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शेयर बाजार जैसा उठता-गिरता रहा मुख्यमंत्री अखिलेश का ग्राफ

पार्टी के मंच से राज खोलने वाला भावुक भाषण देने के बाद उनका ग्र्राफ भी शेयर बाजार जैसा हो गया है। किसी बात पर जहां खूब ऊंचे दिखते हैं तो कुछ बात से उनकी छवि को नुकसान पहुंचा है।

By Ashish MishraEdited By: Published: Tue, 25 Oct 2016 09:51 PM (IST)Updated: Wed, 26 Oct 2016 03:36 PM (IST)
शेयर बाजार जैसा उठता-गिरता रहा मुख्यमंत्री अखिलेश का ग्राफ

लखनऊ (जेएनएन)। डेढ़ महीने से चल रहे सपा के सियासी ड्रामे में कलह और घात-प्रतिघात के शुरुआती दौर में मुख्यमंत्री जहां अलग तेवर और कलेवर में उभरे थे, वहीं सोमवार को पार्टी के मंच से राज खोलने वाला भावुक भाषण देने के बाद उनका ग्र्राफ भी शेयर बाजार जैसा हो गया है। अब लोगों के बीच वह किसी बात पर जहां खूब ऊंचे बैठे दिखते हैं तो कुछ बातें ऐसी भी हैं, जिसने उनकी छवि को गंभीर नुकसान पहुंचाया है।

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हालांकि लोग अभी इस राजनीतिक प्रहसन को देख रहे हैं। पर्दा अभी गिरा नहीं है। रोज एक नई घटना चौंकाती है और जख्मों पर जमाई गई सुलह की पपड़ी को फिर उखाड़ देती है। लोगों का मानना है कि इस बीच के घटनाक्रम से मुख्यमंत्री की छवि लडख़ड़ाई है, लेकिन मुख्यमंत्री के अगले कदम पर सब नजरें भी जमाए बैठे हैं। माना जा रहा है कि अगर ठीक कदम उठा तो छवि मजबूत, नहीं तो गिरावट पक्की है। विद्रोही तेवर के लिए चर्चित रहे पूर्व आइएएस अधिकारी एसपी सिंह कहते हैं कि इस पूरे एपिसोड से जो एक बात साफ हुई है, वो यह कि पारिवारिक झगड़ों की वजह से मुख्यमंत्री को काम नहीं करने दिया जा रहा है।पढ़ें- समाजवादी पार्टी तथा परिवार में सब ठीक है : शिवपाल सिंह यादव

सिंह का मानना है कि समूचे प्रकरण में अखिलेश ने 'पॉलीटिकली गेन किया है। वह कहते हैं- सत्ताधारी दल का प्रभाव तो रहता है सरकार और प्रशासन पर, लेकिन ऐसा भी नहीं होना चाहिए..., मुख्यमंत्री को सिर्फ बेटा और भतीजा नहीं समझा जाना चाहिए। सिंह कहते हैं कि मुख्यमंत्री को अब कदम उठाना चाहिए और इस चक्र से बाहर निकल जाना चाहिए।

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कानपुर के डीजी कॉलेज की प्राचार्या डॉ.साधना सिंह कहती हैं कि सपा परिवार में उठापटक के पीछे दो में से एक वजह हो सकती है। या तो यह वाकई उत्तराधिकार का घमासान है, या फिर ऐसी नूराकुश्ती है, जिसके जरिये मुलायम अपने बेटे के रास्ते से भाइयों को हटा कर उसकी ऐसी मजबूत छवि बनाना चाहते हैं जो मोदी का मुकाबला कर सके। डॉ. सिंह के मुताबिक यह श्रेय तो अखिलेश को जाता है कि उन्होंने अपनी सरकार की छवि को पार्टी की परंपरागत अनुशासनहीनता, अपराधग्रस्त और गुंडों की पार्टी वाली इमेज से अलग रखने की कोशिश की, लेकिन सोमवार को पार्टी कार्यालय में उनके निरीह संबोधन ने तो अब सरकार के साढ़े चार साल की कार्यप्रणाली को ही कठघरे में खड़ा कर दिया है।

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डॉ. सिंह कहती हैं कि कोई भी पढ़ा-लिखा आदमी यह सुनकर अपना सिर पकड़ लेगा कि मुख्यमंत्री सरकार के सचिव से कह रहे हैं... जाओ, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पैर पकड़ो..., उनसे माफी मांगो। फिर किसी को वह सरकार और प्रशासन में शामिल करते हैं, निकालते हैं और फिर शामिल कर लेते हैं। यह भी बताते हैं कि वह बेईमान था। डॉ. सिंह कहती हैं कि ये जो असमंजस और अनिर्णय है, इसने मुख्यमंत्री की छवि को गहरी नुकसान पहुंचाया है।
चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के पूर्व प्रतिकुलपति और राजनीति विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. एसके चतुर्वेदी कहते हैं कि अखिलेश ने तो खुद को 'नीट एंड क्लीन साबित किया है और यह भी दिखाया है कि वह विकास के इच्छुक हैं। अब यह अलग बात है कि ये संदेश कहां तक और कैसे पहुंच रहा है। प्रो. चतुर्वेदी का मानना है कि अखिलेश अब 'कट ऑफ लाइन पर हैं और उनका अगला कदम ही उनकी छवि गढ़ेगा।


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