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जाधव मामले में शरीफ सरकार की रणनीति पर पाकिस्तान में ही उठे सवाल

पूर्व एडीशनल अटॉर्नी जनरल और अंतरराष्ट्रीय कानून विशेषज्ञ तारिक खोखर ने इस बात पर खेद जताया कि पाकिस्तान ने घोषणा करके आइसीजे के न्यायाधिकार को स्वीकार कर लिया।

By Manish NegiEdited By: Published: Fri, 19 May 2017 07:14 PM (IST)Updated: Fri, 19 May 2017 07:14 PM (IST)
जाधव मामले में शरीफ सरकार की रणनीति पर पाकिस्तान में ही उठे सवाल
जाधव मामले में शरीफ सरकार की रणनीति पर पाकिस्तान में ही उठे सवाल

इस्लामाबाद, प्रेट्र। भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव के खिलाफ मामले को अंतरराष्ट्रीय अदालत (आइसीजे) में पेश करने की पाकिस्तान की नवाज शरीफ सरकार की रणनीति पर वहां के कानूनी विशेषज्ञ ही सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि पाकिस्तान की ओर से वहां कई गलतियां की गईं।

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पूर्व एडीशनल अटॉर्नी जनरल और अंतरराष्ट्रीय कानून विशेषज्ञ तारिक खोखर ने इस बात पर खेद जताया कि पाकिस्तान ने घोषणा करके आइसीजे के न्यायाधिकार को स्वीकार कर लिया। उन्होंने कहा, 'मध्यस्थता का मंच होने के कारण प्रत्येक प्रतिवादी देश को अपनी पसंद के एक व्यक्ति को आइसीजे में अस्थायी जज के रूप में नामांकित करने की अनुमति है.. भारत ने एक व्यक्ति को नामांकित किया, लेकिन पाकिस्तान ने नहीं। यही नहीं, पाकिस्तानी वकील ने पूरे आवंटित समय तक बहस भी नहीं की।'

पाकिस्तानी कानून मंत्रालय एक वरिष्ठ अधिकारी ने 'द एक्सप्रेस ट्रिब्यून' को बताया कि भारत आइसीजे के रजिस्ट्रार ऑफिस को मैनेज करने में सफल रहा। अदालत में मामले को तय करने में इस ऑफिस के पास काफी व्यापक अधिकार होते हैं। उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी वकील कुरैशी ने दो गलतियां कीं। पहली, उन्होंने सुनवाई के दौरान अस्थायी जज नामांकित नहीं किया। दूसरी, भारत और पाकिस्तान के बीच 2008 के राजनयिक सहायता संबंधी द्विपक्षीय समझौते पर उन्होंने भारतीय वकील हरीश साल्वे के तर्को का जवाब नहीं दिया। यही नहीं, पाकिस्तानी विदेश विभाग ने इस समझौते को संयुक्त राष्ट्र में पंजीकृत भी नहीं कराया था। इस समझौते के मुताबिक, दोनों देश आतंकवादियों को राजनयिक सहायता प्रदान करने के लिए बाध्य नहीं हैं और हरीश साल्वे ने यही दलील दी कि यह समझौता संयुक्त राष्ट्र में पंजीकृत नहीं है।

जानी-मानी वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता आसमा जहांगीर ने तो सीधा सवाल किया, 'जाधव को राजनयिक मदद उपलब्ध कराने से इन्कार करने की राय ही किसने दी थी?' पाकिस्तान बार काउंसिल के कार्यकारी सदस्य राहिल कामरान शेख ने कहा कि यह बेहद चिंता का विषय है कि अंतरराष्ट्रीय अदालत में पाकिस्तानी सफलता की दर 2 फीसद और भारतीय सफलता की दर 60 फीसद है। उन्होंने कहा, जाधव मामला इस बात को साबित करने का सबसे बढ़िया उदाहरण है कि किस तरह सेना और राजनीतिक संस्थाओं के बीच सत्ता संघर्ष की वजह से विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में खाई चौड़ी होती जा रही है।

पाकिस्तान बार काउंसिल के उपाध्यक्ष फरोग नसीम के मुताबिक, जब भारत जाधव मामले को आइसीजे लेकर गया था तब पाकिस्तान को वहां मुकदमा लड़ने की बजाए आइसीजे के न्यायाधिकार को अनिवार्य रूप से स्वीकार करने की अपनी 29 मार्च, 2017 की घोषणा तुरंत वापस ले लेनी चाहिए थी। अंतरराष्ट्रीय कानून के विशेषज्ञ अहमर बिलाल सूफी का विचार है कि पाकिस्तान को मामले के दूसरे चरण की तैयारी करनी चाहिए। दूसरा चरण ज्यादा अहम होगा क्योंकि यह मामले के गुण दोषों के आधार पर लड़ा जाएगा। इसमें पाकिस्तान को उसके आंतरिक मामलों में भारत द्वारा जाधव के जरिये किए जा रहे हस्तक्षेप के दस्तावेजी सुबूत पेश करने का मौका मिलेगा। इस दौरान पाकिस्तान जाधव की गतिविधियों की जांच में भारत से सहयोग की मांग पर भी जोर दे सकता है।

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