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डोकलाम विवाद के कारण मुसीबत में चीनी राष्ट्रपति चिनफिंग, उठ रहे सवाल

इसमें कोई शक नहीं कि चीन एक महाशक्ति है, लेकिन उनकी हरकतें गली के किसी गुंडे जैसी हैं। लेकिन डोकलाम विवाद राष्ट्रपति चिनफिंग के लिए गले की हड्डी जैसा बन गया है।

By Digpal SinghEdited By: Published: Wed, 23 Aug 2017 02:52 PM (IST)Updated: Wed, 23 Aug 2017 08:09 PM (IST)
डोकलाम विवाद के कारण मुसीबत में चीनी राष्ट्रपति चिनफिंग, उठ रहे सवाल
डोकलाम विवाद के कारण मुसीबत में चीनी राष्ट्रपति चिनफिंग, उठ रहे सवाल

नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। डोकलाम विवाद को करीब तीन महीने होने जा रहे हैं। इतने समय से दोनों देशों की सेनाएं यहां आमने-सामने खड़ी हैं। भारत जहां एक ओर इस विवाद का कूटनीतिक हल निकालने की कोशिशों में जुटा है, वहीं चीन की नापाक हरकतों को देखते हुए सीमा पर भी चौकसी बरते हुए है। गृहमंत्री राजनाथ सिंह को इस विवाद के जल्द सुलझने की उम्मीद है। भारत ने इस विवाद को सुलझाने का जो रास्ता सुझाया था, चीन उसे मानने को तैयार नहीं है। चीन की तरफ से रोज नई-नई तरह की धमकियां दी जा रही हैं।  इन धमकियों के पीछे उसकी बौखलाहट साफ झलकती है।

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चिनफिंग के लिए मुसीबत बना डोकलाम

डोकलाम विवाद चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के लिए एक तरह से गले की हड्डी बन चुका है। अपनी अकड़ के चलते चीन यहां से पीछे हटने को तैयार है और ऐसा प्रतीत होता है कि वह युद्ध में भी नहीं जाता चाहता। क्योंकि युद्ध हुआ तो इसका नुकसान चीन को भी उठाना पड़ेगा। इस मामले पर राष्ट्रपति चिनफिंग कई तरफ से घिर चुके हैं। इसे सुलझाने में नाकामी उनकी घरेलू और अंतरराष्ट्रीय साख के लिए खातक साबित हो रही है। अपनी ही पार्टी में उन पर लोगों का भरोसा कम होता दिख रहा है। इसी साल चीन में कई अहम बैठकें होने जा रही हैं। ऐसे में चिनफिंग पर दबाव होगा कि वह समय रहते डोकलाम विवाद का स्थायी हल खोज निकालें, जिससे पार्टी में उनका कद बना रहे।

पार्टी में गिर रहा चिनफिंग का कद

इस साल के अंत तक चीन की कम्युनिस्ट पार्टी अपनी 19वीं कांग्रेस का आयोजन करने जा रही है। राष्ट्रपति शी चिनफिंग की कोशिश होगी कि वे इसमें अपनी जगह पक्की करें। हालांकि उम्र के आधार पर चिनफिंग और चीनी प्रधानमंत्री ली केकियांग को ही पोलित ब्यूरो में जगह मिलेगी। आशंकाएं हैं कि चिनफिंग पोलित ब्यूरो की स्टैंडिंग कमेटी में अपने खास लोगों को जगह दिलाने की योजना बना रहे हैं। लेकिन, डोकलाम मुद्दे के चलते उन्हें इस बैठक में विरोध का सामना भी करना पड़ सकता है।

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चिनफिंग के नेतृत्व पर सवाल

भारत के साथ सीमा संबंधों को लेकर चीन जिस नीति का पालन करता है, उसके तीन खास बिंदु हैं। पहला है उस क्षेत्र में सड़क, पुल व अन्य इमारतें खड़ी करना जहां चीन मजबूत स्थिति में है। दूसरा- जिस क्षेत्र में भारतीय व चीनी सेनाएं अपना अधिकार जमाने के लिए प्रयासरत हैं और गश्त लगाती रहती हैं, वहां नैतिक-अनैतिक गतिविधियों के जरिए बढ़त बनाना। और आखिर में, समय-समय पर भारत की शक्ति को परखते रहना कि कहीं चीन उसके मुकाबले कमजोर तो नहीं पड़ रहा है। इन बिंदुओं पर गहराई से नजर डाली जाए तो डोकलाम विवाद का इतने लंबे समय तक खिंचना इस बात का प्रमाण है कि चीन की नीतियां धराशायी हो रही हैं। भारत अपने कदम पीछे खींचने को तैयार नहीं है, इससे चीनी राष्ट्रपति के नेतृत्व पर सवाल उठने की आशंका है।


ब्रिक्स सम्मेलन के विफल होने की आशंका

अगले महीने 3-5 सितंबर चीन के शिआमेन शहर में ब्रिक्स सम्मेलन होने जा रहा है। इस सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शामिल होने की अभी तक पुष्टि नहीं हुई है। ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के इस सहयोग संगठन में अगर मोदी शामिल नहीं होते हैं तो विश्व समुदाय में इसे सम्मेलन का विफल होना ही माना जाएगा। ऐसे समय में जब चिनफिंग चीन को दुनिया की सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था बनाने की कोशिशों में चुटे हैं, सम्मेलन का विफल होना उनकी करारी शिकस्त माना जाएगा।


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अंतरराष्ट्रीय बिरादरी ने मुंह मोड़ा

विवाद के दो महीने बाद भी कोई भी देश यहां तक कि पाकिस्तान भी खुलकर चीन के समर्थन में नहीं आया है। जबकि अमेरिका, ब्रिटेन और जापान ने भारत के कदम की सराहना की है। चीन की विस्तारवादी नीतियों को पूर्व में अमेरिका, वियतनाम और जापान की संधि चुनौती दे रही है। इसमें भारत के शामिल हो जाने से चिनफिंग की मुश्किलें और बढ़ जाएंगी। चीन का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार ऑस्ट्रेलिया भी भारत, अमेरिका और जापान के साथ मालाबार नौसेना अभ्यास में शामिल होना चाहता है। अगर डोकलाम विवाद के बाद भारत, ऑस्ट्रेलिया को भी इसमें शामिल कर लेता है तो चीन का एक मित्र देश उससे दूर हो जाएगा।


कोई रास्ता नहीं

डोकलाम जैसे छोटे से मुद्दे पर युद्ध करना चीन की बेवकूफी होगी और ऐसा भी नहीं होगा कि भारत युद्ध की स्थिति में पीछे हट जाए। इस युद्ध में भी चीन की जीत मुश्किल ही होगी, क्योंकि डोकलाम में भारतीय सेना रणनीतिक रूप से बेहतर स्थिति में है। भारत को अपनी जगह से हटाने के लिए या तो चीन को कहीं और से सीमा में प्रवेश करना पड़ेगा या फिर वायु सेना का प्रयोग करना होगा, जिससे दुनिया में चीन का नाम और खराब होगा।


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कहीं टूट न जाएं 'सुनहरे' सपने

तीसरी बार राष्ट्रपति बनने की शी चिनफिंग की पूरी कोशिश है, लेकिन डोकलाम विवाद को न सुलझा पाने के चलते उनका 2022 में फिर से राष्ट्रपति बनने का सपना टूट सकता है।

ऐसी धमकियां दे रहा चीन

इसमें कोई शक नहीं कि चीन एक महाशक्ति है, लेकिन उनकी हरकतें गली के किसी गुंडे जैसी हैं। अपने तमाम पड़ोसी देशों के साथ उसकी किसी न किसी बात पर तनातनी रहती है। डोकलाम विवाद के बाद भी वह भारत को कभी कश्मीर में घुस आने की धमकी दे रहा है तो कभी लद्दाख और बाड़ाहोती में घुसपैठ कर रहा है। इस बीच उसने एक और धमकी दी है। चीन ने भारतीय सीमा पर बुनियादी ढांचे को बीजिंग के लिए खतरा बताते हुए कहा, यदि उसकी सेना वहां कदम रखती है तो कोहराम मच जाएगा।


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