किडनी कैंसर की पहली रोबोटिक सर्जरी सफल
कैंसर जैसी जटिल बीमारी से जूझ रहे लोगों के लिए अच्छी खबर है। विषम परिस्थितियों में इससे पीडि़त व्यक्ति की रोबोटिक सर्जरी संभव है। भारतीय मूल के सर्जन इंदरबीर एस गिल के नेतृत्व में किडनी के कैंसर से पीड़ित नौ रोगियों पर इस तरह की पहली सर्जरी की गई है।
लॉस एंजिलिस। कैंसर जैसी जटिल बीमारी से जूझ रहे लोगों के लिए अच्छी खबर है। विषम परिस्थितियों में इससे पीडि़त व्यक्ति की रोबोटिक सर्जरी संभव है। भारतीय मूल के सर्जन इंदरबीर एस गिल के नेतृत्व में किडनी के कैंसर से पीड़ित नौ रोगियों पर इस तरह की पहली सर्जरी की गई है। सर्जरी में टीम ने केवल सात छोटे चीरे और चार रोबोटिक साधनों का इस्तेमाल किया।
यूरोलॉजी जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिणी कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ यूरोलॉजी में तैनात डॉक्टर इंदरबीर एस गिल ने अपने टीम के साथ किडनी के कैंसर से पीडि़त नौ रोगियों का ऑपरेशन किया है। डॉक्टर गिल के मुताबिक, किडनी के कैंसर और थ्रोंबस के तीसरे स्तर में पहुंच चुके नौ रोगियों का रोबोटिक आइवीसी थ्रोंबेक्टोमी से उपचार किया गया। सात माह की देखरेख के बाद सभी रोगी जीवित हैं। आठ रोगियों में बीमारी का कोई लक्षण नहीं पाया गया है। एक रोगी के रीढ़ में ट्यूमर है, जिसकी फिर से सर्जरी की जाएगी। डॉक्टर गिल ने बताया कि 'ओपन यूरोलॉजिक ऑन्कोलॉजिक सर्जरी में गुर्दे का कैंसर विकसित करने वाला स्तर तीन आइवीसी ट्यूमर (थ्रोंबेक्टोमी) का उपचार करना अत्यंत चुनौतीपूर्ण होता है।'
3-थ्रोंबस स्टेज में सर्जरी ही होता है विकल्प
किडनी में कैंसर जब तीसरे स्तर (थ्रोंबस या थक्का बनाने की स्थिति) में आ जाता है तो रोगी का आपरेशन (सर्जरी) करना जरूरी होता है, क्योंकि तीसरे स्तर में थक्के के बढ़ने और हृदय की तरफ जाने वाले मुख्य शिरे को चपेट में लेने का खतरा रहता है।
क्या है आइवीसी थ्रोंबेक्टोमी
परंपरागत रूप से इस पद्धति को इन्फीरिअर वेना कावा (आइवीसी) थ्रोंबेक्टोमी के नाम से जाना जाता है। इस पद्धति में बड़ा सा खुला चीरा लगाया जाता है। ऐसा इसलिए करना पड़ता है क्योंकि शिरे तक पहुंचना अक्सर कठिन होता है।