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चाबहार समझौते से युवाअों को रोजगार के अवसर मिलेंगेः मोदी

तेहरान में पीएम मोदी ने कहा कि पूंजी और प्रौद्योगिकी के जरिए चाबाहार में नई औद्योगिक संरचना खड़ी हो सकती है।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Mon, 23 May 2016 05:42 PM (IST)Updated: Tue, 24 May 2016 09:39 AM (IST)
चाबहार समझौते से युवाअों को रोजगार के अवसर मिलेंगेः मोदी

तेहरान (एएनअाई)। तेहरान में भारत, अफगानिस्तान और ईरान के बीच परिवहन को लेकर त्रिपक्षीय समझौता हुअा। ईरान में हुए इस ऐतिहासिक समझौते के बाद संबोधित करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि आज हम यहां इतिहास को बनते देख रहे हैं।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि आज भारत और ईरान इतिहास के निर्माण के साक्षी रहे हैं। आर्थिक सबंधों का एजेंडा दोनों देशों के लिए स्पष्ट प्राथमिकता है। हम दुनिया के साथ संपर्क करना चाहते हैं लेकिन आपस में बेहतर कनेक्टिविटी भी एक प्राथमिकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि इतिहास की उथलपुथल में भी दोनों दोनों देशों ने एक दूसरे का संपर्क कभी नहीं खोया।

चाबहार में पूंजी और प्रौद्योगिकी का प्रवाह नई औद्योगिक बुनियादी सुविधाओं के का नेतृत्व कर सकता है। त्रिपक्षीय परिवहन और ट्रांजिट कॉरिडोर हमारे लोगों के लिए शांति और समृद्धि का कॉरिडोर साबित होगा। चाबहार समझौता व्यापार का विस्तार, निवेश को आकर्षित, बुनियादी ढांचे का निर्माण और युवाओं को रोजगार के अवसर पैदा करेगा। यह समझौता उन लोगों के खिलाफ हमें मजबूती से खड़ा करेगा जिनका मकसद सिर्फ निर्दोषों को मारना है।

इससे पहले तेहरान में भारत, अफगानिस्तान और ईरान के बीच परिवहन को लेकर भारत के केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नीतिन गडकरी ने त्रिपक्षीय समझौता पर हस्ताक्षर किया।

वसुधैव कुटुम्बकम अवधारणा में दिखती है सूफीवाद की भावना

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तेहरान में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन कार्य़क्रम को संबोधित करते हुए कहा कि यह सम्मेलन का उचित वक्त है, यह हमारे पुराने साथ को याद करने और उसे नया करने का अवसर है। यह उन लोगों को उचित जवाब है जो हमारे समाज में उग्र विचारों को प्रचारित करते हैं। सूफीवाद की भावना भारत के वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा में दिखती है।

उन्होंने कहा कि जरदोजी, गोल्डोजी और चंदेरी शिल्प ईरानी समाज का एक हिस्से है, जो भारत में भी समान रूप से पाया जाता है। उन्होंने कहा कि आपके विचार-विमर्श वास्तव में संबंधों के लिए हमारी साहित्यिक अौर शैक्षणिक ताकत है। उन्होंने कहा कि भारत के धार्मिक महाकाव्य रामायण का एक दर्जन से अधिक अनुवाद फारसी में किया गया है, जिसमें देखा गया है कि 250 से अधिक शब्द फारसी के हैं।

उन्होंने कहा कि मध्यकालीन भारत में फारसी का उपयोग एक अदालती भाषा के रूप में किया जाता था लेकिन उससे भी अधिक इसकी लोकप्रियता भारतीयों के दिलों पर लिखा है।

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