राग और द्वेष के त्याग से होती है आत्मशुद्धि
फतेहाबाद: आत्मशुद्धि के बिना साधना नहीं हो सकती है। व्यक्ति को किसी का अपमान या निंदा नहीं करनी चाहिए। राग व द्वेष को हटाने से ही आत्मशुद्धि संभव है।
उक्त उद्गार स्वामी चिन्मयानंद महाराज ने लक्ष्मीनारायन उदासीन आश्रम बाह रोड फतेहाबाद में प्रवचन कार्यक्रम में व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि यदि आत्म कल्याण करना है तो निंदा का त्याग करना होगा। निंदा त्याग कर हमारी प्रवृत्ति अच्छे गुणों का ग्रहण करने वाली होनी चाहिए। सबसे पहले व्यक्ति को मस्तिष्क व मन पर पड़े राग, द्वेष, विकार के कचरे को साफ करना होगा, तभी आत्म शुद्धिसंभव है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति का आत्म चिंतन करते रहना चाहिए। भगवान रामजी के हृदय में प्रेम, वात्सल्य, करुणा के भाव थे, इसलिए उन्होंने संसार के प्राणियों के लिए परम उपकार किया।
उन्होंने कहा कि देव, शास्त्र, गुरु और धर्म रूपी दीवारों से ऐसे जीवन का निर्माण करो कि तुम्हें अनंत जन्म और मृत्यु से मुक्ति मिल जाये। पृथ्वी पर जन्म लिया और जीवन का निर्वाह करते हुए मरण को प्राप्त हो गए बस यही जीवन का उददेश्य नहीं है।
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