डेढ़ दशक में ऊर्जा क्षेत्र में होगा 60 लाख करोड़ का निवेश
राजग सरकार ने पिछले 19 महीनों में महत्वाकांक्षी योजना बनाने में अपनी अलग छवि बना ली है। खासतौर पर ऊर्जा क्षेत्र में एक के बाद एक नए महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किए जा रहे हैं और उन्हें लागू करने की जमीन भी तैयार की जा रही है। इस कड़ी में केंद्र
सिडनी, [जयप्रकाश रंजन] । राजग सरकार ने पिछले 19 महीनों में महत्वाकांक्षी योजना बनाने में अपनी अलग छवि बना ली है। खासतौर पर ऊर्जा क्षेत्र में एक के बाद एक नए महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किए जा रहे हैं और उन्हें लागू करने की जमीन भी तैयार की जा रही है। इस कड़ी में केंद्र सरकार ने अगले डेढ़ दशक यानि वर्ष 2030 तक देश के ऊर्जा क्षेत्र में 60 लाख करोड़ रुपये के नए निवेश का रास्ता साफ करने की मंशा जताई है।
इस निवेश में एक बड़ा हिस्सा सरकार का भी होगा। लेकिन देशी और विदेशी निजी कंपनियों को भी इसमें अहम साझेदार बनाया जाएगा। कोयला, बिजली व नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल के मुताबिक यह निवेश देश में 10 लाख लोगों को नए तरह का रोजगार मुहैया कराएगा और भारत को एक मजबूत व विकसित राष्ट्र बनाने का आधार बनेगा।
इसके साथ ही गोयल ने देश की ऊर्जा कूटनीति को नई धार देते हुए सरकार ने अंतरराष्ट्रीय सहयोग से देश में बिजली की दरों को घटाने की एक महत्वाकांक्षी योजना बनाने का फैसला किया है। यह सहयोग चीन, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से लिया जाएगा। इसके तहत भारत इन सभी देशों के साथ मिलकर कोयला आधारित बिजली संयंत्रों में ऐसी प्रौद्योगिकी विकसित करेगा जिससे न सिर्फ इन बिजली घरों से पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचे बल्कि बिजली की लागत भी कम हो।
मंगलवार को भारत-ऑस्ट्रेलिया ऊर्जा सुरक्षा वार्ता के तहत एक सत्र को संबोधित करते हुए कोयला व बिजली मंत्री पीयूष गोयल ने इस बारे में भारत की प्रस्तावित नीति के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि अगर कोयला के इस्तेमाल से ज्यादा बिजली बनाने वाले देश अपनी तकनीक को एक साथ इस्तेमाल करें तो तकनीक की लागत काफी कम हो सकती है।
गोयल ने बाद में नईदुनिया के सहयोगी प्रकाशन दैनिक जागरण को बताया कि भारत ने ताप बिजली घरों से निकलने वाले प्रदूषण को कम करने का जो वादा किया है उस पर काफी ज्यादा लागत आने की संभावना है। सिर्फ सरकारी बिजली कंपनी एनटीपीसी की 45 हजार मेगावाट क्षमता के लिए उचित तकनीक लगाने पर 55 हजार करोड़ रुपये का खर्च आएगा।
इसके अलावा राज्य सरकारों की बिजली इकाइयों में पैदा होने वाली 70 हजार मेगावाट क्षमता की बिजली के लिए अलग से एक लाख करोड़ रुपये की लागत आ सकती है। इतनी बड़ी लागत को हम दूसरे देशों के साथ सहयोग से ही कम कर सकते हैं। हम चाहते हैं कि अमेरिका, चीन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश अपनी उपलब्ध तकनीक का आपस में इस्तेमाल करने को लेकर समझौता करें इससे सभी का फायदा होगा। इस बारे में सरकार अन्य देशों के साथ आगे भी बातचीत करेगी।
सनद रहे कि भारत सरकार ने वर्ष 2030 तक देश में पैदा होने वाली कुल बिजली का 40 फीसद गैर पारंपरिक ऊर्जा स्त्रोत से बनाने का लक्ष्य रखा है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को खत्म कर दिया जाएगा। गोयल का कहना है कि सौर व पवन ऊर्जा से ज्यादा से ज्यादा बिजली बनाने के बाद भी हमें बिजली के लिए कोयला आधारित संयंत्रों पर निर्भर रहना पड़ेगा। आने वाले दिनों में सरकार कई कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को स्थापित करने में सहयोग करेगी लेकिन अब इन्हें बेहतरीन तकनीक का इस्तेमाल करना होगा ताकि पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचे।
गोयल ने बताया कि वर्ष 2030 तक सरकार सिर्फ बिजली क्षेत्र में 60 लाख करोड़ रुपये के निवेश का रास्ता तैयार किया जा रहा है। यह निवेश कोयला खदान से लेकर सौर उर्जा में, ट्रांसमिशन लाइन को मजबूत बनाने में, मीटर लगाने में, हर किसान तक स्मार्ट मीटर पहुंचाने में लगेगा। इससे कम से कम 10 लाख लोगों को रोजगार के अवसर मिलेंगे।