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हाईकोर्ट के फैसले से धर्मांतरण की बहस को नई धार

धर्मांतरण पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के अहम फैसले से देश में इस बाबत चल रही बहस को नई धार मिल सकती है। इस फैसले में कोर्ट ने धर्मांतरण के विधिक पहलुओं को छुआ और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों और कुरान की आयतों के सहारे धर्म को पारिभाषित करने की कोशिश की

By Nawal MishraEdited By: Published: Fri, 19 Dec 2014 08:43 PM (IST)Updated: Fri, 19 Dec 2014 08:46 PM (IST)
हाईकोर्ट के फैसले से धर्मांतरण की बहस को नई धार

लखनऊ (हरिशंकर मिश्र)। धर्मांतरण पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के अहम फैसले से देश में इस बाबत चल रही बहस को नई धार मिल सकती है। इस फैसले में कोर्ट ने धर्मांतरण के विधिक पहलुओं को छुआ और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों और कुरान की आयतों के सहारे धर्म को पारिभाषित करने की कोशिश की है। साथ ही माना कि धर्म का रिश्ता दिल और दिमाग की गहराइयों से जुड़ा है।

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कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि जिन लड़कियों का धर्म परिवर्तन किया गया, उनमें इस्लाम के प्रति गहरी आस्था का अभाव था। संभल की रहने वाली एक लड़की ने अपने बयान में कहा कि वह स्नातक है लेकिन इस्लाम के बारे में कुछ नहीं जानती। किस काजी ने उसका निकाह कराया, उसके बारे में भी जानकारी नहीं थी। देवरिया की जिस लड़की ने याचिका दाखिल की, वह इंटर पास है। जिस समय उसका धर्म परिवर्तन कराया गया, वह अलग कमरे में थी और उसी समय उसका निकाह हुआ। प्रतापगढ़ की याची भी स्नातक है। उसका बयान था कि उसका निकाह कचहरी में हुआ। निकाह में क्या हुआ, इसे इसका पता नहीं। यह सारे धर्म परिवर्तन शादी कराने के लिए कराए गए। अदालत ने माना कि इस धर्म परिवर्तन का आस्था और विश्वास से नाता नहीं रहा। सिद्धार्थनगर की एक लड़की ने धर्म परिवर्तन की जानकारी होने से इन्कार किया। उसे निकाह के स्थान तक का पता नहीं था।

सिर्फ यही नहीं लड़कियों से शादी करनेवाले मुस्लिम युवकों ने भी माना कि उन्होंने सिर्फ शादी के नजरिए से धर्म परिवर्तन कराया। अदालत ने सवाल उठाया कि क्या किसी मुस्लिम लड़के का हिंदू लड़की से विवाह करने के लिए बिना इस्लाम धर्म की जानकारी दिए धर्म परिवर्तन कराना वैध है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी का धर्म परिवर्तन तभी सही माना जा सकता है जब उसका अपने पुराने धर्म के सिद्धांतों और आस्था के प्रति मोहभंग हुआ हो और नए धर्म के सिद्धांतों और प्रक्रिया के प्रति हृदय से लगाव हुआ हो। कोई लाभ या कुछ प्राप्त करने की इच्छा से किसी धर्म को अंगीकार करना विधिक नहीं होगा।


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