जेट पर हमले के बाद फिर आमने-सामने रूस और यूएस, जानें क्या है वजह
रूस ने कहा है कि सीमा को लांघने वाले नाटो के किसी भी विमान या ड्रोन पर न केवल निगाह रखी जाय़ेगी बल्कि बिना किसी पूर्व चेतावनी के उसे मार गिराया जायेगा।
दमिश्क, [स्पेशल डेस्क]। एक बार फिर से दुनिया के दो महाशक्ति देश आमने सामने हैं और वजह सीरिया में चल रहा संघर्ष। सीरिया में सुखोई-22 जेट विमान को अमेरिका की तरफ से मार गिराए जाने के बाद रूस ने अमेरिका को सख्त लहजे में फिर से चेतावनी दी है। रूस और ईरान ने मिलकर सीरिया में कार्यरत नाटो सेनाओं के लिए एक नई रेड लाईन निर्धारित की है। रूस ने कहा है कि इस सीमा को लांघने वाले नाटो के किसी भी विमान या ड्रोन पर न केवल निगाह रखी जाय़ेगी बल्कि बिना किसी पूर्व चेतावनी के उसे मार गिराया जायेगा।
अमेरिका ने किया अपना बचाव
अमेरिकी फौज ने कहा है कि सीरियाई विमान उसकी समर्थित स्थानीय टुकड़ियों पर बमबारी कर रहा था। इसलिए उसे मार गिराया गया। जबकि रूस ने कहा है कि सीरियाई विमान सरकार विरोधी गुटों को रोकने के मिशन पर था। सीरिया में अमेरिका और रूस के आमने-सामने आ जाने से एक बार फिर स्थितियां गंभीर हो गयी हैं।
ऑस्ट्रेलिया ने सीरिया में हवाई हमले पर लगाई रोक
ऑस्ट्रेलिया ने सीरिया में किए जा रहे हवाई हमलों पर फिलहाल रोक लगा दी है। सीरिया के एक जेट विमान को अमेरिका के निशाना बनाने पर यह निर्णय लिया गया। उधर, सीरिया के दक्षिण पश्चिम में स्थित डेरा में छिपे बैठे विद्रोहियों पर सरकार ने फिर से हमला बोल दिया। दो दिन के युद्ध विराम के बाद सरकार के निर्देश पर सेना ने रॉकेट के साथ तोपों से बम वर्षा कराई।
सेना की कोशिश है कि जार्डन के साथ लगती सीमा के हिस्से को कब्जे में लिया जाए। इससे विद्रोहियों पर अंकुश लग सकेगा। इस मामले में फिलहाल रूस और अमेरिका के बीच बातचीत चल रही है। शनिवार को दो दिन का युद्ध विराम घोषित किया गया था, ताकि छह साल से चले आ रहे गृह युद्ध को खत्म कराया जा सके। एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि सीमा के साथ लगते हिस्से के साथ शहर को निशाना बनाया गया। अगर सेना डेरा को मुक्त कराने के साथ सीमा के साथ लगते रास्ते पर कब्जा कर लेती है तो विद्रोहियों के लिए यह बड़ा झटका होगा।
सीरिया में अब तक चार लाख लोगों की मौत
सीरिया में एक दशक से भी ज्यादा समय से जारी गृहयुद्ध में अब तक करीब चार लाख लोगों की मौत हो चुकी है। इसमें काफी संख्या में बच्चे शामिल हैं। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक यहां पर छिड़े गृहयुद्ध के चलते पिछले तीन वर्षों में करीब पचास लाख लोग देश छोड़कर जा चुके हैं। वहीं करीब साठ लाख लोग बेघर हो चुके हैं।
यूएन ने माना है सबसे बड़ी मानवीय आपदा
संयुक्त राष्ट्र के रिपोर्ट के मुताबिक सीरिया में चल रहा गृहयुद्ध पिछले कुछ दशकों के दौरान सामने आई सबसे बड़ी मानवीय आपदा है, जिसमें लाखों की संख्या में बच्चे अनाथ हुए हैं और इतनी ही संख्या में बच्चों की मौत हुई है। यूनीसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक यहां के हर तीन में से एक स्कूल हमलों में नष्ट हो चुका है और करीब 17 लाख बच्चे पिछले एक वर्ष के दौरान स्कूल छोड़ चुके हैं। संयुक्त राष्ट्र की ही एक एजेंसी ने वर्ष 2016 को यहां के बच्चों के लिए सबसे बुरा वर्ष करार दिया है। इस दौरान यहां पर सबसे अधिक बच्चों की मौत हुई हैं।
सीरिया में रूस-अमेरिका आमने सामने
सीरिया में रूस जहां असद सरकार के समर्थन में वहां के विद्रोही गुटों पर ताबड़तोड़ हमले कर रहा है, वहीं अमेरिका असद के खिलाफ बड़े हमलों को अंजाम दे रहा है। लेकिन इन सभी के बीच यहां की आम जनता लगातार इन हमलों के निशाने पर है। यहां पर इसके पीछे की वजह को समझना बेहद जरूरी हो जाता है।
दरअसल, सोवियत संघ के जमाने से रूस का सीरिया के साथ एक रणनीतिक रिश्ता रहा है। लंबे समय से सीरिया के तट पर रूस का एक छोटा सा नौसैनिक अड्डा रहा है और सीरिया की फौज के साथ रूस का मजबूत संबंध रहा है। रूस सीरिया की फौज को हथियार मुहैया कराने वाला मुख्य आपूर्तिकर्ता देश है। वहीं सीरिया रूस के लिए मध्य पूर्व के इलाके में अपना प्रभाव जमाए रखने का एक माध्यम भी रहा है।
पुतिन जता चुके हैं विश्व युद्ध की आशंका
सीरिया में जिस तरह के हालात बन रहे हैं उसको लेकर रूसी राष्ट्रपति ने पिछले वर्ष इसके चलते विश्व युद्ध के खतरे की आशंका तक जाहिर कर दी थी। रूस की स्थानीय मीडिया ने इस तरह की रिपोर्ट पेश करते हुए दावा किया था कि इस आशंका के मद्देनजर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपने कुछ विदेश दौरों को रद भी कर दिया था।
सीरिया के लोगों को चौतरफा मार झेलनी पड़ रही है। वर्षों से ही यहां के लोग सीरिया राष्ट्रपति बशर अल असद के समर्थन वाली सेना, असद के विद्रोही गुट, अमेरिका के नेतृत्व वाली गठबंधन सेना, रूसी फौज, तुर्की सेना और आईएस के आतंकी हमलों की मार झेलने को मजबूर हैं। यहां पर छिड़े गृहयुद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र में एक प्रस्ताव पास किया गया था जिसके बाद वर्ष 2012 में यहां पर ने यहां पर संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन की स्थापना की गई थी।
असद को हटाने के लिए यूएस की मुहिम
सीरिया के मुद्दे पर पूरे विश्व समुदाय की लगभग एक ही सोच है। दुनिया के अधिकतर देश इस मुद्दे पर राष्ट्रपति बशर अल असद को गलत ठहराते हुए उनका सत्ता से हटने की अपील भी कर चुके हैं। हालांकि कुछ देशों ने अब तक इस मामले में अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है। अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आदेश के बाद सीरिया में किए गए मिसाइल हमले के बाद उन्होंने यह भी साफ कर दिया है कि सीरिया से असद सरकार को हटने या हटाने की जरूरत है। सीरिया पर अमेरिका के ताजा मिसाइल हमलों में वहां के मिलिट्री एयरबेस और फ्यूल डिपो को निशाना बनाया गया है।
सीरिया के खिलाफ प्रस्ताव पर रूस का वीटो
अमेरिका शुरू से ही सीरिया की सरकार के विरुद्ध रहा है तो रूस हमेशा सही वहां की सरकार का पक्षकार या हिमायती रहा है। यही वजह है कि जब इदलिब में हुए रासायनिक हमले के खिलाफ यूएन में प्रस्ताव लाया गया तो रूस ने यहां पर सीरिया की असद सरकार का बचाव किया। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। सीरिया पर रूस पहले भी एक तरफा खड़ा दिखाई दिया है। सीरिया के खिलाफ लाए गए प्रस्तावों पर वह अपने वीटो पावर का इस्तेमाल पहले भी करता रहा है।
सीरिया में रासायनिक हमले
सीरिया में कुछ महीने पहले रासयानिक हमले की ख़बर के बाद पूरी दुनिया हिल उठी। लेकिन, ऐसा भी पहली बार नही है कि यहां पर रासायनिक हमला पहली बार किया गया हो। अब तक सीरिया में तीन बार रासायनिक हमला किया जा चुका है। एक आंकड़े के मुताबिक सीरिया में वर्ष 2013 तक करीब दस हजार टन रासायनिक हथियारों का जखीरा था। इसमें से बाद में कुछ नष्ट भी कर दिए गए थे।
गृहयुद्ध की मार झेल रहे सीरिया में शांति स्थापना के मद्देनजर जिनेवा में पिछले वर्ष तीन और तुकी के अंकारा में एक बैठक आयोजित की गई। यह बैठकें फरवरी, मार्च, अप्रेल और दिसंबर में बुलाई गई थीं। अंकारा में हुई बैठक में पहली बार रूस तुर्की और ईरान यहां पर सीजफायर करने की बात पर सहमति हुए थे। इसके अलावा सीरिया में सीजफायर को लेकर अमेरिका और रूस में अलग से भी सहमति हुई थी, लेकिन यह कुछ समय के लिए ही रही।