अफगान सुरक्षा के केंद्र में भारत, पाक को लगी मिर्ची
सूत्रों के मुताबिक अफगानिस्तान को सैन्य सामानों की आपूर्ति देने पर भारत व अमेरिका के बीच पहले ही सहमति बन चुकी है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो।पाकिस्तान चाहे जितना भी सिर पटक ले लेकिन अब यह तय है कि अफगानिस्तान की सुरक्षा व्यवस्था में भारत की भूमिका बढ़ने जा रही है। इस महीने के अंत में भारत अमेरिकी रणनीतिक व वाणिज्यिक डायलॉग में अफगानिस्तान को सैन्य मदद पहुंचाना एक अहम विषय है। बहुत संभव है कि इस वार्ता के दौरान ही अफगान को भारत की तरफ से दी जाने वाली सैन्य सामानों पर भी फैसला हो।
सूत्रों के मुताबिक भारत और अमेरिका के बीच सालाना तौर पर होने वाली रणनीतिक बातचीत 30 व 31 अगस्त, 2016 को होगी। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भारतीय पक्ष का और जॉन कैरी अमेरिकी पक्ष की अगुवाई करेंगी। इसमें द्विपक्षीय मुद्दों के साथ जिन अहम वैश्विक मुद्दों पर बातचीत होगी उनमें अफगानिस्तान को सैन्य सामानों की आपूर्ति सबसे महत्वपूर्ण होगी। भारत-अमेरिकी वार्ता से ठीक एक दिन पहले अफगानिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कदम शाह शाहिम नई दिल्ली पहुंचेंगे। माना जा रहा है कि शाहिम अपने साथ उन सैन्य उपकरणों की लिस्ट भी ला रहे हैं जिन्हें वे भारत से लेना चाहते हैं। सूत्रों के मुताबिक अफगानिस्तान को सैन्य सामानों की आपूर्ति देने पर भारत व अमेरिका के बीच पहले ही सहमति बन चुकी है। इस महीने की शुरुआत में अफगानिस्तान में अमेरिकी आर्मी के कमांडर जैक निकोलसन भारत के दौरे पर आये थे और तब इस मुद्दे पर विस्तार से बात हुई थी।
सूत्रों के मुताबिक अफगानिस्तान को सैन्य मदद पहुंचाने को लेकर भारत कोई जल्दबाजी में कदम नहीं उठाना चाहता। हालात ऐसे बन रहे हैं कि भारत अपने आप ही अफगानिस्तान की सुरक्षा के केंद्र में होने की तरफ बढ़ रहा है। अमेरिका के साथ ही रुस भी चाहता है कि भारत अफगान को ज्यादा सैन्य साजों समान दे। अफगान में तालिबान या अल कायदा या आइएस के खात्मे को भारत अपनी लंबी रणनीतिक हित के तौर पर देखता है। नब्बे के दशक में जब अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार बनी थी तब उसका खामियाजा भारत को भी उठाना पड़ा था। जबकि पाकिस्तान इन संगठनों को अपनी दूसरी हितों की वजह से बनाये रखना चाहता है। अफगानिस्तान राष्ट्रपति अब्दुल घनी स्वयं पाकिस्तान पर आरोप लगा रहे हैं कि वह उनके देश में अशांति फैला रहा है।
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