गुरुकुल की तरह चल रहा कल्पतरू आश्रम
जागरण संवाददाता, राउरकेला : बासंती कालोनी स्थित पहाड़ की चोटी पर वर्ष 1995 में कल्पतरू से
जागरण संवाददाता, राउरकेला :
बासंती कालोनी स्थित पहाड़ की चोटी पर वर्ष 1995 में कल्पतरू सेवा शिक्षा आश्रम की स्थापना हुई थी। मयूरभंज जिले के रहनेवाले परशुराम पंडा की देखरेख में इस आश्रम को चलाया जा रहा है। फिलहाल आश्रम में 150 से अधिक किशोर एवं वृद्ध रह रहे हैं। इनमें से 25 युवक शहर के विभिन्न कालेजों में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। परशुराम पंडा बताते हैं कि उन्हें शिक्षा से काफी लगाव है। उन्होंने सिर्फ राउरकेला ही नहीं बल्कि राज्य के अन्य शहरों में भी शिक्षा आश्रम खोल रखा है, जहां गुरुकुल की तर्ज पर आश्रम चलाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि आश्रम में 18 वर्ष से लेकर वृद्ध व्यक्ति तक रह रहे हैं। बांसती स्थित कल्पतरू सेवा शिक्षा आश्रम में उन्हें रखा जाता है जिनके माता पिता अपने बच्चों की पढ़ाई करवाने में असमर्थ होते हैं। ऐसे बच्चे आश्रम में रहकर अन्य कालेजों से पढ़ाई करते हैं। पढ़ाई का पूरा खर्च आश्रम संचालक ही उठाते हैं।
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गुरुकुल की तरह हैं नियम
सेवा शिक्षा आश्रम के संचालक पंडा ने बताया कि जिन प्रदेशों में गुरुकुल आश्रम है और वहां जिस तरह नियम व शर्तें हैं। ठीक उसी प्रकार कल्पतरू आश्रम के भी नियम व शर्ते हैं। हर दिन सुबह शाम आश्रम के बच्चे व बुजुर्ग एक साथ मिलकर प्रार्थना में शामिल होते हैं।
पहाड़ी पर है भगवान जगन्नाथ का मंदिर
शिक्षारत युवकों ने बताया कि पहाड़ी पर भगवान जगन्नाथ का मंदिर है। हर दिन मंदिर में पूजा पाठ व भजन कीर्तन का आयोजन किया जाता है। भजन कीर्तन में जितने भी दिव्यांग व बुजुर्ग व्यक्ति हैं सभी शामिल होते हैं।
सरकार से नहीं मिलता अनुदान
पंडा ने बताया कि जब से कल्पतरू सेवा शिक्षा आश्रम की स्थापना हुई है तब से सरकार की ओर से कोई अनुदान नहीं मिला है। वहीं जिन लोगों को इस सेवा कार्य से खुशी होती है वे स्वयं चावल, गेहूं, दाल, रुपये आदि दान कर जाते हैं। जिससे यह आश्रम अब तक चल रहा है।
:::::::::::::::::::::::ऊंची शिक्षा ग्रहण कर कई छात्र कर रहे रोजगार :संचालक ने बताया कि जब आश्रम की स्थापना हुई थी तब छोटे-छोटे बच्चे भी यहां रहते थे। परंतु अब 18 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों को ही आश्रम में रखा जाता है। यहां से सैकड़ों बच्चे कालेज, आइटीआइ व उच्च शिक्षण संस्थान में शिक्षा ग्रहण कर विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत है। प्रत्येक वर्ष अगस्त माह में आश्रम में एक दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है, जिसमें पूर्व छात्र भी शिरकत करते हैं।
:::::::::::::::::::::::::छात्रों को खलती है इनवर्टर की कमी :
आश्रम के बच्चों ने बताया कि आश्रम में हर तरह की सुविधा है। खेलने-कूदने का मैदान, फूलों का बगीचा, बैड¨मटन, फुटबॉल सहित अन्य खेल उपकरण हैं। परंतु इनवर्टर नहीं होने के कारण रात के समय बिजली गुल हो जाने पर उन्हें पढ़ाई में दिक्कत होती है।
:::::::::::::::::::::छेंड ¨रग रोड से आश्रम तक पक्की सड़क नहीं :
बच्चों ने बताया कि छेंड ¨रग रोड से आश्रम तक आने के लिए पेट्रोल पंप के बगल से कच्ची सड़क गुजरी है। पक्की सड़क नहीं होने से बारिश के दिनों में आवागमन में भारी असुविधा होती है। रास्ते में बिजली की सुविधा नहीं होने से शाम ढलते ही इस मार्ग से होकर आश्रम जाने में डर सताता है।
::::::::::::::::::::::::सुंदरगढ़ जिले के गुरुंडिया का निवासी हूं। दसवीं कक्षा तक की पढ़ाई गांव से ही किया। हमारे पिता की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण वे मेरी आगे की पढ़ाई नहीं करा सके। इस आश्रम के बारे में जानकारी मिलने के बाद यहां रहकर पढ़ाई कर रहा हूं। हमारे खाने-पीने व पढ़ाई का सारा खर्च पंडा सर ही देते हैं।
बुधन मुंडारी, विद्यार्थी
:::::::::::::::::::::::::बणई के खरियाबहाल का रहने वाला हूं। हमारे घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। आश्रम के बारे में मेरे एक दोस्त से जानकारी मिली। तब से आश्रम में रहकर पढ़ाई कर रहा हूं।
दुर्गा मुंडा, विद्यार्थी
:::::::बरसुआं का रहने वाला हूं। बराहवीं कक्षा तक की पढ़ाई गांव से पूरी की। हमारे घर की आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं है। आश्रम में रहकर छेंड स्थित आइटीआइ कालेज से पढ़ाई कर रहा हूं।
जगमोहन ¨सह, विद्यार्थी
::::::::::::::::::बणई के सिलवडीह का निवासी हूं। वेदव्यास के गुरुकुल सांस्कृतिक विद्यालय में मेरी पढ़ाई चल रही है। घर के आर्थिक हालात ठीक नहीं थे। आश्रम के बारे में पता चलने के बाद यहां रहकर कालेज आना जाना करता हूं। पढ़ाई का सारा खर्च आश्रम के संचालक ही देते हैं।
लादु मुंडा, विद्यार्थी
::::::::::::::::::::हमें शिक्षा से काफी लगाव है। राज्य के विभिन्न शहरों में गुरुकुल शिक्षा सेवा आश्रम संचालित है। गरीब व असहाय बच्चों को शिक्षा मुहैया कराना एवं उन्हें मुकाम तक पहुंचाना मेरा लक्ष्य है। बच्चों व असहाय लोगों के बीच रहने से मुझे काफी खुशी मिलती है।
- परशुराम पंडा, संचालक, कल्पतरू सेवा शिक्षा आश्रम