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भरोसे का ही नाम है भगवान

जागरण संवाददाता, राउरकेला : महाराजा अग्रसेन सेवा संघ के तत्वाधान में अग्रसेन भवन में आयोजित

By Edited By: Published: Thu, 29 Sep 2016 06:31 PM (IST)Updated: Thu, 29 Sep 2016 06:31 PM (IST)
भरोसे का ही नाम है भगवान

जागरण संवाददाता, राउरकेला : महाराजा अग्रसेन सेवा संघ के तत्वाधान में अग्रसेन भवन में आयोजित अग्र भागवत-पंचामृत में कथा श्रवण करने के लिए गुरुवार को भी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ जुटी। इस पावन कार्यक्रम में हैदराबाद से पधारे बाल व्यास कपिल जी शास्त्री की सुमधुर वाणी में कथा का वर्णन ने भक्तों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

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इस कार्यक्रम में उन्होंने बताया कि अग्रोहा जो हरियाणा प्रान्त में है , आज की इस कलिका का बैकुंठ है 7 सभी अग्रवंशियो को वहां जाकर भगवान अग्रसेन जी व मां महालक्ष्मी से अपने पितरो के लिए तर्पण, भजन कर उनकी प्रसन्नता के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। उन्होंने कहा भरोसे का नाम ही भगवान है। महाराजा अग्रसेन जी हमारे सनातन धर्म की रक्षा के लिए इस धरा धाम पर पधारे और समाज को एक नयी दिशा देकर समाज के उत्थान के लिए कार्य किया। एक ईंट एक रुपया की परंपरा देने वाले अग्रसेन जी ने समाज में समानता अमीर - गरीब , ऊंचा - नीचा , छोटा - बड़ा , जैसी कुरीतियों को समाप्त कर सामान्य जीवन जीने का सन्देश दिया और अपने राज्य में सब को समृद्ध बनाया। अगर आज इस परंपरा पर समाज सरकार ईमानदारी से काम करे तो समस्त भारत वर्ष में एक दो वर्ष में कोई गरीब नहीं रहेगा , कोई बिना मकान नहीं रहेगा, कोई दुखी नहीं रहेगा, कोई भूखा नहीं रहेगा। जिन नीतियों के विषय में समाज , सरकार आज सोच रहा है, उन बातों को आज से पांच हजार वर्ष पूर्व अग्रसेन जी महाराज ने एक सूत्र के रूप में हमें प्रदान किया परन्तु भारत के सामंत वाद में तथा समाज ने इसे स्वीकार नहीं किया, यह हमारे भारत वर्ष का दुर्भाग्य रहा। अब फिर से जन चेतना आई है और लोगों का इस और ध्यान गया है। अग्रसेन जी ने चारों वर्णों को समान समझा। अग्रोहा धाम के लिए उन्होंने कहा अगर वह जाकर कोई भी मनुष्य अपना मनोरथ रखता है , महालक्ष्मी की अराधना करता है तो उसके सभी कार्य सहज ही पूर्ण हो जाते हैं। आज की कथा में 18 यज्ञ , 18 गोत्र का वर्णन किया गया। भगवान ने अपना राज्य अपने पुत्रों को देकर खुद वनप्रस्थ कर गए। उन्होंने पुन: महालक्ष्मी की अराधना की एवम अग्रवंश को कभी छोड़कर ना जाने का वरदान लिया। बैकुंठ से उन्हें लेने जो विमान आया। उन्होंने लौटा दिया एवम स्वयं तप से शरीर को छोड़कर बैकुंठ दाम को पधारे। कथा विराम , हवन , आरती , प्रसाद का विशाल आयोजन किया गया।


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