Move to Jagran APP

ब्रेड पर भी पड़ेगी डबल मार

बेमौसम बारिश और ओलों ने कृषि आधारित उद्योगों और कारोबार के लिए भी मुसीबतें पैदा कर दी हैं। गेहूं को हुए नुकसान से जहां फ्लोर मिल मालिकों की नींद हराम है, वहीं उसकी गुणवत्ता प्रभावित होने से रोजमर्रा की जरूरत बन चुकी डबल रोटी पर डबल मार पडऩा तय है।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Tue, 21 Apr 2015 04:38 PM (IST)Updated: Tue, 21 Apr 2015 04:48 PM (IST)
ब्रेड पर भी पड़ेगी डबल मार

लखनऊ (राजीव दीक्षित)। बेमौसम बारिश और ओलों ने कृषि आधारित उद्योगों और कारोबार के लिए भी मुसीबतें पैदा कर दी हैं। गेहूं को हुए नुकसान से जहां फ्लोर मिल मालिकों की नींद हराम है, वहीं उसकी गुणवत्ता प्रभावित होने से रोजमर्रा की जरूरत बन चुकी डबल रोटी पर डबल मार पडऩा तय है। तेल मिलें, मेंथा के उत्पाद बनाने के साथ खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों के सामने दुश्वारियां पैदा होने के आसार हैं।

loksabha election banner

फ्लोर मिलों को कच्चे माल की फिक्र

उत्तर प्रदेश में तकरीबन 300 रोलर फ्लोर मिल हैं जिनका टर्न ओवर करीब 9000 करोड़ रुपये है। पैदावार घटने से फ्लोर मिलों के लिए कच्चे माल यानी गेहूं की आपूर्ति का संकट पैदा होना तय है। उत्तर प्रदेश रोलर फ्लोर मिलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रदीप गुप्ता के मुताबिक नये गेहूं की आवक कम होने से दिक्कत अभी से महसूस होने लगी है लेकिन जून-जुलाई से दुश्वारियां बढऩे और दाम चढऩे की आशंका है। गेहूं के दाने के सिकुडऩे और काले पड़ जाने से मैदे और सूजी की गुणवत्ता प्रभावित होना तय है।

ब्रेड-बिस्कुट उद्योग भी आशंकित

मैदे की सर्वाधिक खपत वाला ब्रेड-बिस्कुट उद्योग भी मौसम की मार से सिहरन महसूस कर रहा है। इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (आइआइए) की केंद्रीय कार्यकारिणी के सदस्य व ब्रेड के कारोबार से जुड़े मुकेश टंडन कहते हैं कि सिकुडऩे और काले पडऩे से गेहूं के दाने में ग्लूटेन की मात्रा कम होना तय है। कम ग्लूटेन वाला मैदा ब्रेड या बिस्कुट बनाने में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। मैदे की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए मिलों को उसमें कुछ एडिटिव्स मिलाने होंगे जिससे पहले उनकी और फिर हमारी लागत बढ़ेगी। जाहिर है कि डबल रोटी और बिस्कुट के लिए लोगों को अंटी ज्यादा ढीली करनी पड़ सकती है।

दालों के दाम चढ़े

लखनऊ दाल एंड राइस मिलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष भारत भूषण गुप्ता के मुताबिक दलहन पर मौसम की मार का असर साफ दिख रहा है। पिछले डेढ़ महीने में अरहर व मसूर की दालों में 600 से 700, उड़द में 800 से 900, चने में 500 से 600 और मटर में 200 रुपये का उछाल आया है। दलहन की फसलें प्रभावित होने से दाल मिलों को कच्चा माल नहीं मिल रहा है।

सरसों में तेल की रिकवरी घटी

सरसों की फसल को भी काफी नुकसान हुआ है। वैसे तो उत्तर प्रदेश सरसों के तेल की अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए राजस्थान और विदेश से होने वाले आयात पर निर्भर है लेकिन इस साल राजस्थान में भी फसलों को नुकसान से सरसों के तेल कारोबारी आशंकित हैं। कारोबार से जुड़े हरदोई के भजनलाल कहते हैं कि पिछले वर्षों तक सरसों से तेल की रिकवरी 37 फीसद थी। इस साल खेतों से निकली सरसों में तेल की रिकवरी घटकर 34 प्रतिशत रह गई है।

मेंथा उत्पादन भी घटने के आसार

मौसम के मिजाज ने मेंथा/पिपरमिंट के उत्पाद बनाने वाले व्यवसायियों की धड़कनें भी बढ़ा दी हैं। मेंथा क्रिस्टल के कारोबार से जुड़ीं आइआइए की पूर्व उपाध्यक्ष रीता मित्तल के मुताबिक असमय बारिश से मेंथा की पत्तियों में अभी से हरा रंग चढ़ गया है जिससे तेल कम निकलेगा। गर्मी बढऩे पर मेंथा की पत्तियों में तेल चढ़ता है। पैदावार और तेल की मात्रा कम होने से मेंथा का कारोबार प्रभावित होने के आसार हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.