गर्भनिरोधक गोलियों से नदियों की 'गोद' सूनी होने का खतरा
अनचाहे गर्भ से छुटकारा पाने को गर्भनिरोधक गोलियों का बढ़ता सेवन नदियों के लिए परेशानी का सबब बन रहा है। गर्भनिरोधक गोलियों में मौजूद हार्मोन घरेलू सीवेज के जरिये नदियों तक पहुंचने से जलीय जीवों के लिए खतरा पैदा हो गया है। समय रहते उपाय नहीं किए
हरिकिशन शर्मा, कोबलंज (जर्मनी): अनचाहे गर्भ से छुटकारा पाने को गर्भनिरोधक गोलियों का बढ़ता सेवन नदियों के लिए परेशानी का सबब बन रहा है। गर्भनिरोधक गोलियों में मौजूद हार्मोन घरेलू सीवेज के जरिये नदियों तक पहुंचने से जलीय जीवों के लिए खतरा पैदा हो गया है। समय रहते उपाय नहीं किए गए तो नदियों की 'गोद' सूनी हो सकती है।
नदियों को प्रदूषणमुक्त रखने में जुटी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के लिए गर्भनिरोधक हार्मोन जैसे सूक्ष्म प्रदूषक नई चुनौती बन गए हैं। यूरोपीय संघ ने तो नदियों में ऐसे हार्मोनों की निगरानी का निर्देश जारी कर इस दिशा में कदम उठाना भी शुरू कर दिया है।
विकसित देशों खासकर यूरोप में महिलाएं व्यापक स्तर पर गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन करती हैं। इसलिए यहां की नदियों के लिए खतरा अधिक है। धीरे-धीरे यह चलन भारत जैसे विकासशील देशों में भी बढ़ रहा है। इसलिए अभी से इससे निपटने की तैयारी करनी पड़ेगी।
गर्भनिरोधक गोलियों में इथायनल एस्ट्राइडिओल (ईई2) होता है। जब महिलाएं इनका सेवन करती हैं, तो यह सूक्ष्म प्रदूषक तत्व मल-मूत्र के जरिये घरेलू सीवेज में पहुंचता है। मौजूदा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांंट इसे साफ करने में सक्षम नहीं हैं। इसलिए यह नदियों में चला जाता है।
हाल में कई शोधों में यह निष्कर्ष सामने आया है कि ईई2 का मछलियों पर विपरीत असर पड़ता है, जिससे उनकी संख्या कम होने लगती है। कनाडा, ब्रिटेन और जर्मनी में इस तरह के शोध हुए हैं। कनाडा की यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू ब्रुंसविक-सेंट जॉन में कनाडियन रिवर्स इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक केरेन किड ने पिछले साल अपने शोध में पाया कि गर्भनिरोधक गोलियों का मछलियों पर विपरीत असर पड़ रहा है, जिससे उनकी संख्या घट रही है।
राइन में गर्भनिरोधक जाने से रोकने के प्रयास शुरू
इंटरनेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ द राइन (आइसीपीआर) लंबे समय से इस संबंध में कदम उठाने की वकालत कर रहा है। आइसीपीआर का कहना है कि जब भी लोगों को गर्भनिरोधक गोलियों के इस्तेमाल की जानकारी दी जाए, उन्हेंं इनके पर्यावरणीय प्रभावों के बारे में जरूर बताया जाए। आइसीपीआर की सचिव एनी शुल्ट-वुल्वर-लेडिग ने यहां 'दैनिक जागरण' को बताया कि यूरोपीय संघ ने मार्च 2015 में ऐथिंलेस्ट्रो डिओल, एस्ट्रोंडिओल और एस्ट्रोजन को अपनी निगरानी सूची में शामिल कर लिया है। राइन के जल में एस्ट्रोजन का स्तर कितना है, इसकी जांच अब तक नहीं होती थी, लेकिन अब इनकी निगरानी की जाएगी।
जर्मनी का फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी (बीएफजी) राइन नदी के जल की 24 घंटे निगरानी रखता है। अब यह संस्थान ही गर्भनिरोधकों से निकलने वाले हार्मोनों तथा सूक्ष्म प्रदूषकों की निगरानी करेगा। बीएफजी के जल गुणवत्ता निगरानी और रेडियोलॉजी विभाग के प्रमुख डा. मार्टिन कीलर ने कहा कि 2016 से राइन नदी के जल में ऐथिंलेस्ट्रोडिओल, एस्ट्रोडिओल और एस्ट्रोजन की मात्रा मापने की शुरुआत होगी। इसके लिए अत्याधुनिक विश्लेषणात्मक विधि तैयार की जा रही है।
खर्चीला है इन तत्वों को हटाना
घरेलू सीवेज से गर्भनिरोधक गोलियों के हार्मोन या अन्य सूक्ष्मप्रदूषकों को सीवेज से बाहर निकालना बहुत खर्चीला है। उदाहरण के लिए अगर ब्रिटेन के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों को इस स्तर का बनाया जाए तो लगभग 30 अरब पाउंड (3000 अरब रुपये) खर्च आएगा। जर्मनी की संघीय पर्यावरण एजेंसी ने भी फार्मास्यूटीकल्स सहित विभिन्न सूक्ष्म प्रदूषक तत्वों को शहरी घरेलू सीवेज से निकालने के लिए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों को अपग्रेड करने की लागत पर एक अध्ययन कराया है।
अध्ययन दल में शामिल लिपजिग यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर राबर्ट होलंदर का कहना है कि माइक्रोपॉल्यूटेंट्स को सीवेज से निकालने के लिए एक लाख की आबादी वाले शहर में 15 साल तक सालाना 10 से 13 करोड़ यूरो (करीब 700 करोड़ रुपये) निवेश करना पड़ेगा।