हद से गुजरा फलस्तीन का दर्द
लंबे अर्से से अपनी आजादी या स्वतंत्र अस्तित्व के लिए तरस रहा फलस्तीन अब उस मुहाने पर है जहां विश्व समुदाय ने अपने निहित स्वार्थो से इतर ध्यान न दिया तो यहां के लोग नारकीय जीवन को विवश होंगे।
डॉ. रचना गुप्ता, रामल्ला (फलस्तीन)। लंबे अर्से से अपनी आजादी या स्वतंत्र अस्तित्व के लिए तरस रहा फलस्तीन अब उस मुहाने पर है जहां विश्व समुदाय ने अपने निहित स्वार्थो से इतर ध्यान न दिया तो यहां के लोग नारकीय जीवन को विवश होंगे। इजरायल यहां इस कदर हावी हो गया है कि मानवीय संवेदनाएं शून्य हो चुकी हैं। अपने हक के लिए जरा सी आवाज उठाने वालों का हश्र बुरा है। खास कर नई पीढ़ी। महिलाएं हों या पुरूष, सभी निशाने पर हैं। यहां हर व्यक्ति की पीड़ा अलग है।
हालिया मामलों में एक गर्भवती को इसलिए मार दिया गया क्योंकि उसके हाथ में धूप का चश्मा था। 12 से 18 वर्ष के युवा घरों से निकाल कर पेट्रोल छिड़क कर जला दिए गए। पांच वर्ष के बच्चों को गोलियों से छलनी किया गया। रोजाना ऐसी घटनाओं से फलस्तीन इसलिए रूबरू है क्योंकि साथ लगता देश इजरायल नहीं चाहता कि राजधानी रामल्ला में राष्ट्रपति महमूद अब्बास का भवन हो।
छोटी-छोटी मदद से चल रहा देश
उनके मंत्रिमंडल के ज्यादातर सहयोगी आशा सिर्फ ऐसे देशों से कर रहे हैं जो उनकी ओर मदद का हाथ बढ़ाएं। जैसे भारतीय राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के दौरे में इस देश को पांच मिलियन डॉलर (करीब 32 करोड़ 56 लाख रुपए) की मदद दी गई। ऐसी ही छोटी-छोटी मदद से यह देश चल रहा है। यहां का हर छोटा सा नागरिक अपनी परेशानियों को धुएं के छल्लों में उड़ा रहा है। इब्राहम खरीशी का कहना है कि इजरायल ने बहुत ही सोची समझी राजनीति के तहत हमारा पानी रोक लिया है। नदियों का प्रबंधन, बिजली का प्रबंधन, उपजाऊ भूमि का क्षेत्र और अपने जाने की सीमाएं भी इजरायल द्वारा हांकी जा रही हैं।
दूसरे देश जाना भी हमारे बस में नहीं, हर मामले में अनुमति लेनी पड़ती है। मेजन शामिया ने कहा कि न तो यहां कोई निर्यात कर सकता है न ही आयात की व्यवस्था है। दरअसल इजरायल व फलस्तीन में खटास अभी की नहीं है। यासिर अराफात के समय में भारत के मधुर संबधों का एक दौर था, चीजें फिर भी इतनी भयावह नहीं थी, परंतु अब क्रूरता की इंतिहा है। यहां नागरिकों के चेहरों पर सुकून की झलक नहीं, खौफ ही खौफ है। न जाने कब थोड़ी सी गलतफहमी होने पर बच्चे को इसलिए मार दें कि जेब में मोबाइल नहीं बंदूक है।
प्रदर्शन किया तो सीधे चार वर्ष की जेल
राजदूत डॉ. हुसाम जमलोत कहते हैं कि अब तो हफ्ते या हर माह इजरायल फलस्तीन को लेकर नया नियम बनाता है।यहां किसी ने प्रदर्शन किया तो सीधे चार वर्ष की जेल का फरमान अभी जारी किया गया है। फलस्तीन को हर उस शख्स का इंतजार रहता है जो यहां आकर व्यावहारिक स्थिति देखे और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी बात पहुंचाए। हां, इस बात की खुशी इन्हें जरूर है कि संयुक्त राष्ट्र में इस बार फलस्तीन का झंडा लहराया। भारतीय राष्ट्रपति ने इसके लिए बधाई भी दी है, लेकिन इजरायल के रास्ते रामल्ला पहुंचने पर जो मंजर दिखता है वह रोंगटे खड़े करता है।
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छोटी -छोटी बच्चियां भी सैन्य वर्दी में
इजरायली कानून के मुताबिक हर व्यक्ति को सेना में काम करना है इसलिए बॉर्डर पर छोटी -छोटी बच्चियां भी सैन्य वर्दी में मुस्तैद हैं, चूंकि अभी बच्चे ही हैं इसलिए व्यवहार में परिपक्वता नहीं है। इन्हें कभी भी शक के आधार पर ट्रिगर दबाने की अनुमति है। यही वजह है कि अब रामल्ला से लेकर गाजापट्टी तक सब कुछ भयावह हो चुका है।
घरों की छत पर कई पानी की टंकियां इसलिए हैं क्योंकि रामल्ला में पानी की अपनी व्यवस्था कम है। जबकि इजरायल की राजधानी तेल अवीव में अथाह पानी है लिहाजा वहां कोई टंकी नहीं रखता। हुजूम जमलोत कहते हैं कि यहां से घर छोड़ गए लोगों को वापसी की अनुमति नहीं है। उन्होंने निर्णय लिया है कि हम फलस्तीन छोड़ कर नहीं जाएंगे। यही इजरायल को रास नहीं आ रहा है। बहरहाल कई शांति समझौतों का दौर यहां दशकों से चल रहा है। कई देश मदद कर रहे हैं परंतु अमेरिका जैसे देशों सहित कई के अपने राजनीतिक निहितार्थ हैं। यहां स्थिति सामान्य होने में वक्त लगेगा।
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