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भारत-ईरान चाबहार समझौते पर अमेरिकी सांसदों ने जताई चिंता

चाबहार समझौते पर अमेरिकी सीनेट के कुछ सदस्यों ने ऐतराज जताया है। उनका कहना है कि कहीं ईरान पर जारी कुछ प्रतिबंधों का भारत अवज्ञा तो नहीं कर रहा है।

By Lalit RaiEdited By: Published: Wed, 25 May 2016 10:20 AM (IST)Updated: Wed, 25 May 2016 02:09 PM (IST)
भारत-ईरान चाबहार समझौते पर अमेरिकी सांसदों ने जताई चिंता

वाशिंगटन। चाबहार पोर्ट को विकसित करने के लिए भारत और ईरान के बीच ऐतिहासिक समझौता हो गया है। लेकिन अमेरिकी कांग्रेस के सदस्यों को इस समझौते पर ऐतराज है। सीनेट के कुछ सदस्यों का कहना है कि ये देखना जरूरी है कि इस समझौते की वजह से ईरान पर लगाए गए कुछ अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों की अवहेलना तो नहीं हो रही है। सीनेट के सदस्यों की चिंता पर सहमति जताते हुए ओबामा प्रशासन का कहना है कि वो चाबहार समझौते पर बारीकी से नजर रख रहे हैं।

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अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक दक्षिण और मध्य एशिया की असिस्टेंट सेक्रेटरी निशा देसाई बिस्वाल ने कहा कि ईरान पर प्रतिबंध और भारत सरकार के समझौते पर अमेरिका पूरी तरह गंभीर है। अमेरिका इस बात को सुनिश्चित करेगा कि ईरान पर जारी कुछ अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों की भारत अवज्ञा न करे। भारत सरकार ने चाबहार पोर्ट के विकास के लिए 500 मिलियन डॉलर निवेश करने का फैसला किया है। इस समझौते के तहत पाकिस्तान को दरकिनार कर भारत अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक ईरान के रास्ते सीधी पहुंच बना सकता है।

अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों ने ईरान के परमाणु कार्यक्रमों में ढील देने के लिए प्रतिबंधों को हटाने का फैसला किया था। लेकिन आतंकवाद और मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामले में कुछ प्रतिबंध अभी भी जारी हैं। बिस्वाल ने कहा कि भारत और ईरान के बीच समझौते मुख्य रूप से ऊर्जा संबंधी जरूरतों और व्यापार से जुड़ी हुई है। अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच बनाने के लिए ईरान को प्रवेश द्वार बनाना भारत की जरूरत भी है।

बिस्वाल ने कहा कि ईरान साथ भारत के सामरिक समझौते अमेरिका के लिए मुद्दे हैं। लेकिन अभी तक इस तरह की जानकारी सामने नहीं आयी है जिससे ये साबित होता हो कि भारत ने मिलिट्री सहयोग पर कोई समझौता किया हो।

गौरतलब है कि पीएम मोदी जून में प्रस्तावित अमेरिकी यात्रा में सीनेट को संयुक्त रूप से संबोधित करेंगे। राष्ट्रपति ओबामा पहले ही कह चुके हैं कि 21 वीं सदी में भारत और अमेरिका एक साथ मिलकर नया इतिहास लिख सकते हैं।

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