब के चलते जीतने के बावजूद हारा हुआ घोषित कर दिया गया। इसके बाद से उम्मीद जताई जा रही थी कि लंदन में बीजिंग से बेहतर प्रदर्शन करेंगे, लेकिन सभी नाकाम रहे।

लंदन में भारतीय पुरुष मुक्केबाजों का प्रदर्शन

शिव थापा - पहले राउंड में हारे

सुमित सांगवान- पहले दौर में बाहर

मनोज कुमार - दूसरे राउंड में हारे

विकास कृष्णन - दूसरे राउंड में बाहर

जयभगवान- दूसरे राउंड में हारे

देवेंद्रो सिंह - क्वार्टर फाइनल में बाहर

विजेंद्र - क्वार्टर फाइनल में हारे

खराब फैसलों से पड़ा असर: विजेंद्र

नई दिल्ली: लगातार दूसरे पदक का सपना चकनाचूर हो जाने के बाद मुक्केबाज विजेंद्र का कहना है कि लंदन ओलंपिक में खराब फैसलों से भारतीय मुक्केबाजों के मनोबल पर असर पड़ा, जिसके कारण हम पदक जीतने में नाकाम रहे।

भारत को मुक्केबाजी में पहला ओलंपिक पदक दिलाने वाले विजेंद्र ने कहा, 'यह खेल है और इसमें हार-जीत चलती रहती है। मैं संतुष्ट हूं कि मैंने अपना शत-प्रतिशत दिया। मैंने रिंग में पूरा प्रयास किया। अपना सब कुछ देने के बाद अगर हार मिलती है तो इसमें शर्मिदा होने जैसा कुछ नहीं है।' 26 वर्षीय विजेंद्र ने कहा कि सुमित की बाउट हारने के बाद हमने फैसले के खिलाफ अपील की थी, जिसे खारिज कर दिया गया। इसका टीम पर प्रतिकूल असर हुआ। इतनी बड़ी प्रतियोगिता में इस तरह की चीजें नहीं होनी चाहिए। मेरे अनुसार सुमित, मनोज और देवेंद्रो ने अपनी बाउट जीती थीं, लेकिन उन्हें स्कोर नहीं दिए गए। स्कोरिंग सिस्टम हमारे खिलाफ गया और इसका टीम के मनोबल पर नकारात्मक असर हुआ।

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