चीन की धमकी, हिंद महासागर को अपना आंगन न समझे भारत
हाल ही में हिंद महासागर से पाकिस्तान तक पनडुब्बी ले जाने वाला चीन भारत की आपत्तियों से तिलमिला गया है। उसने कहा है कि यदि भारत हिंद महासागर को अपना बैकयार्ड (आंगन) समझता है तो भविष्य में टकराव हो सकता है। हालांकि सामरिक रूप से महत्वपूर्ण इस क्षेत्र में स्थिरता
बीजिंग। हाल ही में हिंद महासागर से पाकिस्तान तक पनडुब्बी ले जाने वाला चीन भारत की आपत्तियों से तिलमिला गया है। उसने कहा है कि यदि भारत हिंद महासागर को अपना बैकयार्ड (आंगन) समझता है तो भविष्य में टकराव हो सकता है। हालांकि सामरिक रूप से महत्वपूर्ण इस क्षेत्र में स्थिरता लाने में भारत की विशेष भूमिका को उसने स्वीकार किया है।
चीन के राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक वरिष्ठ कैप्टन झाओ यी ने अपने देश की यात्रा पर आए भारतीय पत्रकारों से बातचीत में यह बात कही। हिंद महासागर में चीनी नौसेना के बढ़ते दखल पर भारत की चिंताओं को लेकर उनसे सवाल किया गया था। झाओ ने कहा कि भौगोलिक स्थिति के हिसाब से मैं यह स्वीकार करता हूं कि हिंद महासागर और दक्षिण एशियाई क्षेत्र में स्थिरता लाने में भारत ने विशेष भूमिका अदा की है। लेकिन, एक खुले समुद्र के लिए बैकयार्ड शब्द का इस्तेमाल करना उचित नहीं है।
मुक्त आवाजाही कैसे?
उन्होंने कहा कि यदि भारत हिंद महासागर को अपना इलाका मानता है तो अमेरिका, रूस और ऑस्ट्रेलिया की नौसेना इस इलाके से मुक्त आवाजाही कैसे करती है। ऐसे में यदि हिंद महासागर को लेकर भारत की यह धारणा बनी रहती है तो संघर्ष कि किसी आशंका से समाप्त नहीं किया जा सकता।
कराची में पनडुब्बी खतरा नहीं
पाकिस्तान के कराची में मई में अपनी पनडुब्बी तैनात करने को लेकर चीन ने सफाई दी है। चीनी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता वरिष्ठ कर्नल यांग यूजिन ने कहा है कि यह किसी तीसरे पक्ष को नुकसान पहुंचाने के लिए नहीं है। वहीं, चीनी रक्षा मंत्रालय में एशियाई मामलों के ब्यूरो के स्टाफ ऑफिसर मेजर जियांग बिन ने कहा है कि हिंद महासागर में चीनी सेना की गतिविधियां जाहिर और पारदर्शी हैं। वे इसके बारे में भारत और क्षेत्र के अन्य देशों को पहले ही बता चुके हैं।
सैन्य मुख्यालयों के बीच हॉट लाइन जल्द
भारत और चीन की सशस्त्र सेनाओं के मुख्यालयों के बीच शीघ्र ही हॉट लाइन कायम किए जाने की संभावना है। रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता कर्नल यांग यूजिन ने कहा कि आपसी विश्वास बढ़ाने, परिस्थितियों के गलत आकलन और संकट से बचने के लिए हॉट लाइन जैसी व्यवस्था आवश्यक है। इस दिशा में बातचीत काफी आगे बढ़ गई है। एक बार इसकी मुख्य लाइन कायम हो जाने पर वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के बीच सीधी संपर्क सेवा शुरू हो जाएगी।
पढ़ेंः वायु प्रदूषण से भारत औऱ चीन को नुकसान