डॉक्टर बोले हटाओ लाइफ सपोर्ट तो कोमा से उठ गई
वह कई दिनों से कोमा में थी। गुलियन बेरी सिंड्रोम की चपेट में आने के कारण उसके शरीर के अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। उसे लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखा गया था। उसके बचने की उम्मीद न देखते हुए डॉक्टरों ने जैनी बोन के पति जॉन से
लंदन। वह कई दिनों से कोमा में थी। गुलियन बेरी सिंड्रोम की चपेट में आने के कारण उसके शरीर के अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। उसे लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखा गया था। उसके बचने की उम्मीद न देखते हुए डॉक्टरों ने जैनी बोन के पति जॉन से पूछा कि क्या उसका लाइफ सपोर्ट सिस्टम बंद कर दिया जाए। यह सुनते ही वह उठ बैठी।
हालांकि, उसके पति ने लाइफ सपोर्ट सिस्टम बंद करने से इंकार कर दिया था। जैनी ने बताया कि उसने अपने पति से कहा था कि यदि उसकी बीमारी लाइलाज हो जाए और वह ठीक न हो सके, तो वह मरना चाहेगी। सिंड्रोम के कारण वह सुन तो सकती थी, लेकिन कुछ कर नहीं सकती थी। इसके बावजूद जब सुना कि डॉक्टर उसके पति से लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटाने की बात कर रहे हैं और उसके पति ने इससे इंकार कर दिया है, तो वह उठ बैठी।
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महिला ने बताया कि मैं रिफलेक्स टेस्ट यानी अनैच्छिक क्रियाओं की भी प्रतिक्रिया नहीं दे रही थी। ऐसे में डॉक्टरों को लगा कि मेरे ठीक होने की कोई उम्मीद नहीं है। दिमाग का एक बड़ा हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया था। सरकारी इमारतों का सर्वे करने वाली बोन ने बताया कि पिछले साल 14 मार्च को उन्होंने पैर में सुई की चुभन आखिरी बार महसूस की थी, फिर भी काम पर जाती थी।
उन्होंने बताया कि वह सेंट्रल लंदन के टॉवर ब्लॉक में उस वक्त अकेली थीं, जब पैर में दर्द ऊपर की ओर बढ़ता जा रहा था। वह किसी तरह से ट्रेन पकड़कर बेडफोर्डशायर में अपने घर पहुंची। वहां से उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां बताया गया कि वह शायद गुलियन बेरी सिंड्रोम की शिकार हो गई हैं।
चली गई कोमा में
इसके कुछ घंटों बाद उन्हें दिल का दौरा पड़ा और वह कोमा में चली गईं थी। उन्होंने कहा कि वह अपने पति की शुक्र गुजार हैं, जिन्होंने उनकी इच्छा के विपरीत उन्हें लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखने का फैसला किया और अब उनकी हालत में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है।
1200 लोग सालाना बनते हैं शिकार
गुलियन बेरी सिड्रोंम (जीबीएस) में अज्ञात वायरस नसों पर हमला कर व्यक्ति को एकाएक अपाहिज बना देता है। इसके चलते लकवा मार जाता है और हाथ, पैर काम करना बंद कर देते हैं। अकेले ब्रिटेन में ही हर साल करीब 1200 लोग इस सिंड्रोम के शिकार बनते हैं। हालांकि, इनमें से करीब 80 फीसद मरीज तीन वर्षों में पूरी तरह ठीक हो जाते हैं।
(साभार : नई दुनिया)