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कार्टूनिस्ट, जो था अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सबसे बड़ा पैरोकार

आतंकी हमले में चार्ली एब्दो के संपादक और ख्यात कार्टूनिस्ट स्टीफेन कारबोनियर की भी मौत हो गई। दरअसल, आतंकियों के निशाने पर सबसे पहले स्टीफेन ही थे। कारण भी साफ है। स्टीफेन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सबसे बड़े पैरोकार थे। वे अपनी लकीरों के माध्यम से धर्म और राजनीति समेत

By manoj yadavEdited By: Published: Thu, 08 Jan 2015 03:47 PM (IST)Updated: Thu, 08 Jan 2015 03:49 PM (IST)
कार्टूनिस्ट, जो था अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सबसे बड़ा पैरोकार

पेरिस। आतंकी हमले में चार्ली एब्दो के संपादक और ख्यात कार्टूनिस्ट स्टीफेन कारबोनियर की भी मौत हो गई। दरअसल, आतंकियों के निशाने पर सबसे पहले स्टीफेन ही थे। कारण भी साफ है। स्टीफेन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सबसे बड़े पैरोकार थे। वे अपनी लकीरों के माध्यम से धर्म और राजनीति समेत समाज के हर पहलू पर निशाना साधते थे। इसके चलते उन्हें कई बार धमकियां भी मिलीं, लेकिन तमाम खतरों के बावजूद वे मैग्जीन की रीति-नीति बदलने के लिए तैयार नहीं हुए। उन्होंने कहा था कि घुटनों के बल जीने के बजाय खड़े रहकर मरना पसंद करुंगा...और आखिरी में ऐसा हुआ।

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कथिततौर पर इस्लाम विरोधी कार्टून बनाने पर मिली धमकियों के बाद उन्होंने 2012 में एसोसिएट प्रेस से साफ कहा था, मैं फ्रांसीसी कानून के तहत रहता हूं, न कि कुरान के कानून के तहत। स्टीफेन कई चरमपंथी गुटों के साथ-साथ अलकायदा के भी निशाने पर भी थे। अलकायदा की हिट लिस्ट में वह नौवें नंबर पर थे। यह लिस्ट इस संगठन की मैग्जीन में उनके फोटो के साथ छपी थी।

हमले के समय 47 वर्षीय स्टीफेन मैग्जीन के दफ्तर में ही थे और अपने साथी कर्मचारियों के साथ बैठक कर रहे थे। धमकियों के बाद उनकी सुरक्षा में एक पुलिसकर्मी नियुक्त किया गया था। आतंकियों ने उसे भी अपना निशाना बना दिया।

...तब हुई थी तोड़फोड़

2011 में ट्यूनीशिया में हुए चुनावों में इस्लामिक पार्टी की जीत हुई थी। फॉक्स न्यूज के अनुसार, तब स्टीफेन ने अपनी मैग्जीन में मजाकिया लहजे में लिखा था कि 'मोहम्मद' आएं, हमारे अतिथि संपादक बनें और कवर पेज पर अपना कैरिकेचर बनाएं। इस पर जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई थी और कुछ लोगों ने मैग्जीन के दफ्तर में तोड़फोड़ भी की थी। वेबसाइट हैक कर ली गई थी।

2012 में बने थे संपादक

स्टीफेन बीस वर्षों से चार्ली एब्दो मैग्जीन से जुड़े थे। उन्हें 2012 में इसका संपादक बनाया गया था। उससे पहले मई 2009 तक उन्होंने बतौर निदेशक सेवाएं दी थीं। 1960 से राजनीतिक और धार्मिक मसलों पर व्यंग्य करने वाले स्टीफेन ने 2011 के हमले के बाद ले मोंडे अखबार को बताया था, मेरी पत्नी नहीं है, बच्चे नहीं हैं, कार नहीं है, किसी का उधार भी नहीं है। चाहे जो जाए, लेकिन मैं घुटने टेकने के बजाए अपने पैरों पर खड़ा होकर मरना पसंद करूंगा।

साभार-नई दुनिया


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