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सर्दी जुकाम की तरह फैल सकता है वाइफाई वायरस

शोधकर्ताओं ने पहली बार दर्शाया है कि वाइ-फाई नेटव‌र्क्स हवा के माध्यम से फैले वायरस से संक्रमित हो सकते हैं। यह वायरस घनी आबादी वाले क्षेत्रों में उतनी ही तेजी से फैलता है जितना तेजी से इंसानों में सर्दी जुकाम। यूनिवर्सिटी ऑफ लिवरपुल के शोधकर्ताओं ने वायरस के नकली हमले का डिजायन बनाया है। इस वायरस को चे

By Edited By: Published: Wed, 26 Feb 2014 07:31 PM (IST)Updated: Wed, 26 Feb 2014 08:03 PM (IST)
सर्दी जुकाम की तरह फैल सकता है वाइफाई वायरस

लंदन। शोधकर्ताओं ने पहली बार दर्शाया है कि वाइ-फाई नेटव‌र्क्स हवा के माध्यम से फैले वायरस से संक्रमित हो सकते हैं। यह वायरस घनी आबादी वाले क्षेत्रों में उतनी ही तेजी से फैलता है जितना तेजी से इंसानों में सर्दी जुकाम।

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यूनिवर्सिटी ऑफ लिवरपुल के शोधकर्ताओं ने वायरस के नकली हमले का डिजायन बनाया है। इस वायरस को चेमेलियॉन नाम दिया गया है। शोधकर्ताओं ने पाया कि यह वायरस न सिर्फ घरों और व्यवसायिक स्थलों पर तेजी से फैलता है बल्कि यह अपनी पहचान और उन बिंदुओं से बचाव करने में सक्षम था जहां पर वाइफाई को कूटभाषा और पासवर्ड से सुरक्षित रखा जाता है। यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ कंप्यूटर साइंस एंड इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग एंड इलेक्ट्रानिक्स के शोधकर्ताओं ने उत्तरी आयरलैंड के सबसे बड़े शहर बेलफास्ट और लंदन स्थित प्रयोगशाला में नकली हमला किया। उन्होंने पाया कि चेमेलियॉन हवा से पैदा हुए वायरस की तरह व्यवहार करता है। यह वाइफाई नेटवर्क के एसेस प्वांइट (एपी) से गुजरता हुआ चलता है, जो घरों और व्यवसायिक स्थलों को वाइफाई से जोड़ता है। घनी आबादी वाले क्षेत्रों में एपी ज्यादा होते हैं और एकदूसरे के काफी करीब होते हैं। इसका अर्थ यह है कि वायरस खास तौर पर 10 से 15 मीटर त्रिज्या के दायरे में जुड़े नेटवर्क के बीच तेजी से फैलता है। यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर ऑफ नेटवर्क सिक्योरिटी एलन मार्शल ने कहा कि जब चेमेलियॉन किसी एपी पर हमला करता है तो यह उसके काम करने की प्रणाली को प्रभावित नहीं करता है, लेकिन इससे जुड़े अन्य वाइफाई यूजर्स की जानकारी एकत्र करने और उनकी रिपोर्ट देने में सक्षम था। दरअसल, वाइफाई कनेक्शन तेजी से कंप्यूटर हैकरों के निशाने पर आ रहे हैं। इनकी कड़ी सुरक्षा प्रणाली के कारण वायरस का पता लगाना और उसका बचाव करना काफी मुश्किल होता है। मार्शल ने कहा कि इस शोध की मदद से एकत्रित आंकड़े का इस्तेमाल हम नई तकनीक विकसित करने में कर सकेंगे जिससे पता चलेगा कि हमला कब होने वाला है। यह शोध इंफार्मेशन सिक्योरिटी के जर्नल ईयूआरएएसआइपी में प्रकाशित हुआ है।


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