नेपाल में गढ़ीमाई उत्सव में पशु बलि पर पाबंदी
नेपाल के गढ़ीमाई उत्सव के दौरान 300 वर्षों से चली आ रही पशु बलि प्रथा पर रोक लगा दी गई है। हर पांच साल पर होने वाले इस उत्सव के दौरान बड़ी संख्या में पशुओं की बलि दी जाती है जो विश्व में सर्वाधिक है।
नई दिल्ली। नेपाल के गढ़ीमाई उत्सव के दौरान 300 वर्षों से चली आ रही पशु बलि प्रथा पर रोक लगा दी गई है। हर पांच साल पर होने वाले इस उत्सव के दौरान बड़ी संख्या में पशुओं की बलि दी जाती है जो विश्व में सर्वाधिक है।हजारों जानवरों की जिंदगी बचाने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण फैसला है।
गढ़ीमाई मंदिर ट्रस्ट ने बलि प्रथा पर रोक लगाने की औपचारिक घोषणा की और श्रद्धालुओं से उत्सव के दौरान जानवर नहीं लाने का अनुरोध किया। ट्रस्ट के अध्यक्ष राम चंद्र शाह ने उम्मीद जताई कि लोगों की मदद से हम 2019 में इस खूनखराबे को रोक सकेंगे। एक अनुमान के मुताबिक, 2009 में गढ़ीमाई उत्सव में पांच लाख से अधिक भैंस, बकरा, मुर्गा और अन्य जानवरों की बलि चढ़ाई गई। हालांकि, 2014 में इसमें उल्लेखनीय कमी आई।
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने भी हाल ही में राज्यों को आदेश दिया है कि वे भविष्य में जानवरों को गढ़ीमाई उत्सव में ले जाने से रोकने के लिए कदम उठाएं और लोगों को जानवरों की बलि के खिलाफ जागरूक करें। गढ़ीमाई मंदिर ट्रस्ट के बलि पर रोक लगाने के फैसले का पशु अधिकार कार्यकर्ताओं ने स्वागत किया है। ह्यूमन सोसाइटी इंटरनेशनल इंडिया के गौरी मौलेखी ने कहा कि जानवरों की बलि क्रूर प्रथा है और विश्व में किसी भी देश को इसकी इजाजत नहीं देनी चाहिए। मौलेखी ने भारत से जानवरों को नेपाल के गढ़ीमाई उत्सव में जाने के रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी थी।