75 साल बाद भी आमको सिमको उपेक्षित
जागरण संवाददाता, बीरमित्रपुर :
जल, जंगल, जमीन पर अधिकार के लिए आदिवासियों द्वारा किये गये खुंटकटी आंदोलन में 49 आंदोलनकारियों को अंग्रेजी हुकूमत ने गोलियों से भून दिया। देश का दूसरा जालियानावाला बाग आमको सिमको कांड के 75 साल बीत जाने के बावजूद न तो यहां शहीदों का राष्ट्रीय स्मारक बना और न ही उन्हें स्वाधीनता सेनानी का दर्जा मिला।
आदिवासी बहुल सुंदरगढ़ जिले में रायबोगा से 9 किलोमीटर दूर स्थित रक्त तीर्थ आमको सिमको में 25 अप्रैल 1939 को निर्मल मुंडा की अगुवाई में पांच हजार से अधिक आदिवासी जुटे थे एवं भू बंदोबस्त में संशोधन, 1908 के छोटानागपुर खुंटकटी कानून को लागू करने, बेगारी प्रथा को खत्म करने, जंगल जमीन पर आदिवासियों का पूर्ण अधिकार व मालगुजारी वसूली बंद करने, बेरोजगारी समस्या का समाधान, आदिवासी अंचल में शिक्षा का प्रचलन आदि मांगों को लेकर गांगपुर स्टेट की रानी मानकी रत्ना से मिलने पर विचार विमर्श कर रहे थे। आदिवासियों के आंदोलन की भनक लगने के बाद अंग्रेज के तत्कालीन पोलिटिकल एजेंट लेफ्टिनेंट मार्जर की अगुवाई में सैनिकों के साथ रानी रत्ना आंदोलन स्थल पर पहुंची। आंदोलन का नेतृत्व ले रहे निर्मल मुंडा को गिरफ्तार करने की कोशिश की। इसका विरोध मानिया मुंडा ने किया। इस दौरान आदिवासियों से इनकी झड़प हो गई। तब मार्जर ने सैनिकों को फायरिंग का आदेश दिया। आंदोलन कर रहे कुछ लोग निर्मल मुंडा को सुरक्षित निकालने में सफल रहे जबकि अंधाधुंध फायरिंग में 49 लोग मारे गये तथा 80 से अधिक लोग घायल हुए थे। शहीद हुए आदिवासियों को निकट ब्राह्मणमारा चूना भट्टी में जला दिये। इसके बाद हर साल 25 अप्रैल को इनकी स्मृति में सभा होती है। इस साल आमको सिमको शहीद स्मारक कमेटी का गठन कर इसकी हीरक जयंती मनाई जा रही है।