कर्ज के बोझ से दबे श्रीलंका का चीन की तरफ झुकाव, भारत चिंतित
कर्ज के बोझ से बेहाल श्रीलंका का चीन की तरफ तेजी से झुकाव हो रहा है। रक्षा विशेषज्ञों का कहना है इस तरह के घटनाक्रम भारत के लिए चिंताजनक है।
नई दिल्ली। क्या श्रीलंका और भारत के संबंधों में चीन रोड़ा बन रहा है ? या कर्ज से बेहाल श्रीलंका के लिए चीन के साथ खड़ा होना उसकी मजबूरी है। बताया जा रहा है कि श्रीलंका की सिरीसेना सरकार भारत के साथ बेहतरीन रिश्ते बनाए रखना चाहती है। लेकिन चीन द्वारा दिए गए भारी भरकम कर्ज की वजह से उसके पास सीमित रास्ते बचे हुए हैं। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि श्रीलंका और चीन की करीबी की वजह से हिंद महासागर में शक्ति संतुलन पर असर पड़ेगा जिसकी वजह से भारत की चिंता स्वभाविक है।
श्रीलंका के साथ भारत आर्थिक और तकनीकी सहयोग पर समझौता करना चाहता है। लेकिन पूर्व राष्ट्रपति राजपक्षे की पार्टी विरोध कर रही है। इसका फायदा उठाकर चीन 1.4 बिलियन वाले कोलम्बो पोर्ट सिटी प्रोजेक्ट को आगे बढा़ने में जुटा हुआ है। इस मामले में श्रीलंका सरकार ने सफाई दी है कि वो कोलंबो पोर्ट में चीन को किसी तरह का मालिकाना हक नहीं देने जा रहा है। इसके साथ ही चीन को श्रीलंका अपनी जमीन का इस्तेमाल नहीं करने देगा।
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इसके अलावा चीन उन प्रोजेक्ट्स को भी आगे बढ़ा रहा है। जिसे अभी तक असंभव माना जाता था। इन प्रोजेक्ट्स में हंबनटोटा पोर्ट और मट्टाला एयरपोर्ट शामिल हैं जिसके आर्थिक उपयोगिता पर संदेह थे। इसके अलावा राजपक्षे के गृह जिले में सेज के स्थापना का भी प्रस्ताव है।
अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक रक्षा विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने कहा है कि श्रीलंका सरकार के इन फैसलों से हिंद महासागर कूटनीति और राजनीति का केंद्र बनेगा। उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार श्रीलंका से संबंधों को मजबूत बनाने के लिए काम कर रही है। लेकिन सरकार को अपनी नीति को और धारदार बनाना होगा।
गौरतलब है कि 1971 से 2012 के दौरान चीन ने श्रीलंका को पांच बिलियन डॉलर का कर्ज दिया था जिसमें 94 फीसद हिस्सा राजपक्षे के जमाने में मिला। राजपक्षे के शासन के दौरान श्रीलंका ने महंगे ब्याज दरों पर चीन से कर्ज लिया था। बताया जा रहा है कि श्रीलंका के सामने कर्जों को चुकता करने की चुनौती है। जिसकी वजह से उसका झुकाव चीन की तरफ ज्यादा हो रहा है।