हौसले की उड़ान को नया आकाश
गणित के शिक्षक के तौर पर एक स्कूल में इक्का-दुक्का पढऩे वाले और आस-पड़ोस में रहने वाले मानसिक मंदित बच्चों की परेशानियां उन्हें विचलित कर देती थीं। वर्ष 1997 में जन्मे उनके पुत्र में भी जब मानसिक मंदित होने के लक्षण दिखने लगे तो ऐसे बच्चों के प्रति नवल पंत
लखनऊ (राजीव दीक्षित)। गणित के शिक्षक के तौर पर एक स्कूल में इक्का-दुक्का पढऩे वाले और आस-पड़ोस में रहने वाले मानसिक मंदित बच्चों की परेशानियां उन्हें विचलित कर देती थीं। वर्ष 1997 में जन्मे उनके पुत्र में भी जब मानसिक मंदित होने के लक्षण दिखने लगे तो ऐसे बच्चों के प्रति नवल पंत की संवेदनशीलता के साथ उनके लिए कुछ अलग कर गुजरने की ललक भी बढ़ी। प्रधानाध्यापक होते हुए चाहकर भी स्कूल प्रबंधन के दबाव में कई मर्तबा मानसिक मंदित बच्चों को दाखिला न दे पाने पर उन्हें अपनी मजबूरी पर जिल्लत महसूस हुई। तब उन्होंने ऐसे बच्चों के लिए एक अलग दुनिया बसाने की सोची।
एक ऐसा ठौर जिसमें मानसिक मंदित बच्चों की खास जरूरतों का ख्याल रखा जा सके। उनकी संवेदनाओं और संवेगों को आत्मसात किया जा सके। इसी संकल्प ने 2005 में जन्म दिया परमहंस योगानंद सोसाइटी फॉर स्पेशल अनफोल्डिंग एंड मोल्डिंग (पायसम) को। इस संस्था के बैनर तले नवल ने लखनऊ में सीतापुर रोड के पुरनिया इलाके में मानसिक मंदित बच्चों के लिए पायसम चाइल्ड डेवलपमेंट सेंटर नामक स्कूल खोला। इस स्कूल में तीन से 14 वर्ष तक के मानसिक मंदित बच्चे गाने-बजाने, खेलने-कूदने के साथ अपनी क्षमताओं के मुताबिक नर्सरी से प्राइमरी तक पढ़ाई करते हैं। अपने हौसले की उड़ान को नया आकाश देते हैं। स्कूल की ओर से बच्चों को स्पीच थेरेपी, फिजियोथेरेपी जैसी चिकित्सीय सुविधाएं मुहैया कराने के साथ उन्हें उनकी जरूरत के मुताबिक उपकरण भी दिये जाते हैं। इस समय स्कूल में 135 बच्चे काउंसिलिंग और चिकित्सकीय सेवाओं के लिए पंजीकृत हैं जबकि 65 नियमित रूप से यहां पढ़ाई करने आते हैं। स्कूल में आने वाले ज्यादातर बच्चे चूंकि गरीब परिवारों से ताल्लुक रखते हैं, इसलिए उनके अभिभावकों से उनकी हैसियत के मुताबिक फीस ली जाती है। कुछ आर्थिक मदद धर्मार्थ प्रवृत्ति के लोगों और संस्थाओं से मिल जाती है। नवल कहते हैं कि स्कूल खोलना नहीं बल्कि खास जरूरत वाले बच्चों को समाज की मुख्य धारा में लाना और उन्हें यह अहसास दिलाना कि हम किसी से कम नहीं, उनका असल मकसद है।
यही वजह थी कि वर्ष 2012 में उन्होंने लखनऊ के मॉडल हाउस इलाके में पायसम वोकेशनल ट्रेनिंग सेंटर की शुरुआत की। इस सेंटर में 17 साल से अधिक उम्र के मानसिक मंदितों को उनकी क्षमताओं के मुताबिक फोटोकॉपी, लैमिनेशन व स्पाइरल बाइंडिंग, मसालों की ग्राइंडिंग व पैकिंग, पेपर व फैब्रिक क्राफ्ट और कंप्यूटर हार्डवेयर एसेंब्लिंग की ट्रेनिंग दी जाती है। तीन महीने की ट्रेनिंग के बाद उनके तैयार उत्पादों की बिक्री से उन्हें स्टाइपेंड दिया जाता है ताकि उन्हें स्वावलंबन का अहसास हो। बीते वर्ष ही पायसम ने अमेरिका के न्यू मैक्सिको विश्वविद्यालय के साथ मिलकर इंडिया ऑटिज्म ईको प्रोजेक्ट शुरू किया है। इसके तहत पायसम देश के विभिन्न राज्यों में विशेष शिक्षकों को ऑटिज्म के बारे में मुफ्त शिक्षा देने में लगी है।