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छांव के साथ पहचान भी बने पेड़

लखनऊ(अजय श्रीवास्तव)। हर कोई उस हाथ को सलाम कर रहा है, जिसने कई दशक पहले एक पौधा रोपा था। प

By Edited By: Published: Sun, 12 Jan 2014 11:01 AM (IST)Updated: Sun, 12 Jan 2014 11:09 AM (IST)
छांव के साथ पहचान भी बने पेड़

लखनऊ(अजय श्रीवास्तव)। हर कोई उस हाथ को सलाम कर रहा है, जिसने कई दशक पहले एक पौधा रोपा था। पौध लगाने वाले का तो अब कोई पता नहीं, लेकिन समय के साथ नन्हा पौधा विशालकाय वृक्ष बन गया। वृक्ष ने छांव देने के साथ एक खास पहचान भी बनाई है। लखनऊ के कैंपवेल रोड पर खड़ा यह विशालकाय पेड़ गर्मी में ठंडी हवा देकर राहत के साथ पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है। शुद्ध वातावरण का माहौल भी बनाता है।

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कैंपवेल रोड का खिन्नी तिराहा। यहां पर ही खिन्नी का पेड़ है। सड़क किनारे लगा पेड़ अब एक ठिकाना बन गया है। पेड़ इस कदर फैला है कि वह दो सड़कों को अपने आंचल में ढक चुका है। शिवाकांत दीक्षित कहते हैं कि 30 वर्ष यहां रह रहे हैं और तब से क्षेत्र की पहचान खिन्नी तिराहे से हो रही है।

खदरा में तो वैसे कई मोहल्ले हैं, लेकिन यहां पाकड़ का पेड़ भी अपनी खास पहचान रखता है। रामलीला मैदान से आगे बढ़ने पर मोहल्ले का नाम ही बड़ी पकड़िया है जहां आज भी एक पाकड़ का पेड़ लगा है। समय के साथ पेड़ विशालकाय होने लगा तो उसके तनों की छंटाई भी शुरू हो गई, लेकिन फिर यह पेड़ मोहल्ले को नाम देने के साथ ही इलाके के पर्यावरण की भी सुरक्षा कर रहा है। मनोहर सिंह कहते हैं कि सौ साल पुराना यह वृक्ष है, क्योंकि पचास साल से तो वह ही इसे देख रहे हैं। बड़ी पकड़िया के पते ही लोगों की चिट्ठी तक आती है।

नाका के पास भी नीम का एक पेड़ था। पेड़ टेढ़ा था, लिहाजा उस जगह का नाम ही टेढ़ी नीम पड़ गया। सड़क चौड़ीकरण में तो पेड़ का अस्तित्व खत्म हो गया, लेकिन टेढ़ी नीम का नाम आज भी जीवित है। पार्षद सतीश साहू कहते हैं कि टेढ़ी नीम एक स्थान है, जिसकी पहचान आज भी सिर्फ नाका में ही नहीं आसपास के क्षेत्रों में भी है।

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बाग-बगिया ने भी दिया नाम

लखनऊ में पर्यावरण संरक्षण के भी पहरेदार थे तभी तो पेड़ों के अलावा बाग-बगिया से शहर अपनी पहचान रखता है। बलरामपुर अस्पताल परिसर में लगा विशालकाय पेड़ तो तीमारदारों का ठिकाना बन गया है तो महात्मा गांधी ने गोखले मार्ग में 1925 में जिस पौधे को लगाया था, उसका रूप आज विशाल हो गया है। बागों के शहर लखनऊ में अब बाग तो रह नहीं गए, लेकिन यादें जरूर किसी मोहल्ले के नाम से ताजा हैं। मौसमबाग, चारबाग, ऐशबाग, सोबतिया बाग, खुर्शेदबाग, फूलबाग, कैसरबाग, नजर बाग, बंदरिया बाग, बाग बाबा हजारा, वजीरबाग, सुंदरबाग, दरजी की बगिया, मिसरी की बगिया, मुल्लन की बगिया, कप्तान की बगिया ऐसे तमाम मोहल्ले के नाम बागों से पहचान रखते हैं।

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